पत्रकारिता का बदला दौर, अब बेब क्रान्ति व शोसल मीडिया बना पत्रकारो की अभिव्यक्ति का असली हथियार,*
न्यूज़ पोर्टल / यू ट्यूब चैनल के पत्रकार को तथाकथित फर्जी कहने वाले लोग एक बार जरा ध्यान दे
आज के इस तकनिकी युग में हर क्षेत्र में क्रांति आयी, जिसमे पत्रकारिता भी शामिल है , पत्रकारों को अपने विचारों व अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए एक नया क्रन्तिकारी मंच मिला जिसे आज हम “न्यूज पोर्टल” के नाम से जानते है. दुनिया भर में न्यूज पोर्टल की शुरुआत बड़ी तेजी से हुई न्यूज पोर्टल्स की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कई पुराने अख़बार व टीवी चैनलों ने भी अपना-अपना वेब पोर्टल चैनल शुरू किया लेकिन जहाँ एक ओर न्यूज पोर्टल से पत्रकारिता में एक नई क्रांति आ रही है वही दूसरी ओर कई बार ये खबर आए दिन चर्चा में रहती है कि न्यूज पोर्टल फर्जी है और न्यूज पोर्टल पर काम करने वाले संवाददाताओं, रिपोर्टर कैमरामैन तथाकथित / फर्जी है और सरकार और पुलिस प्रशासन उनको पत्रकार नहीं मानती,
इस तरह कि भ्रामक और झूठी खबरे आये दिन सोशल मीडिया में देखने को मिल जाती है. इतना ही नहीं कई अधिकारी भी इन ख़बरों पर सही कि मुहर लगा बैठते है,
ये जो लोग या अधिकारी गण ये मानते और कहते हैं कि न्यूज पोर्टल फ़र्ज़ी है और इनमे कार्यरत संवाददाताओं को सरकार पत्रकार नहीं मानती है, दर असल इन लोगों/ अधिकारीयों को न ही पत्रकारिता के विषय में कोई ज्ञान है और न ही पत्रकारिता के संघर्ष कि जानकारी,
ये पहली बार नहीं है जब किसी ऐसे मंच को मौन रखने कि साजिश रची जा रही है जिसका सम्बन्ध पत्रकारिता से हो,
*न्यूज पोर्टल्स फर्जी है या नहीं ये जानने से पहले एक नजर डालते है भारत में पत्रकारिता के इतिहास पर,*
भारत में पत्रकारिता का इतिहास बहुत ही उपेक्षा पूर्ण रहा है अगर हम इतिहास को देखें तो पाएंगे कि अंग्रेजी शासकों ने पत्रकारों को दबाने का बहुत प्रयास किये थे अंग्रेजी हुक्मरानो ने पत्रकारों कि आवाज दबाने के लिए भारतीय प्रेस पर तरह तरह के एक्ट पारित किये अंग्रेजों को सबसे ज्यादा तकलीफ हिंदी में प्रकाशित समाचार पत्रों से होती थी,
अंग्रेजी शासन काल में प्रैस पर क़ानूनी नियंत्रण की शुरुआत सबसे पहले तब हुई जब लॉर्ड वेलेजली ने प्रैस नियंत्रण अधिनियम द्धारा सभी समाचार- पत्रों पर नियंत्रण (सेंसर) लगा दिया।इसे प्रेस नियंत्रण अधिनियम,1799 के नाम से जाना जाता है,
*हिंदुस्तानी पत्रकारिता पर पूर्ण प्रतिबंध:*
गवर्नर जरनल जॉन एडम्स ने सन् 1823 में भारतीय प्रैस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया इस नियम के अनुसार मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापना करने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था जिस कारणकि राजा राम मोहन रॉय को अपनी पत्रिका 'मिरात-उल-अख़बार' का प्रकाशन बंद करना पड़ा। मुंह बून्द करने वाला अधिनियम या सर्क्युलर प्रेस एक्ट,1878: लॉर्ड लिटन ने सर्क्युलर प्रैस एक्ट लागू किया इस एक्ट के प्रमुख प्रावधान थे,
प्रत्येक प्रैस को यह लिखित वचन देना होगा कि वह (अंग्रेजी) सरकार के विरुद्ध कोई लेख नहीं छापेगा,
प्रत्येक मुद्रक तथा प्रकाशक के लिए जमानत राशि जमा करना आवश्यक होगा,
इस संबंध में जिला मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा तथा उसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकेगी,
ये कुछ ऐसे एक्ट थे जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीय प्रेस को पूर्ण रूप से मौन करना था,
आजादी के बाद सन 1966 में भारतीय प्रेस परिषद् कि स्थापना हुई जिसका उद्देश्य भारत में प्रैस के मानकों को बनाए रखने और सुधार की स्वतंत्रता का संरक्षण है,
लेकिन भारत में इमेरजंसी के दौरान एक बार फिर से पत्रकारिता को काले दिन देखने पड़े। सरकारी तानाशाही के चलते बहुत से समाचारों पत्रों ने दम तोड़ दिया फ़िलहाल किसी तरह से पत्रकारिता ने खुद को संभाला और तमाम सरकारी और काॅरपोरेट दबाव के बावजूद भी पत्रकारों ने पत्रकारिता के वजूद को जिन्दा रखा इस दौरान टीवी का युग आया और फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जन्म हुआ शुरुआत में इलेक्ट्रिक मीडिया को भी तरह तरह कि उपेक्षाएँ सहनी झूलनी पड़ीं लेकिन धीरे धीरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रिंट मीडिया को पीछे छोड़ दिया,
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने से भारत में जहाँ एक ओर नई क्रांति आई वही दूसरी ओर निजी /व्यवसाई कंपनियों के हस्तक्षेप से पत्रकारिता का स्तर भी गिरा इस सम्बन्ध में प्रैस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रहे जस्टिस काटजू ने कहा था कि भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकारिता कि गरिमा को भूल बैठी है उसे जन सरोकार से कोई मतलब नहीं बल्कि वो कॉरपोरेट और सरकारी प्रचारक कि तरह काम कर रहा है,
यह वह समय था जब भारतीय पत्रकारिता वाकई बुरे दौर से गुजर रही थी, इस समय एक नए युग की शुरुआत हो चुकी थी जिसे आज हम इनफार्मेशन / शोसल मीडिया टेक्नोलॉजी युग के नाम से जानते है, इस तकनिकी युग के आने के कुछ वर्षों बाद न्यूज पोर्टल्स कि शुरुआत हुई न्यूज पोर्टल्स ने काफी हद तक पत्रकारिता से सरकारी व् कॉरर्पोरेट दबाव को कम किया, अपने खुले विचार शोसल मीडिया के माध्यम से प्रसारण शुरू कर दिया,
*क्यों उड़ती है न्यूज पोर्टल्स के सम्बन्ध में अफवाहें,*
सरकारी व् कॉपोरेट दबाव न होने कि वजह से न्यूज पोर्टल के संवादाता व संपादक स्वतंत्र हो कर सरकारी व् निजी कंपनियों कि खामियों को उजागर कर उनका भांडाफोड़ करना शुरू कर दिया जिस कारण न्यूज पोर्टल्स इन लोगों की आंख की किरकिरी बन गया है इसलिए समय समय पर न्यूज पोर्टल के सम्बन्ध में इस प्रकार की फर्जी अफवाहें उड़ाई जाती है,
न्यूज पोर्टल्स के आने से सबसे ज्यादा नुकसान चाटुकार पत्रकारों व् भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों और अवैध व्यापार करने वालों को हुआ है क्योंकि किसी विभाग की कमी, भ्रष्टाचार या किसी अवैध व्यापार की जानकारी किसी कलमचोर पत्रकार को हो जाती थी तो वो खबर लिखने से पहले उस अधिकारी/व्यापारी से बात करके मोटी रकम वसूल लेते थे और खबर गायब कर जाते थे। लेकिन न्यूज पोर्टल के समय में इन दलाल पत्रकारों व भ्रष्ट अधिकारीयों कि दाल नहीं गल पाती है इसीलिए यह लोग वेब पोर्टल को फर्जी बताते है क्यूंकि कलमचोर पत्रकारों कि सेटिंग होने से पहले ही वह खबर न्यूज पोर्टल/सोशल मीडिया में वायरल हो जाती है,
सरकार ने कभी नहीं कहा कि न्यूज पोर्टल का संवाददाता पत्रकार नहीं है वैसे तो कई बार देखने को मिलता है बहुत से अधिकारी गण भी ये फरमान जारी कर देतें है कि न्यूज पोर्टल को सरकार फर्जी मानती है, कई जनपदों में सूचना अधिकारी भी यही राग अलापते मिल जायेंगे लेकिन यदि इनसे मांग की जाए कि क्या इनके पास सरकार/ मिनिस्ट्री ऑफ़ इनफार्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग, प्रैस कौंसिल ऑफ इंडिया या प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी किया गया ऐसा कोई भी आदेश अथवा निर्देश है जिसमे में ये कहा गया हो कि सरकार न्यूज पोर्टल के संवाददाता को पत्रकार नहीं मानती। तो ये न तो आपको कोई लिखित आदेश दिखा पाएंगे और न ही कोई जिओ,
न्यूज पोर्टल्स पूर्णत: वैध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में दिए गए स्वतंत्रता के मूल अंधिकार को प्रैस की स्वतंत्रता के समकक्ष माना गया है भारतीय नागरिक को न्यूज पोर्टल शुरू और संचालित करने कि स्वतंत्रता है,
*सरकार जल्दी ही लागू करने वाली है न्यूज पोर्टल हेतु नियमावली,*
*न्यूज पोर्टल य यू ट्यूब चैनल चलाने वाले पत्रकार भी असली पत्रकार होते है,*
न्यूज पोर्टल कि बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 4 अप्रैल 2018 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि देश में चलने वाले टीवी चैनल और अखबारों के लिए नियम कानून बने हुए हैं और यदि वह इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं तो उससे निपटने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) जैसी संस्थाएं भी हैं, लेकिन ऑनलाइन मीडिया के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. इसे ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन मीडिया के लिए नियामक ढांचा बनाने के लिए एक समिति का गठन किया जायेगा दस लोगों की एक समिति का गठन किया समिति के संयोजक सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव होंगे इस कमेटी में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और एनबीए के सदस्य भी शामिल होंगे गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के सचिव भी इस कमेटी का हिस्सा होंगे।
अब जब दस लोगों कि एक टीम निर्धारित कि गयी जो न्यूज पोर्टल को रेगुलेट करने सम्बन्धी नियम बनाने जा रही है, इस नियम के बनने के पहले यदि कोई यह फरमान जारी करे कि न्यूज पोर्टल फर्जी है तो या तो वह अलप ज्ञानी है या फिर वह सरकार से ऊपर की सोच रखने वाला है,
सरकार ने न्यूज पोर्टल्स को कभी भी फ़र्ज़ी नहीं माना यही कारण है कि दस सद्द्स्यीय समिति न्यूज पोर्टल हेतु नियमावली बना रही है,
न्यूज पोर्टल के विषय में किसी भी प्रकार कि अफवाह में न पड़ें. न्यूज पोर्टल पूर्णत: वैध है, और इसमें कार्यरत संवाददाता पत्रकार हैं।