धर्मशास्त्रों के अनुसार इस कुए के दर्शन मात्र से ही नागदंश के भय से मुक्ति मिल जाती है। के सी शर्मा
आज हम आपको एक अद्भुत कुए से अवगत करने जा रहें है। जिसके बारे में मान्यता है कि यह कुआ इतना गहरा है की इसकी अथाह गहराई नागलोक तक जाती है। जी हाँ यह सत्य है यह कुआ काशी के नवापुरा क्षेत्र में है। यह कुआ कारकोटक नाग तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। और इस कुएं की गहराई कितनी है इस बात की जानकारी किसी को भी नहीं।
धर्मशास्त्रों के अनुसार इस कुए के दर्शन मात्र से ही नागदंश के भय से मुक्ति मिल जाती है।
बताया जाता है करकोटक नाग तीर्थ के नाम से विख्यात इसी पवित्र स्थान पर शेषावतार (नागवंश) के महर्षि पतंजलि ने व्याकरणाचार्य पाणिनी के महाभाष्य की रचना की थी।
मान्यता यह भी है की इस कुएं का रास्ता सीधे नाग लोक को जाता है।
इस कुए की सबसे बड़ी महत्ता ये हैं की इसमें स्नान व पूजा मात्र से ही सारे पापों का नाश हो जाता है।
कुए में स्नान मात्र से ही नाग दोष से मुक्ति मिल जाती है, ऐसी मान्यता है।
इस कुएं का रास्ता सीधे नाग लोक को जाता है। पूरे विश्व में काल सर्प दोष की सिर्फ तीन जगह ही पूजा होती हैं उसमे से ये कुंड प्रधान कुंड हैं।
चमत्कारिक मंदिर :-
यहाँ मंदिर में वैसे तो नागपंचमी के दिन छोटे गुरू और बड़े गुरू के लिए जो शब्द प्रयोग किया जाता है। उससे तात्पर्य यह है कि हम बड़े व छोटे दोनों ही नागों का सम्मान करते हैं । और दोनों की ही विधिविधानपूर्वक पूजन अर्चन करते हैं।
यहाँ पर हम आपको बता दें यह दोनों शब्द हमारी आस्था से गहरे जुड़े हुए हैं।
क्योंकि महादेव के श्रृंगार के रूप में उनके गले में जो सजे है वे है बड़े नागदेव हैं । तो वहीं उनके पैरों के समीप छोटे-छोटे नाग भी हैं वे छोटे नागदेव है।
व्याकरण की दृष्टि से अगर देखे तो पतंजलि ऋषि को बड़े गुरू और पाणिनी ऋषि को छोटे गुरू की संज्ञा दी जाती है। यह गुरू शब्द का प्रयोग एकमात्र काशी की ही परंपरा से जुड़ी हुई है। क्योकि इन दोनों ही ऋषियों ने व्याकरण को विस्तारित रूप देने का काम किया है।