हकीकत का आईंना- केपी शर्मा की कलम से
ब्राह्मण पुत्र गेंदालाल दीक्षित जी का जन्म 30 नवम्बर 1888 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के मई गाँव में हुआ था ।
मृत्यु 21 दिसम्बर 1920
मात्र 3 वर्ष की आयु में माँ को खो देने वाले गेंदालाल का बचपन बिना परवरिश के बिता
देश की सेवा में बिना रुके बिना थके क्रांतिकारियो की मदद करते रहे ।
अंग्रेजों की फोर्स को चकमा देते रहे।
काफी मुकदमा दायर किये गए अंग्रेजों ने इन पर।
अंग्रेज कभी उनको पकड़ नहीं पाये ।
1905 में हुए बंग भंग के बाद चले स्वदेशी आंदोलन का उन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा क्रांति के इस दौर में गेंदालाल को एक ऐसी योजना सूझी ,शायद किसी को सूझती उस वक़्त डकैतो का बहुत बड़ा प्रहार था ये डकैत बहादुर तो बहुत थे पर ये अपने स्वार्थ के लिए लोगों को लूटते थे गेंदालाल ने डकैतो को गुप्त रूप से इकट्ठा किया और शिवाजी समिति बना ली शिवाजी की भांति उत्तर प्रदेश में ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ गतिविधियां शुरू कर दी
क्रांतिकारी नेताओं में वो मशहूर होने लगे उनकी बहादुरी के किस्से रामप्रसाद बिस्मिल तक पहुँचे तो उन्होंने गेंदालाल से मदद मांगी ।
आजादी की नींव रखने वाले ऐसे न जाने कितने ही क्रांतिकारी थे
जिनका नाम कभी इतिहास हम तक न पहुंचा पाया
परन्तु देश सदा इन अनसुने ,अनदेखे गुमनाम क्रांतिकारियों का ऋणी रहेगा।