स्वo हरिवंश राय बच्चन जी की अप्रतिम, अद्वितीय रचना “मधुशाला” से:
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला,
किस पथ से जाऊँ, असमंजस में है वो भोला भाला।
अलग अलग पथ बतलाते सब, पर मैं ये बतलाता हूँ,
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जायेगा मधुशाला II
40 दिनों के पहले व दूसरे लॉक डाउन में जनता ने शराब न पी कर, कुछ अपवाद को छोड़ कर, बता दिया कि वह बिना शराब के जिंदा रह सकती है।
परन्तु शराब के ठेके खोल कर सरकार ने बता दिया कि शराब के बिना सरकार मर जाएगी।
राज्य सरकारों द्वारा राजस्व नुकसान का हवाला दे कर उनके अनुरोध पर केन्द्र द्वारा शराब की दुकानों को खोलने का निर्णय, कुछ शर्तों के साथ, करोना महामारी की इस विषम परिस्थिति में अति दुर्भाग्य पूर्ण है, सरकार की अदूरदर्शिता को दर्शाता है और किसी भी दृष्टिकोण से इसको उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
DNA, ZEE News के अनुसार राज्य सरकारों का राजस्व 15-30% शराब से आता है और इसी कारण से शराब के ठेकों को खोलने का निर्णय लेना पड़ा।
क्या इस करोना काल में राज्य सरकारों का शेष 85-70% राजस्व पूरा आ रहा है?
शेष 85-70% राजस्व में से कितने प्रतिशत राजस्व आ रहा है ? क्या राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार को पेट्रोलियम उत्पाद, अन्य उत्पादों, मैनुफेक्चुरिंग सैक्टर से, रियेलिटी सेक्टर से, इनकम टैक्स से, जीएसटी से………. राजस्व की हानि नहीं हो रही है ?
क्या शराब ईशेनसियल कमोडिटी में आती है ? क्या वित्त की समस्या केवल सरकार को हो रही है?
क्या आमजन – छोटे व्यापारी, प्रोफेशनल श्रमिक……..आदि सभी को धन की समस्या नहीं हो रही है?
यदि सरकार पर अनेकों आवश्यक खर्च की ज़िम्मेदारी है तो आमजन – छोटे व्यापारी, प्रोफेशनल, श्रमिक……..आदि सभी को आवश्यक खर्च करने होते हैं इस सच्चाई से विमुख नहीं हुआ जा सकता।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने पहले कहा, “जान पहले” क्यों की उक्ति है, ‘जान है तो जहान है’, फिर कहा, “जान भी, जहान भी”।
जिस समय उन्होने शराब की दुकाने खोलने का, कुछेक शर्तों के साथ, निर्णय लिया उनके मस्तिष्क में ‘जहान’ की प्रथिमिकता ‘जान’ पर कभी नहीं रही होगी।
परंतु आश्चर्य है इतने अनुभवी होने के बावजूद उन्होने मनुष्य प्रवृति को कैसे नजरंदाज कर दिया?
जबकि वह वास्तविकता से भली भांति परिचित थे, उन्हें ज्ञान था कि लॉक डाउन के दौरान कितने लोग स्वेच्छा और निष्ठा से लॉकडाउन नियमों और सोशल डिसटेंसिंग का पालन कर रहे हैं, किस प्रकार इनको तोड़ा जा रहा है।
आपकी एक छोटी सी गलती आपके अनेकों महान कार्यों पर पानी फेर देती है।
जिस प्रकार परीक्षक की नजर आपकी गलती पर पहले पड़ती है, उसी प्रकार जनता की नजर आपके एक गलत फैसले पर पहले पड़ती है न कि आपके दस सही फैसलों पर।
वैसे तो आपके फैसलों की सराहना और आलोचना दोनों होती है परंतु इस शराब की दुकाने खोलने के फैसले की प्रशंसा शायद ही कोई कर रहा हो।
कल से विभिन्न TV चैनलों पर हम देख रहे हैं कि किस प्रकार लोग लॉकडाउन नियमों और सोशल डिसटेंसिंग की धज्जियां उड़ा रहे हैं मात्र एक बोतल शराब लेने के लिए।
इनमें अधिकांश मध्यम, उच्च मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग स्पष्ट दृष्टिगत हैं।
जैसी लाईन सुराप्रेमियों ने लगाई और घंटों लाईन में खड़े रह कर धैर्य का परिचय दिया, वैसी लाईन तो गरीब भूख से पीड़ित गरीबों ने नहीं लगाई।
ऐसी लाईन तो नोटबंदी के बाद बैंकों में नहीं लगी, ऐसी लाईन रेल आरक्षण में भी कभी नहीं दिखाई दी।
ऐसा धैर्य भी कभी दिखाई नहीं दिया। वाकई मेरा देश महान!
क्या चौदह दिन और शराब बंदी रखकर राज्य सरकारें एक हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त घाटे का कड़वा घूंट सहन नहीं कर सकती थी?
कल के दृश्य को देख कर दिल्ली सरकार ने शराब पर 70% करोना टैक्स और इसके उपरांत आंध्र सरकार ने शराब पर 75% अतिरिक्त टैक्स लगाया।
क्या इससे उपरोक्त दृश्य में कोई कमी हुई ?
क्या इससे लॉक डाउन के नियमों के पालन कि समस्या का समशन हो गया?
क्या यह काफी है ? TV चैनलों पर दिखाये जा रहे दृश्यों से तो नहीं लगता है कि कोई कमी हुई है।
क्या हमारी सरकारों का एकमात्र उद्देश्य राजस्व ही है?
यदि ऐसा नहीं है तो तत्काल प्रभाव से इस छूट/ आदेश को वापस क्यों नहीं लिया गया ?
यदि यह कहा जा रहा है, “नीलाम हुई कोरोना योद्धाओं की तपस्या, सुरा प्रेमियों ने रौंदे स्वास्थ्य सुरक्षा के मानक” तो यह अतिशयोक्ति नहीं है।
इन सुरा प्रेमियों में एक भी करोना संक्रमित होगा, और अवश्य ही होगा एक नहीं अनेक, तो करोना संक्रमितों की वृद्धि किस दर से होगी इसका अनुमान लगाना भी कठिन है।
अभी तक “तबलीगी जमात” करोना प्रसार की दर को बढ़ा रही थी और अब “शराबियों की जमात” अपना योगदान देगी। पुलिस कर्मी अभी तक जो जन जन की सहायता और “तबलीगी जमात” को नियंत्रित करने में लगे थे अब उनकी प्राथमिकता इस “शराबियों की जमात”को नियंत्रित करने की होगी।
शराब समाज का सभी वर्ग पीता है, परंतु “शराबी” की संज्ञा केवल निम्न वर्ग के शराब पीने वाले को ही क्यों दी जाती है ? अन्य वर्गों के लिए तो यह स्टेटस सिंबल होता है, बड़ी-बड़ी मीटिंग, बड़े-बड़े फैसले, समाज की कुरीतियों, समाज की अनेकों समस्याओं की चर्चा “ड्रिंक टेबल/ ऑन ड्रिंक” पर होती है।
शराब की दुकाने खोलने के साथ ही अनेकों व्यंग्य सोशल मीडिया पर आ रहे हैं जिनमें सच्चाई साफ झलकती है – ‘दारू सरकार के स्वास्थ के लिए जरूरी है’, ‘लॉक डाउन के दौरान हो रही शराब की काला बाजारी खत्म’, ‘सांप्रदायिकता एकाएक छूमंतर हो गई’, ‘लॉक डाउन में भूख से गरीब तो नहीं मरा पर सरकार शराब बंद होने से जरूर मर गई’, ‘कोई भूखा नहीं मर रहा है, बल्कि प्यासा मर रहा है’, ‘सैनेटाइजर की कमी होने के कारण शराब की बिक्री खोली गई’, ‘करोना से सभी भयभीत थे लेकिन शराब ने करोना काभय दिल से निकाल दिया’, ‘सुना था शराब से सभी गम भाग जाते हैं, अब करोना भी अवश्य भाग जाएगा’,
‘सरकार को अब ज़्वेलरी शॉप और प्रोपर्टी डीलर की दुकानें भी खोल देनी चाहिए, इनकी आवश्यकता होगी ज़्वेलरी और मकान बेचना पड़ सकता है’, ‘दारु थी इसलिये खरीद लिये, राशन होता तो भीख माँग लेते’, ‘अब समझ में आया एक शराबी के पैर क्यों डगमग जाते हैं उसके कन्धों पर देश की अर्थ व्यवस्था का बोझ होता है’,
“बाप 50 रुo की बीड़ी पीता है,भाई 100 रुo की सिगरेट पीता है गुटका खाता है और माँ बहनें 2 रुo किलो गेहूं लेने के लिए लाईन में खड़ी होती हैं, , …………..!
शराब से केवल स्वास्थ ही खराब नहीं होता है बल्कि इससे धन का ह्रास होता है और बुद्धि भी भ्रष्ट होती है।
आपने अक्सर यह तो सुना होगा कि अमुक व्यक्ति ने पैसे की तंगी के कारण पढ़ाई छोड़ दी, परंतु शायद ही कभी सुना होगा अमुक व्यक्ति ने पैसे की तंगी के कारण शराब छोड़ दी।
कभी हमारे नरेंद्र मोदी जी का मानना था कि अगर देश के युवाओं ने शराब नहीं छोड़ी तो समाज तबाह हो जाएगा।
समझ में नहीं आता आज उन्हें क्या हो गया है?
स्वo प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया, “जय जवान, जय किसान” क्या अब राज्य सरकारों की सोच के मद्दे नज़र इसमें “जय शराब” जोड़ कर इसे, “जय जवान, जय किसान और जय शराब” बना दिया जाय ?
हर व्यक्ति में कोई न कोई नशा होता है।
किसी को धन का, किसी को संगीत का, किसी को नृत्य का……..किसी को देश भक्ति, शहादत (हमारे जवान) का और किसी को शराब का।
कल के दिन लॉक डाउन के बाद पहले दिन शराब की दुकाने खुलीं और कल ही के दिन समाचार में आया उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में शनिवार को हुई आतंकी मुठभेड़ में सेना के दो अफसरों (कर्नल आशुतोषऔर मेजर अनुज सूद) समेत सुरक्षा बलों के पांच जवान शहीद हो गए और जम्मू-कश्मीर पुलिस का एक जवान भी शहीद हो गया।
यक्ष प्रश्न – कल ज़्यादातर चैनलों पर शराब का मुद्दा छाया रहा और इन वीर देश भक्त जवानों की शहादत गौड़ रही, क्यों ?
क्या यही हमारी संवेदनशीलता है?
हम सिने कलाकारों को तो दिन भर श्रद्धांजलि देते हैं, पर इन वीर जवानों को श्रद्धांजलि देने का न तो हमारे मन में ख्याल आता है और न ही हमारे पास वक्त है।
फिल्मी हीरो के नाम तो हमारी जीभ पर रटे होते हैं, परंतु इन वास्तविक जीवन के देशभक्त हीरों के नाम कितने लोगों को मालूम होते हैं?
किसी जाँबाज जवान पर कोई फिल्म बनती है तो उस फिल्मी हीरो का नाम हमें याद रहता है, परंतु वास्तविक हीरो का नाम हम भूल जाते हैं यदि याद भी होता है तो उस जाँबाज के नाम पर हमारे सामने फिल्मी हीरो की छवि आती है न कि असल जाँबाज की, क्यों?