जानिए,मंदिर की रखवाली का रहस्य और ज्योतिर्लिंग की पूजा से पहले होती है इनकी पूजा -के सी शर्मा



*तीर्थ यात्रा पूर्ण करने के लिए इनके दर्शन हैं जरूरी...*

सनतान धर्म के प्रमुख धामों व 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल केदारनाथ हिंदुओं में एक विशेष दर्जा रखता है। वहीं हिंदू धर्म की मान्‍यताओं के अनुसार, देश में जहां-जहां भगवान शिव या देवी के सिद्ध मंदिर हैं, वहां-वहां भैरवजी के मंदिर भी हैं और इन मंदिरों के दर्शन किए बिना भगवान शिव व देवी मां दोनों के दर्शन करना अधूरा माना जाता है।

शिव मंदिरों मे चाहे काशी के बाबा विश्‍वनाथ हों या उज्‍जैन के बाबा महाकाल। दोनों ही स्‍थानों पर काल भैरव के मंदिर हैं और भक्‍त भगवान शिव के दर्शन के बाद इन दोनों स्‍थानों पर भी आकर सिर झुकाते हैं तब ही उनकी तीर्थ यात्रा पूर्ण मानी जाती है।

ऐसे ही भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ में भी भुकुंट भैरव भैरवनाथ का मंदिर है, जो मंदिर से करीब 300 मीटर की दूरी पर है। यहां तक कि पिछले वर्षों में आईं केदारनाथ त्रासदी को भी यहीं से जोड़कर देखा जाता है। यहां भी हर साल केदारनाथ के कपाट खुलने से पहले भैरव मंदिर में पूजापाठ की जाती है। आइए जानते हैं भुकुंट भैरव के मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें…

बाबा भुकुंट भैरव को केदारनाथ का पहला रावल माना जाता है। उन्‍हें यहां का क्षेत्रपाल माना जाता है। बाबा केदार की पूजा से पहले केदारनाथ भुकुंट बाबा की पूजा किए जाने का विधान है और उसके बाद विधिविधान से केदानाथ मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।

भुकुंट भैरव का यह मंदिर केदारनाथ मंदिर से करीब आधा किमी दूर दक्षिण की ओर स्थित है। यहां मूर्तियां बाबा भैरव की हैं जो बिना छत के स्‍थापित की गई हैं।

भैरव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है। पुजारियों के अनुसार, हर साल मंदिर के कपाट खोले जाने से पहले मंगलवार और शनिवार को भैरवनाथ की पूजा की जाती है।

स्‍थानीय लोग बताते हैं कि वर्ष 2017 में मंदिर समिति और प्रशासन के लोगों को कपाट बंद करने में काफी परेशानी हुई थी। कपाट के कुंडे लगाने में दिक्‍कत हो रही थी औ‍र फिर उसके बाद पुरोहितों ने भगवान केदार के क्षेत्रपाल भुकुंट भैरव का आह्वान किया तो कुछ ही समय के बाद कुंडे सही बैठ गए और ताला लग गया। यहां शीतकाल में केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा भुकुंट भैरव के भरोसे ही रहती है।

परंपरा के अनुसार, भगवान केदारनाथ की चल विग्रह उत्‍सव डोली के धाम रवाना होने से पहले केदारपुरी के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ की पूजा का विधान है। मान्‍यता रही है कि भगवान केदारनाथ के शीतकालीन गद्दीस्‍थल उखीमठ के ओंकारेश्‍वर मंदिर में विराजमान भैरवनाथ की पूजा के बाद भैरवनाथ केदारपुरी को प्रस्‍थान कर देते हैं। पुराणों में भी बताया गया है कि बिना भैरों के दर्शन के यात्रा अधूरी मानी जाती है। सर्दियों में भुकंट भैरव ही केदारनाथ के मंदिर की रखवाली करते हैं।

खास बात ये भी है कि केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व बाबा भैरवनाथ की पूजा-अर्चना केवल मंगलवार व शनिवार को की जाती है।

यहां तक कहा जाता है कि जून में आई बद्री केदार आपदा के बाद केदारनाथ में पुनः बुधवार को हुई पूजा के दौरान भुकुंट भैरव ने अवतरित होकर तीर्थ पुरोहितों को चेताया था। भुकुंट भैरव ने तीर्थ पुरोहितों को सुधरने की नसीहत दी और यह भी कहा कि ऐसा ना हुआ तो भविष्य में इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे, जून में आई आपदा तो केवल संकेत भर थी।