ये लड़की कितनी नास्तिक है ...हर रोज मंदिर के सामने से गुजरेगी मगर अंदर आकर आरती में शामिल होना तो दूर, भगवान की मूर्ति के आगे हाथ तक नहीं जोड़ेगी , मंदिर के सामने से गुजर कर कोचिंग जाती नेहा को देख कर लीला ने मुंह बिचकाकर कहा तो पुष्पा ने भी हाँ में हाँ मिलाई -सही कह रही हो भाभी, ऐसा भी क्या घमंड कि जो भगवान के आगे भी सर न झुका सके. ....
यह लीला और पुष्पा के दिनचर्या का हिस्सा था रोज शाम को मंदिर जाना वहीं से अपनी कोचिंग क्लास पढ़ने के लिए जाने वाली नेहा पर फिकरे कसना और गप्पे लादकर घर वापस आ जाना ..
पर आज की शाम रोज की तरह नहीं थी . आज मंदिर प्रांगण में कहीं से कोई पगली आकर दो घंटे से पड़ी थी उसके बाल बिखरे हुए थे, रूखा सा बदन, बेजान चेहरा और भूख से सूखी मरी काया वाली 'पगली' की प्रसव पीड़ा उसकी दीनता को और दयनीय बना रही थी .
कोई भी उसे सहारा देना तो दूर, पर उसके पास तक जाने में संकोच महसूस कर रहा था . आते जाते सब लोग उसे घृणित नजरों से देख रहे थे ... लीला , पुष्पा और उनकी सहेलियों को चर्चा का एक नया विषय मिल गया था .... अब क्या होगा दीदी...
ये पगली का प्रसव तो लगता है मंदिर के प्रांगण में ही हो जायेगा" लीला ने कथित चिंता व्यक्त की ...
"होगा क्या, ऐसे में तो मंदिर को सूतक लग जायेगा पंडित जी फिर कुछ विशेष अनुष्ठान करके इस स्थान को पवित्र करेंगे पुष्पा ने अपना अनुभव बघारा ...
तभी वहां से नेहा गुजरी ...
पगली को देखकर उसकी प्रतिकिया क्या होगी, ये जानने के लिए व्याकुल लीला , पुष्पा और उसकी सहेलियों ने उसके हाव भाव पर गौर करना शुरू किया नेहा एक क्षण को ठिठकी, फिर कुछ सोचकर अपने बैग से फ़ोन निकाल कर कहीं पर कॉल किया फिर पास की एक दुकान से पानी की बोतल खरीदकर, पगली के पास जाकर धीरे धीरे उसके मुँह में पानी डाला .
नेहा ने अपना दुपट्टा निकालकर पगली के चीथड़ों से लिपटे अर्धनग्न बदन पर ओढ़ा दिया इतने में साइरन बजाती हुई एक एम्बुलेंस आई . नेहा ने एम्बुलेंस के कर्मचारियों की सहायता से पगली को गाड़ी में बिठाया और उसे लेकर सरकारी नर्सिंग होम की ऒर चल दी ..
जाने से पहले उसने लीला और पुष्पा को ऐसे देखा मानो वो उनसे पूछ रही हो, "मूर्ति की सेवा और उस मूर्ति को साकार करने वाले इंसान की सेवा में से ज्यादा जरूरी क्या है.....
ईश्वर का नाम दिन रात लो और मजबूर बेहसहारा जरूरत मंद को अनदेखा कर दो ... इससे क्या ईश्वर खुश हो जाएंगे ...