शिक्षा के मामले में आज भले ही भारत दुनिया के कई देशों से पीछे हो, लेकिन एक समय था, जब हिंदुस्तान शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। भारत में ही दुनिया का पहला विश्वविद्यालय खुला था, जिसे नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में हुई थी। #बिहार के नालंदा जिले में बना नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है। 450 ई. में इसकी स्थापना हुई थी। उस जमाने में यहाँ विभिन्न देशों के 10 हजार से अधिक #विद्यार्थी निवास और अध्ययन करते थे। आज हम भारत के एक प्राचीन विश्वविद्यालय के बारे में बता रहे हैं।कि उस समय विश्वविद्यालय के जैसे 8 विश्वविद्यालय भारत में चल रहे थे। जिनके बल पर भारत "विश्व गुरु" के रूप में समूचे विश्व में विख्यात था।नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक "कुमारगुप्त" ने की। स्थापना के बाद इसे सभी शासक वंशों का समर्थन भी मिलता गया। महान शासक हर्षवर्धन ने भी इस विश्वविद्यालय के लिए दान दिया। इस विश्वविद्यालय को विदेशी शासकों की भी सहायता मिली। नालंदा विश्वविद्यालय के मठों का निर्माण प्राचीन कुषाण वास्तुशैली से हुआ था।यह किसी आँगन के चारों ओर लगे कक्षों की पंक्ति के समान दिखाई देते थे। सम्राट अशोक तथा हर्षवर्धन ने यहाँ सबसे ज्यादा मठों, विहार तथा मंदिरों का निर्माण करवाया। इस प्रकार यह बारहवीं शताब्दी तक सफलतापूर्वक संचालित होता रहा, परंतु तुर्क आक्रमण में तबाह होने के बाद यह दोबारा स्थापित नहीं हो पाया। इस स्थान पर हुई खुदाई के बाद इसकी संरचनाओं का पता लगा। 14 हेक्टयर क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय के अवशेष मिले हैं।यहाँ की सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। आज भी हम इस विश्वविद्यालय की मुख्य दो मंजिला इमारत देख सकते हैं। माना जाता है कि शायद यहीं शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे। यहाँ एक प्रार्थनागृह आज भी सुरक्षित अवस्था में है। इसमें भगवान बुद्घ की प्रतिमा रखी हुई है, परंतु वह थोड़ी खंडित हो गई है। इसके अलावा भी यहाँ बहुत से मंदिर हैं। यह दुनिया का पहला आवासीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय था। यहाँ दुनियाभर से आकर 10000 छात्र अध्ययन किया करते थे और ये सब इसी विश्वविद्यालय में रहते भी थे। सोचिए, इतने सारे विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए यहाँ कितने शिक्षक होंगे? यहाँ 2000 शिक्षक पढ़ाते थे। तभी तो दुनिया का महानतम विश्वविद्यालय था नालंदा। बख्तियार खिलजी नाम के एक सिरफिरे की सनक ने इसको तहस-नहस कर दिया। उसने नालंदा में आग लगवा दी, जिससे इसकी लाइब्रेरी में रखीं बेशकीमती किताबें जलकर राख हो गई। बिहार राज्य में पटना से करीब 90 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 12 किलोमीटर उत्तर में एक गांव के पास था वह महान बौद्ध विश्वविद्यालय। इसकी खोज "अलेक्जेंडर कनिंघम" ने की थी। नालंदा वो जगह है जो 6th Century B.C. में पूरी दुनिया में ज्ञान का केंद्र था। कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत और तुर्की से यहां स्टूडेंट्स और टीचर्स पढ़ने-पढ़ाने आते थे।मशहूर चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां साल भर शिक्षा ली थी। यह विश्व की ऐसी पहली यूनिवर्सिटी थी, जहां रहने के लिए हॉस्टल भी थे। बख्तियार खिलजी नाम के एक सिरफिरे की सनक ने इसको तहस-नहस कर दिया। उस तुर्क आक्रमणकारी ने नालंदा यूनिवर्सिटी में आग लगवा दी, जिससे इसकी लाइब्रेरी में रखीं बेशकीमती किताबें जलकर राख हो गई। खिलजी ने नालंदा के कई धार्मिक लीडर्स और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी। खिलजी कौन था, उसने ऐसा क्यों करवाया? आज हम आपको बता रहे हैं नालंदा का पूरा सच… छठी शताब्दी में हिंदुस्तान सोने की चिडि़या कहलाता था। भारत के #वैभव के बारे में सुनकर यहां बाहर से आक्रमणकारी आते रहते थे। इन्हीं में से एक था- तुर्की का शासक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी। उस समय हिंदुस्तान पर खिलजी का ही राज था। नालंदा यूनिवर्सिटी तब राजगीर का एक उपनगर हुआ करती थी। यह राजगीर से पटना को जोड़ने वाली रोड पर स्थित है। यहां पढ़ने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स विदेशी थे। उस वक्त यहां 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिन्हें 2 हजार शिक्षक गाइड करते थे। कहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बुरी तरह बीमार पड़ा। उसने अपने हकीमों से काफी इलाज करवाया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। तब किसी ने उसे नालंदा यूनिवर्सिटी की आयुर्वेद शाखा के हेड (प्रधान) राहुल श्रीभद्र जी से इलाज करवाने की सलाह दी, लेकिन खिलजी किसी हिंदुस्तानी वैद्य (डॉक्टर) से इलाज के लिए तैयार नहीं था। उसे अपने हकीमों पर ज्यादा भरोसा था। उसका मन ये मानने को तैयार नहीं था कि कोई हिंदुस्तानी डॉक्टर उसके हकीमों से भी ज्यादा काबिल हो सकता है। कई हकीमों से सलाह करने के बाद आखिरकार खिलजी ने इलाज के लिए राहुल श्रीभद्र को बुलवाया।
खिलजी ने उनके सामने शर्त रखी कि वो किसी हिंदुस्तानी दवा का इस्तेमाल नहीं करेगा और अगर वो ठीक नहीं हुआ तो उन्हें मौत की नींद सुला देगा। ये सुनकर राहुल श्रीभद्र सोच में पड़ गए। फिर कुछ सोचकर उन्होंने खिलजी की शर्तें मान लीं। कुछ दिनों बाद वो खिलजी के पास एक कुरान लेकर पहुंचे और उससे कहा कि इसके इतने पन्ने रोज पढिए, ठीक हो जाएंगे। दरअसल, राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था। खिलजी उन पन्नों को पढ़ता गया और इस तरह धीरे-धीरे ठीक होता गया, लेकिन पूरी तरह ठीक होने के बाद उसने हिंदुस्तानी वैद्य के अहसानों को भुला दिया। उसे इस बात से जलन होने लगी कि उसके हकीम फेल हो गए जबकि एक हिंदुस्तानी वैद्य उसका इलाज करने में सफल हो गया। तब खिलजी ने सोचा कि क्यों न ज्ञान की इस पूरी जड़ (नालंदा यूनिवर्सिटी) को ही खत्म कर दिया जाए। इसके बाद उसने जो किया, उसके लिए इतिहास ने उसे कभी माफ नहीं किया। खिलजी ने नालंदा यूनिवर्सिटी में आग लगाने का आदेश दे दिया। कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में इतनी किताबें थीं कि यह तीन महीने तक धू-धू जलता रहा। इसके बाद भी खिलजी का मन शांत नहीं हुआ। उसने नालंदा के हजारों धार्मिक लीडर्स और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी। बाद में पूरे नालंदा को भी जलाने का आदेश दे दिया। इस तरह उस सनकी ने हिंदुस्तानी वैद्य के अहसान का बदला चुकाया। नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय ‘धर्म गूंज’, जिसका अर्थ है ‘सत्य का पर्वत’, संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय था. यह दुनिया भर में भारतीय ज्ञान का अब तक का सबसे प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध केन्द्र था. ऐसा कहा जाता है कि पुस्तकालय में हजारों की संख्या में पुस्तकें और संस्मरण उपलब्ध थे. इस विशालकाय पुस्तकालय के आकार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें लगी आग को बुझाने में छह महीने से अधिक का समय लग गया. इसे इस्लामिक आक्रमणकारियों ने आग के हवाले कर दिया था. नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में तीन मुख्य भवन थे, जिसमें नौ मंजिलें थी. तीन पुस्तकालय भवनों के नाम थे रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’, और ‘रत्नसागर’.।