15जून1857 स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान आर्य राजा देवीसिंह गोदर(गोदारा) के बलिदान दिवस पर विशेष-के सी शर्मा




राजा देवी सिंह का जन्म मथुरा के राया तहसील के गांव अचरु में गोदर(गोदारा) गौत्र के हिंदू जाट परिवार में हुआ था। 
राजा देवीसिंह एक धार्मिक स्वभाव के थे और एक अच्छे पहलवान भी थे।राज को त्याग करके साधु बन गए थे। 

क्रांति में कूदने के लिए प्रेरणा

जब इस देश पर अंग्रेज़ी संकट आया तब एक बार वे गांव में पहलवानी कर रहे थे तो उनके सामने कोई नहीं टिक पाया।फिर जीत के बाद वे अपनी खुशी जाहिर कर रहे थे।तो एक युवक ने उन पर ताना कसते हुए कहा के यहां ताकत दिखाने का क्या फायदा है दम है तो अंग्रेजो के खिलाफ लड़ो और देश सेवा करो। यही क्षत्रियो का धर्म है आपके पूर्वजो ने सदा से इस क्षेत्र की रक्षा अपने प्राणों की आहुति देकर की है ।

चूंकि राजा साहब बचपन से ही देशभक्त और धर्म भक्त थे इसलिए यह बात उनके दिल पर लगी।उन्होंएँ कहा के बात तो तुम्हारी सही है यहां ताकत दिखाने का क्या फायदा।लेकिन अंग्रेजो से लड़ने के लिए एक फौज की जरूरत पड़ेगी मैं वह कहां से लाऊं।तभी उनके एक साथी ने कहा के आप अपनी फौज बनाइये।इस पर राजा साहब सहमत हो गए।पूरे क्षेत्र में देवी सिंह का नाम था लोगो ऊनका बहुत आदर करते थे।

क्रांति

इसके बाद देवी सिंह ने गांव गांव घूमना शुरू कर दिया व स्वराज का बिगुल बजा दिया।उन्होंने राया,हाथरस,मुरसान,सादाबाद आदि समेत सम्पूर्ण कान्हा की नगरी मथुरा बृज क्षेत्र में क्रांति की अलख जगा दी। उनके तेजस्वी व देशभक्त भाषणों से युवा उनसे जुड़ने लगे। जिस कारण उन्हें सेना बनाने में ज्यादा परेशानी नहीं आई। उन्होंने किसान की आजादी,अपना राज,भारत को आजाद कराने का बीड़ा उठा लिया।
उन्होंने चन्दा इकट्ठा करके व कुछ अंग्रेजो को लूटकर तलवार और बंदूकों का प्रबंध कर लिया।एक रिटायर्ड आर्मी अफसर के माध्यम से उन्होंने अपने सैनिकों को हथियार चलाने में निपुण किया और 1857 की क्रांति में कूद पड़े । जब यह बात अंग्रेजों को पता चली तो वे बौखला गए।उन्होंने राजा साहब को ब्रिटिश आर्मी जॉइन करने का ऑफर दिया।लेकिन देवी सिंह ने कहा कि वे अपने देश के दुश्मनों के साथ बिल्कुल भी नहीं जाएंगे।

राजतिलक

इसके बाद बल्लभगढ हरियाणा के राजा नाहर सिंह ने भी उनकी मदद की और दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफर से कहकर उनके राज को मान्यता देने के लिए कहा।जफर को उस समय क्रान्तिकारियो की भी जरूरत थी और दूसरा एक नाहर सिंह ही थे जो उसे व दिल्ली को अंग्रेजो से अब तक बचाये हुए थे।इसलिए उन्होंने राजा देवी सिंह के राज को अपनी तरफ से मान्यता दे दी।

मार्च 1857 में फिर राजा देवी सिंह ने राया थाने पर आक्रमण कर दिया व सब कुछ तहस नहस कर दिया।सात दिन तक थाने को घेरे रखा।जेल पर आक्रमण करके सभी सरकारी दफ्तरों, बिल्डिंगों,पुलिस चौकियों आदि को जलाकर तहस नहस कर दिया गया। नतीजा यह हुआ के अंग्रेज कलेक्टर थोर्नबिल वहां से भेष बदलकर भाग खड़ा हुआ।इसमें उसके वफादार दिलावर ख़ान और सेठ जमनाप्रसाद ने मदद की।दोनों को ही बाद में अंग्रेजी सरकार से काफी जमीन व इनाम मिला।

अब राया को राजा साहब ने अंग्रेज़ो से स्वतंत्र करवा दिया।उन्होंने अंग्रेजों के बही खाते व रिकॉर्ड्स जला दिए जिसके माध्यम से वे भारतीयों को लूटते थे। फिर अंग्रेज समर्थित व्यापारियों को धमकी भेजी गई के या तो देश सेवा में ऊनका साथ दें वरना सजा के लिए तैयार रहें।जो व्यापारी नहीं माने उनकी दुकान से सामान लुटा गया व उनके बही खाते जला दिए गए क्योंकि वे अंग्रेजों के साथ रहकर गरीबो से हद से ज्यादा सूदखोरी करते थे।राजा साहब के समर्थन में पूरे मथुरा के जय हो के नारे लगने लगे,उन्हें गरीबो का राजा,हमेशा अजेय राजा जैसे शब्दों से जनता द्वारा सुशोभित किया जाने लगा।
राजा देवी सिंह ने एक सरकारी स्कूल को अपना थाना बनाया।उन्होंन अपनी सरकार पूर्णतः आधुनिक पद्धति से बनाई। उन्होंने कमिशनर, अदालत, पुलिस सुप्रिडेण्टेन्ट आदि पद नियुक्त किये।वे रोज यहां जनता की समस्या सुलझाने आते थे। उन्होंने राया के किले पर भी कब्जा कर लिया। वे रोज जनता के बीच रहते थे और उनकी समस्या का समाधान करते थे।

वे हमेशा देशभक्ति के जज्बे को जगाते हुए पूरे क्षेत्र में घूमते थे।अंग्रेजों के यहां घुसनी पर पाबंदी थी।उन्होंएँ क्रान्तिकारियो संग कई बार अंग्रेजों को लूटा व आम लोगो की मदद की।

फांसी

उन्होंने 1 साल तक अंग्रेजों के नाक में दम रखा।अंग्रेजी सल्तनत की चूल तक हिल गयी थी अंग्रेज अधिकारी तक उनसे कांपते थे।अंत मे अंग्रेजों ने कोटा से आर्मी बुलाई और बिल ने अंग्रेज अधिकारी डेनिश के नित्रत्व में एक बड़ी आर्मी के साथ हमला किया और धोखे से उन्हें कैद कर लिया।फिर 15 जून 1858 को उन्हे राया में फांसी दी गयी।उनके साथी श्री राम गोदारा व कई अन्य क्रांतिकारियों को भी उनके साथ ही फांसी दी गयी।अंग्रेजों ने फांसी से पहले उन्हें झुकने के लिए बोला था लेकिन राजा साहब ने कहा के मैं मृत्यु के डर से अपने देश के दुश्मनों के आगे कतई नहीं झुकूंगा।

इस तरह एक देशभक्त साधु ने देश पर संकट आने पर अपनी तलवार पुनः उठा कर क्षत्रिय धर्म का पालन किया व देश सेवा करते हुए हंसते हंसते फांसी पर झूल देश के लिए बलिदान हो गया ।
आओ हम सभी उनके बलिदान को नमन करे ।