*पूरे विश्व के इतिहास का आधार भगवान "श्रीविष्णु" है! और जाने किसने लिखा "विष्णुपुराण"-के सी शर्मा*
जानिए श्री विष्णुपुराण किसने लिखा
श्रीविष्णुपुराण श्रीपाराशर जी ऋषि द्वारा प्रणीत है ।
पाराशर जी को समस्त शास्त्रो का ज्ञाता होने का आशीर्वाद पुलतस्य ऋषि से प्राप्त हुआ
था ।
पुलतस्य ऋषि को आदिम जाति के इतिहास का ज्ञाता भी माना जाता है, कहा जाता है, मानव जाति को कुछ पुराण एवं कुछ इतिहास का ज्ञान पुलतस्य ऋषि ने ही करवाया था ।
पुलतस्य ऋषि का दूसरा नाम पुलस्ति भी है ।
वर्तमान में Palestine नाम का देश जो इजरायल में पड़ता है , वह ऋषि पुलतस्य के नाम से ही प्रेरित है ।
पुलस्त्य ऋषि के वंश में ही राक्षसराज रावण का जन्म हुआ था, जो रावणा ब्राह्मण था ।
पिता की ओर से वह ब्राह्मण था, लेकिन माता की ओर से वह मल्लेछ था ।
इसी कारण रक्त की शुद्धता का बहुत महत्व है , अगर बीज(वीर्य) या रज(माता का खून) गलत जगह चला गया तो रावण ही पैदा होगा ।
आजकल जो ब्राह्मण खुद को रावण का भक्त कहते है, वह चाहे तो ISIS की मुल्ली से शादी कर ले , ओर रावण लेले ...
पुलतस्य ऋषि ने पाराशर जी को शास्त्रज्ञाता होने का आशीर्वाद क्यो दिया ?
विश्वामित्र जी ने वसिष्ठ के सारे पुत्रो को राक्षसों की सेना से मरवा दिया, खुद उनके पिता महर्षि शक्ति भी राक्षसों के हाथों मारे गए ।
पाराशर जी जब युवा हुए, तो अपने पूर्वजो के साथ हुए अत्याचार का बदला लेने की ठानी, ओर राक्षसों के साथ युद्धयज्ञ शुरू कर दिया ।
राक्षसों की लाशों के अंबार लगा दिए गए । राक्षसों का ऐसा भयँकर नरसंहार देखकर वसिष्ठजी स्वयं द्रवित हो उठे - ओर पराशर जी से कहा
" यह युद्ध अब बंद करो पुत्र !! तुम किस बात का क्रोध कर रहे हो, क्रोध हमारे इस लोक, ओर परलोक दोनो को बिगाड़ देता
है ।
हम जो अत्यन्त कष्ठ से वर्षो से तप का संचय करते है, क्रोध उस तप का भी नाश कर देते है । क्रोध करना तो मूर्खो का काम है , विचारवान ओर बुद्धिमान को भला कैसे क्रोध आ सकता है ? पुरुष स्वयं अपने ही किये का भोगता है ।
इन बेचारे राक्षसों को मारने से क्या लाभ ?
यह राक्षस कोई और नही, हमारा ही प्रतिबिंब है - हमारा ही पाप हमारे सामने आकर खड़ा हो जाता है, उसे ही हम राक्षस कहते है --
महात्मा वसिष्ठ की बात मानकर पाराशर जी मे युद्ध रोक दिया ।इससे मुनियों में श्रेष्ठ भगवानवसिष्ठ जी बहुत प्रसन्न हुए ।।उसी समय #ब्रह्माजी के पुत्र पुलतस्यजी वहां आये, ओर पाराशर जी से बहुत प्रभावित होकर बोले
" इतने क्रोध में भी आपने अपने बुजुर्ग पितामह वसिष्ठजी के कहने पर क्षण भर में क्रोध का त्याग कर ना केवल युद्ध रौका, बल्कि उनसे क्षमा भी मांगी । बुर्जगों( इतिहास) का ऐसा सम्मान करने वाला महापुरुष ही इतिहास का ज्ञाता बनता है । तुम निश्चित रूप से समस्त शास्त्रो के ज्ञाता बनोगे, ओर पुराण संहिता के वक्ता होंगे ।। तुम इतिहास के माध्यम से देवताओं के यतार्थ स्वरूप को जानोगे ।
ओर जब तुम्हे देवताओं के यतार्थ का ज्ञान होगा, तो तुम भोग और मोक्ष के उतपन्न होने वाले कर्म सेनिवृत हो जाओगे ।।
उसके बाद पाराशर जी ने सुश्रुतजी को इतिहास सुनाना शुरू किया --
जगत की उतप्ती का रहस्य --
नाहो न रात्रिर्न नभो ना भूमि -
र्नासीत्तमोज्योतिरभुच्च नान्यत ।
श्रोत्रादिबुद्ध्यानुपलभ्यमेकं
प्राधानिकं ब्रह्मा पुमांस्तदासीत् ।
अर्थात - उस समय जब प्रलयकाल था, तब ना दिन था, ना रात्रि थी, ना आकाश था, ओर ना पृथ्वी थी । ना अंधकार था, ओर ना प्रकाश था , ना इसके अतिरिक्त कुछ और था ।।बस श्रोतादि इंद्रियों ओर बुद्धि आदि का विषयक एक ईश्वर था।
वैदिक इतिहास के इसी दर्शन को बाइबिल ओर कुरान में भी कॉपी किया गया उनका भी यही मानना था -
यह जमी जब ना थी
यह जहां जब ना था
चांद सूरज ना थे
आसमां जब ना था
राजे हक़ भी किसी पर
अया जब ना था
तब ना था कुछ यहां
था मगर तू ही तू
अल्लाह हु ... अल्लाह हु ..
ओर जब चर्चा चल ही रहा है, तो एक बात और स्पष्ठ कर दी जाएं -- मुसलमान और ईसाई दोनो अपना प्रथम पैगम्बर #नूह नाम के एक आदिम को मानते है । आदिम संस्कृत के आदमी का अपभ्रंश है ।
मनुः ( इसका स्वर होगा मनुह) इसी मनुः का गलत उच्चार होते होते नूह बन गया । नूह ओर मनु में एक ओर समानता है । जलप्रलय की जिस घटना का जिक्र हम पुराणों में मनु महाराज के रूप में जानते है, वही जलप्रलय मुसलमान और ईसाई ओर यहूदी पैगम्बर नूह के रूप में पढ़ते है । इन सभी मतों की जलप्रलय की स्टोरी एकदम हूबहू है।
जिस ईश्वर की बात हो रही है वह सर्वशक्तिमान ईश्वर आखिर था कौन ?
विज्ञान मानता है की पहले मात्र ब्लेक होल था ।
ब्लैक होल का अर्थ अगर हम हिंदी में निकाले तो ब्लेक=काला/काली , होल=सभागृह पूरा अर्थ कालीका दरबार ।
विज्ञान यह भी मानता है की यह ब्लेक होल इतना शक्तिशाली है, की हजारो लाखो सूर्य अगर एक साथ भी निगल जाएं, अगर इसमें लाखो सूर्य भी एक साथ समाहित हो जाएं, तो उन सूर्य का प्रकाश तक भी बाहर नही आ सकता ।
इस #दरबार की शक्ति का कोई अंत नही, कोई था नही । यह ऐसा स्थान है, जहां कोई भौतिक या वैज्ञानिक शक्ति काम नही कर सकती ।
इसी ब्लेक होल का एक नाम कृष्ण भी है ।
वासुदेव पुत्र श्रीकृष्ण का नाम भी नाम इसी दरबार की महा-महारानी , जो देवताओं के राजा , की भी राजा है , उन्ही के नाम से प्रेरित होकर यह नाम रखा गया ।
इन्ही काली को हम मां जगदम्बा के नाम से भी जानते है ।
इन्ही काली को हम भवानी - दुर्गा इन सभी नामो से जानते है । इन्ही माता दुर्गा को हम अल्लाह अलका अम्बा नाम से भी जानते है ।
यही ब्लैकहोल एक त्रिज्या के रूप में था, इसे ही हम त्रिगुणी भी कहते है । इसे ही हम सत रज तम के नाम से भी जानते है।
इन्ही जगदम्बा ने संसार को अपना स्वरूप दिखाने के लिए
सत से ब्रह्माजी का निर्माण हुआ
रज से भगवान श्रीविष्णु का निर्माण हुआ
तम से भगवानरुद्र का निर्माण हुआ
G = Generator ( निर्माता - ब्रह्मा )
O = Operator ( संचालक - श्रीविष्णु)
D = Destroyer ( संघारक = रुद्र )
आज के लिए केवल इतना ही - आज का अध्याय पूर्ण हुआ ! श्रीविष्णु के 24 अवतार ( श्रीविष्णु के 24 तत्वों ) का विवरण हम कल पढ़ेंगे ।।
( नोट - मेने आज जो लिखा है, वही ज्ञान अंतिम ज्ञान नही है, हो सकता है आप इसे खुद ओर ज़्यादा बेहतर जान सकें ।
मुझे खुद जो विष्णुपुराण के माध्यम से अनुभव हुआ, वह मेने लिख दिया है, लेकिन ज्ञान का कोई अंत नही है, हो सकता है, इसे सबके कम मैं ही समझ पाया हूँ, ओर मित्र इसे ओर अच्छे से समझा सकें ।
इसलिए इस पोस्ट पर कोई बहसबाजी नही चाहिए,
जो मेरा अनुभव है, मेने मात्र वह लिखा है, अगर आपकी बात मुझे ज़्यादा समझ आएगी, तो मैं वह मानूंगा )