जानिए ब्राम्हण कुलभूषण धनुर्विद्या पर ग्रंथ लिखने वाले महर्षि गौतम को-के सी शर्मा



जानिए ब्राम्हण कुलभूषण  धनुर्विद्या पर ग्रंथ लिखने वाले महर्षि गौतम को-के सी शर्मा

ब्राह्मण कुलभूषण महर्षि गौतम के बारे में आज हम आपको बताएंगे और उनके धनुर्विद्या तथा उनके पराक्रम के बारे में बात करेंगे जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं।
 ब्राह्मण शस्त्र और शास्त्र  की शिक्षा सभी क्षत्रियों को दे देते और जब क्षत्रिय पाप करता था तो ब्राह्मण स्वयं धर्म की रक्षा के लिए धनुष उठाता था आज हम आपको बता रहे हैं  एक ऋषि गौतम का जो कि सभी क्षत्रियों को शिक्षा देते थे और इनके ही वंश में बहुत ही बड़े बड़े धनुर्धर हुए!

महर्षि गौतम जब अपने धनुष पर जब बाण की प्रत्यंचा चढ़ाते थे और धनुष पे तीर चढ़ाकर जब अभ्यास  करते थे और अपने धनुष से जब निशाना को  भेदते थे ! तो धरती ही नहीं बल्कि पाताल लोक तक उनके धनुष की द्वारा छोड़े हुए तीरो की गर्जना होती थी !!
महर्षि गौतम बहुत  ही बड़े धनुर्धर व धनुर्विद्या में परंपरागत  थे !!
वह अपने शिष्य को मिथिला नगर में ही अपने आश्रम में धनुर्विद्या व शस्त्र और शास्त्र का शिक्षा देते थे!!

महर्षि गौतम ने कई ग्रंथ भी धनुर्विद्या पर लिखा है और उनके ही पुत्र सदानंद जोकि (निमी कुल )के कुलगुरु थे जो बाद में (मिथिला) के नाम से भी जाना गया और वह राजा जनक तक को शिक्षा धनुर्विद्या और शास्त्र व शस्त्र का शिक्षा दिए थे !!
इनके एक और पुत्र शारद्वान जो कि धनुष बाण के साथ ही पैदा हुए थे जिनके जैसा धनुर्धर और  धनुर्विद्या का ज्ञाता पूरे संसार में कोई नहीं था  इनके धनुर्विद्या से इंद्र भी भय खाते थे !!

जब  ऋषि गौतम अपनी बाणविद्या का प्रदर्शन करते और बाण चलाते तो देवी अहिल्या बाणों को उठाकर लाती थी।  महर्षि गौतम धनुर्विद्या ही नहीं बल्कि शास्त्रों में भी बहुत परंपरागत  थे उन पर एक गाय की हत्या का  झूठ का गौ हत्या का आरोप लगा तो उन्होंने गंगा जी को बुलाकर अपने आप को इस पाप से मुक्त किया था!!
 और उन्होंने उज्जैन के त्र्यंबकेश्वर शिव लिंग की स्थापना की थी!! और कुछ सालों तक वहां आश्रम बनाकर उन्होंने निवास भी किया था!
और मिथिला में भी इनका आश्रम था जहां भी एक बहुत ही ज्यादा शिष्य को शिक्षा देते थे धनुर्विद्या का!!

एक बार  ऋषि गौतम ने देखा देवी अहिल्या घर देर से लौटीं। ज्येष्ठ की धूप में उनके चरण तप्त हो गये थे। विश्राम के लिये वे वृक्ष की छाया में बैठ गयी थीं। महर्षि ने सूर्य देवता पर रोष किया। सूर्य ने ब्राह्मण के वेष में महर्षि को छात्ता और पादत्राण (जूता) निवेदित किया।
उष्णता निवारक ये दोनों उपकरण उसी समय से प्रचलित हुए।
महर्षि गौतम न्यायशास्त्र के अतिरिक्त स्मृतिकार भी थे तथा उनका धनुर्वेद पर भी कोई ग्रन्थ था, ऐसा विद्वानों का मत है। उनके पुत्र शतानन्द निमि कुल के आचार्य थे। गौतम ने गंगा की आराधना करके पाप से मुक्ति प्राप्त की थी।
 गौतम तथा मुनियों को गंगा ने पूर्ण पतित्र किया था, जिससे वह 'गौतमी' कहलायीं। गौतमी नदी के किनारे त्र्यंबकम् शिवलिंग की स्थापना की गई, क्योंकि इसी शर्त पर वह वहाँ ठहरने के लिए तैयार हुई थीं। न्याय दर्शन में गौतम उपलब्ध न्याय दर्शन के आदि प्रवर्तक महर्षि गोतम हैं। यही 'अक्षपाद' नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
उन्होंने उपलब्ध न्यायसूत्रों का प्रणयन किया तथा इस आन्वीक्षिकी को क्रमबद्ध कर शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठापित किया।