जाने क्या है मृत्यु का रहस्य-के सी शर्मा

      
 मृत्यु इस पृथ्वी की सबसे बड़ी माया है विज्ञान कहता है कि क्रोमोजोम्स की मृत्यु ही मनुष्य की मृत्यु है । ये क्रोमोजोम्स (गुणसूत्र) एक निश्चित अवधि तक ही सक्रिय रहते हैं । परन्तु अध्यात्म कहता है कि मनुष्य एक भौतिक ईकाई मात्र नहीं है, बल्कि एक अभौतिक पदार्थ है, जिसे आत्मा कहते हैं, जो मृत्यु के समय शरीर से निकलकर शून्य में चला जाता है एवं समय पाकर पुनः नया शरीर ग्रहण करता है ।

 जिस प्रकार सोने से पूर्व स्वप्न की छाया पड़ने लगती है, उसी प्रकार तेरह दिन पूर्व मृत्यु की छाया भी पड़ने लगती है । उस समय जागरुक व्यक्ति मृत्यु की भविष्यवाणी कर सकता है । पाँच-छह घण्टे पहले या एक-दो दिन पूर्व तो इसके संकेत स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं, जिससे कईं व्यक्ति अपनी मृत्यु की पूर्व सुचना दे देते हैं । जो नित्य सोते या उठते समय प्रार्थना का प्रयोग करते हैं अथवा ध्यान करते हैं, उन्हें भी अपनी मृत्यु के समय का पता चल जाता है और इसके अलावा निर्मल चित्त वालों को भी इसका आभास हो जाता है ।

 जैसे वृक्ष को काटने पर भी उसे सूखने में कईं दिन लग जाते हैं, वैसे ही शरीर से निकलने पर भी आत्मा की ऊर्जा कईं घण्टों तक उसमें से निकलती रहती है । हृदय की धड़कन बन्द होने पर डॉक्टर मनुष्य को मृत घोषित कर देते हैं, जिसे क्लीनिकल डैथ (शारीरिक मृत्यु) कहा जाता है । किन्तु जब शरीर की सम्पूर्ण ऊर्जा बाहर निकल जाती है तो उसे बायोलॉजिकल डैथ (जैविक मृत्यु) कहा जाता है । इसमें कईं घण्टे लग जाते हैं । 

 जैविक मृत्यु से पूर्व यदि विशेष विधियों द्वारा आत्मा को शरीर में पुनः प्रवेश कराया जा सके तो वह पुनः जीवित हो सकता है । यह ठीक ऐसे ही सम्भव है जैसे किसी पौधे को जमीन से उखाड़ देने पर भी थोड़े समय बाद पुनः लगाने पर जीवित हो जाता है । कभी कभी ऐसा भी होता है कि जीवात्मा शरीर को छोड़ देता है, किन्तु शरीर यदि बेकार नहीं हुआ तो अन्य कोई आत्मा प्रवेश कर जाती है । 
जिससे वह मृत शरीर पुनः जीवित हो उठता है ।

 कोई जीव जब मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उसकी चेतना (आत्मा) वातावरण में चली जाती है और वह चेतना अन्तकालीन चिन्तन की वजह से अपने अनुरुप प्रवृत्ति वाले ऊर्जा शरीर में सम्पर्क करके पुनः स्थापित हो जाती है । उस समय आत्मा बीजरुप अतिशूक्ष्म बिन्दू होती है ।
 उसमें केवल कर्मों के संस्कार होते हैं, उसका कोई प्रकट अस्तित्व किसी भी रुप में नहीं होता । संस्कार जहाँ एकत्रित होता है वह विरल तत्त्व बिन्दू है, यही जीवात्मा है । 
यह भौतिक तत्त्वों से शून्य मात्र है । वहाँ केवल संस्कार हैं और यह संस्कार ही फिर से शरीर धारण करता है । जब संस्कार शून्य हो जाते हैं, फिर पुनर्जन्म नहीं 
होता ।