कलम का सौदेबाज कभी सच्चा पत्रकार नहीं हो सकता



*जानिए,पत्रकारिता की ताकत-!*


"कलम की सौदाबाजी करने वाला कभी "पत्रकार" हो नही शकता"

"कलम का सौदेबाज "पत्रकार" नहीं बल्कि  दलाल होता हैं,
और
कलम का दलाल कभी "पत्रकार" हो नही शकता"

 "अभद्र भाषा का उपयोग करने वाला कभी भी पत्रकार की व्याख्या में नहीं आता"


पत्रकारिता राष्ट्रीय चेतना एवं जन जागरण का विषय हैं किसी की चापलूसी का नहीं

पत्रकार हूं सच ही लिखता हूँ
और
सच ही लिखूँगा
तुम मेरी बातों का बुरा मानना छोड़ दो।
सच लिखने से पहले इजाज़त लूंगा तुमसे..
तुम यह गलतफहमियां पालना छोड़ दो ।

ठीक है कभी एक वक्त की ही रोटी मिलेगी,
तुम मेरे निवालों का हिसाब लगाना छोड़ दो।

करूँगा पर्दाफाश सब गुनाहों और घोटालो का,
सच पे झूठ की कालिख लगाना छोड़ दो ।

कभी कटा जाऊंगा कभी रौंदा जाऊंगा,
कभी जहर तो कभी गोलियां भी खाऊंगा,

हां मारा जाऊंगा , पर क्या खामोश हो जाऊंगा

रोक लोगे मुझे , ये झूठे ख्वाब सजाना छोड़ दो ।

सच के खजाना लेकर धूमता हूं..

मेरे खून की धार ही बनेगी स्याही मेरी कलम की,
समझौता कर लूंगा हालात से ये आस लगाना छोड़ दो ।

झूठ के तराजू में मुझे तुम तौलना छोड़ दो

 पत्रकार पिस्तौल नहीं कर्म की मार रखते हैं ।
दिशा बदले तो भाषा बदलें इरादों में दम और सोच मैं गोली की रफ़्तार रखते हैं । 
अरे.. मिट गए पत्रकार को मिटाने वाले क्योंकि पत्रकार अपनी जवानी को आग में पकाने का जिगर रखते हैं। 

पत्रकार आवाज नहीं ,बल्कि शेर की दहाड़ रखते हैं ।

पत्रकार वो सुनहरे पन्ने हैं जिनको इतिहास भी अपने अंदर समाने की कोशिश करता है ।
तभी तो दुनिया कहती है..,
कि 
खतरनाक है पत्रकार की कलम का बार जिस पर होता है...,
वह उठता नहीं बल्कि इस दुनिया में ही बेनकाब हो जाता है 
मौत को देखकर पत्रकार किसी के पीछे नहीं छुपते बल्कि सामने ऐसे शेर की तरह सीने पर वार करते हैं, 

पत्रकार मरने से कभी नहीं डरते बल्कि निर्भय होकर इंसाफ के लिए और अन्याय के खिलाफ हर पल लड़ने को तैयार रहते हैं,

पत्रकार अपने आप में गर्व करते हैं । 
क्योंकि वह समाज में फैले दुश्मनों को बेनकाब कर उन्हें पर्दाफाश करने का जिगर रखते हैं ।
अगर कोई ना दे पत्रकार का खुश रहने की दुआ तो भी कोई बात नहीं

वैसे भी पत्रकार खुद कभी रहते नहीं  खुश, बल्कि खुशियाँ दूसरों में बांट देते हैं।

।। जय देवर्षि नारद ।।