डूबता किसान टूटता विश्वास


बदायूं-- जब बात देश की हो जब बात सुरक्षा और व्यवस्था की हो तब जवान और किसान को ही याद किया जाता है जय जवान जय किसान का नारा कहने में तो बहुत सरल और अच्छा लगता है पर इनकी दर्द भरी कहानी सुनकर शायद ही कोई अपने आंसुओं को रोक सके जी हां मैं आज बात कर रहा हूं उस किसान की जिसको अन्नदाता की संज्ञा दी जाती है परंतु उसके दर्द को सभी सरकारों ने बढ़ाया ही है कमाने का कार्य किसी ने नहीं किया सत्तर पचहत्तर सालों का हो या आज की व्यवस्था का किसान को सिवा परेशानी के कुछ भी नहीं मिला किसान दिन-रात एक करके मेहनत मजदूरी से अपने खेत में  फसल उगाता  है उस फसल में लगने वाली सामग्री चाहे वे यूरिया डीएपी अन्य कोई सामग्री हो उचित मूल्यों पर प्राप्त होती है परंतु उसके द्वारा उत्पन्न उसी फसल का मूल्य निम्न स्तर पर पहुंचा दिया जाता है मैंने स्वयं महसूस किया है लगभग पिछले 1 साल से किसान को आर्थिक तौर पर भारी नुकसान सहन करना पड़ रहा है ईश्वरीय शक्ति भी किसान से रुष्ट नजर आने लगी है सरकारों की तरह उनका भी रवैया किसान के प्रति ठीक नहीं है ऐसी कोई फसल नहीं हुई है जिसे बारिश से भारी नुकसान ना हुआ वर्तमान स्थिति को देखकर सभी लोग समझ सकते हैं इस समय एक और को रोना महामारी तो दूसरी ओर अंधाधुंध बारिश तूफान किसान की फसल को चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी इसके उपरांत सरकार मूल्यों का भी कोई सपोर्ट नहीं है उन्नीस सौ ₹25 का गेहूं का सरकारी रेट है पर अंत संबंधित केंद्र के संचालित कर्मी किसानों से 40 से ₹50 प्रति कुंटल लेकर 1925 का रेट देते हैं वही सरकार को सोचना चाहिए कि सरकार द्वारा निर्धारित हर चीज का मूल्य किसान से पूरा लिया जाता है तो फिर किसान का निर्धारित मूल्य किसान को क्यों नहीं दिया जाता आखिर क्यों इस व्यवस्था का शिकार किसान ही क्यों आखिर क्यों की तलाश में भटकते भटकते कई ऐसे बिंदु मिले कि आप भी सोचने को मजबूर हो सकते हैं जैसे पीएम किसान सम्मान निधि जब किसान ऑनलाइन कर देता है सारे दस्तावेज लगाकर फिर उसे उन दफ्तरों के चक्कर क्यों काटने पड़ते हैं जहां उससे रुपए आते जाते आखिर यह व्यवस्था क्यों बनाई जब दफ्तरों के ही चक्कर काटने थे तो ऑनलाइन का चक्कर क्यों चलाया यह ऑनलाइन के चक्कर में किसान को दो-दो जगह रुपया से और आर्थिक तंगी और कई कई दिन भागना पड़ता है इस पर विचार और मंथन करने की जरूरत है कई ऐसे अनसुलझे पहलू किसान और सरकार के बीच उलझे हुए हैं की इन्हें सुलझा  जाने के लिए सिर्फ सरकार को ही सोचना पड़ेगा
आजकल हमारे देश में नगदी फसलें उगाने का दौर चल रहा है जिनकी लागत बहुत अधिक होती है परंतु मार्केट वैल्यू उचित ना होने के कारण किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है देश में किसानों की स्थिति चिंताजनक है बैंकों बा अन्य संस्थानों से किसानों को ऋण उनकी जरूरत के मुताबिक आसानी से नहीं मिलता है जिस कारण उनको साहूकारों से भारी ब्याज पर ऋण लेकर खेती में लगाना पड़ता है वहीं सरकार की गलत नीतियों के कारण कृषि का उचित मूल्य ना मिल पाना किसानों की स्थिति खराब करना है कर्ज के इस खतरनाक खेल में बुरी तरह डूबता चला जाता है किसान इन किसानों की ज्वलंत समस्याओं पर सरकार है सिर्फ बहस करती हैं केंद्र सरकार की योजना हो या राज्य सरकार की योजना किसानों की योजना हो चाहे अधिकारियों की  दासी बन के सिर्फ अधिकारी कर्मचारियों की ही रह जाती है किसान दर-दर भटकता पर उसके आंसुओं को पूछने वाला कोई दिखाई नहीं देता पूरा विश्व पटल पर अगर देखा जाए तो जवान और किसान के हाथ में ही यह विश्व की कमान है परंतु यह राजनीति का फंडा सिर्फ वोट बैंक तक ही सीमित रह कर किसानों को कुछ लालच देकर ही शांत कर देता है मोदी और योगी सरकारों ने किसान हित में जो कदम उठाए हैं वह काफी नहीं है विश्वव्यापी महामारी के चलते किसान आर्थिक मंदी और भ्रष्ट व्यवस्था का शिकार हो चुका है इससे उबरने का प्रयास करें सरकार है
किसी ने सही कहा है 
---  मेरे खेत की मिट्टी से पलता है तेरे शहर का पेट
मेरा नादान गांव अभी उलझा है किस्तों में
क्योंकि किसानों पर आर्थिक संकट आजकल का नहीं यह बरसों से चला आ रहा है इसलिए मोदी और योगी सरकार को शहद समय लगे किसानों की समस्या को समझने में कुछ हद तक किए गए कार्य आपके किसान हित में हैं परंतु मेरा एक सुझाव है जो भी किसानों से संबंधित व्यवस्था ऑनलाइन की गई है सभी दस्तावेज लगाने के बाद किसानों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने की व्यवस्था खत्म कर दी जाए इस व्यवस्था का किसानों पर बहुत बुरा असर पड़ता है दो-दो तीन-तीन दिन से किसान तहसील और ब्लाकों के चक्कर काटकर बैठ जाते हैं सरकार जो भी योजना किसानों को दें सीधे-सीधे मुहैया कराई जाए यह बेहतर होगा इस समय मक्का की फसल चौपट हो चुकी है बारिश के चलते इसका ध्यान रखते हुए सरकार को मक्का का उचित मूल्य निर्धारित करना चाहिए जिस तरह गेहूं का 1925 निर्धारित किया पर  किसानों को उन केंद्रों पर ठगा जा रहा है यह खर्च वह खर्च लगा कर किसान से 40 50 रुपए ऐंठने का काम जनपद बदायूं में चल रहा है सरकार को किसान हित में ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे आने वाले समय में किसान आत्महत्या को मजबूर ना हो क्योंकि जब किसान कर्ज में डूबता है तब मैं मजबूरी में टूटता है सरकार और व्यवस्था इन दोनों के बीच एक छोटी सी कढ़ी बनकर काम करने वाली इस किसान व्यवस्था का ध्यान रखना बहुत जरूरी है भारत कृषि प्रधान देश है तो सरकारें किसान के हित में ही कार्य करें देश हित में उचित होगा

गोविंद राणा