फिर बढ़ा लॉकडाउन क्योंकि वो नरभक्षी कोरोनासुर अभी भी जिंदा है...के सी शर्मा





घर की ड्योढ़ी पर बैठा मैं.. एक प्रश्न हूं..."कब हटेगा पूरी तरह लॉकडाउन ?"
और....
इस प्रश्न का "उत्तर" भी मैं स्वयं ही हूं
क्योंकि उस  कोरोनासुर से बचाव ज़रूरी है....... !

1908-1909 की है जब राजद्रोह के केस में अंग्रेजों ने महर्षि अरविन्द जी को जेल की कोठरी में डाल दिया था।

"वंदे मातरम्" पत्रिका में प्रकाशित एक आलेख में महर्षि अरविन्द जी बताते हैं की - मुझे कारागार में वृक्ष के नीचे भगवान श्रीकृष्ण के मनोहर छवि का दर्शन हुआ ।
मैं उनके बंसी की मधुर धुन सुनकर आत्ममुग्ध था, मुझे ध्यान में भगवान श्री कृष्ण ने स्पष्ट शब्दों में आदेश देते हुए कहा कि- ‘इस एकांतवास में हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता का अनुभव तुम्हें प्राप्त हुआ है ।

इस धर्म की श्रेष्ठता से तुम्हें सारे विश्व को विशुद्ध करना होगा, साथ ही इसेे अपने देशवासियों के हृदय पर अंकित करने का तुम प्रयास करो ।

सबको मिलकर सनातन धर्म का संवर्धन करना चाहिए, इसीमें भारत का सच्चा गौरव है।’'
आज यह प्रसंग हम सभी के लिए अनुपालनीय है,
अभी "कोरोना" जैसी वैश्विक महामारी से पूरा विश्व संक्रमित है, योरोपीय देशों में कोविड-19 से प्रभावितों के मौतों से हलाकान है, कुछ देशों की स्थिति देखकर मन सिहर उठता है,
किन्तु भारत ने स्थितियों को संभाल लिया, इस महामारी ने वो कहर यहां नहीं बरपा सका जो अमेरिका आदि विकसित देशों में मौत का तांडव किया।

दरअसल भारतीय संस्कृति ने लॉकडाउन का बड़े आसानी से शत् प्रतिशत् पालन इसलिए कर पाया क्योंकि यह हमारी संस्कृति है।
 वेदानुसार निर्वाह, वानप्रस्थ (आइसोलेशन) में परिवार से पृथक वन व अन्य किसी स्थान पर आश्रम में पत्नी सहित या अकेले रहकर (क्वारंटिन) अध्ययन, अध्यापन, चिन्तन, मनन, सन्ध्या-उपासना-योगाभ्यास आदि में संलग्न रहना तथा अन्तिम चतुर्थ संन्यास आश्रम में देश व समाज के कल्याण के लिए अपने ज्ञान व योग्यता का बिना किसी लोभ व आर्थिक प्रयोजन के प्रचार व प्रसार करना होता है।

इनका पालन व आचरण ही संस्कृति है।
सामान्य, सरल व साधारण धोती, कुर्ता धारण कर व शुद्ध भोजन कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में एकनिष्ठ संलग्न रहना ही वैदिक व भारतीय संस्कृति है।

अब 3 मई की आधी रात अर्थात् 4 मई से आगे बढ़ाकर कुछ छुट दे 17 मई तक भारत में लॉकडाउन जारी रहेगा,

लेकिन कुछ चिह्नित रेड जोन में कड़ाई से लॉकडाउन रहेगा।
किन्तु.... भारतीय आम जनमानस से आग्रह है कि- बिना किसी उद्देश्य के मनोरजंन, सुरम्य स्थानों की यात्रा करना व अनावश्यक घूमना - फिरना बिल्कुल भी ना करें।

यदि हम अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं तो "कोरोनासुर" का कुप्रभाव हो सकता है।

अतः हम सभी ने 24 मार्च से 3 मई तक वानप्रस्थ जीवन प्रबंधन कर तपस्या किया है उस पर पानी फिर जाएगा अतः जबतक इस "कोरोनासुर" का वध ना हो जाए तब तक भारत को सावधानी बरतनी चाहिए।