*जाने,"गिलहरी" अथवा राम सेतु के डूबते "पत्थर" - के सी शर्मा*
गिलहरी की पीठ पर धारियां देखीं आपने?
इनके बारे में एक बड़ी ही प्यारी कहानी सुनी है मैंने - आप में से कुछ लोगों ने शायद सुनी होगी - पर यहाँ शेयर करने को जी चाहा मेरा। तो कहानी पेश है:-
जब श्री राम अपनी पत्नी व अनुज के साथ वन वास पर थे - लतो रास्ते चलते हर तरह के धरातल पर पैर पड़ते रहे - कहीं नर्म घास भी होती, कहीं कठोर धरती भी, कही कांटे भी,
ऐसे ही चलते हुए श्री राम का पैर एक नन्ही सी गिलहरी पर पडा - और वे ना जान पाए कि ऐसा हुआ है।
श्री राम के चरणों को कठोर धरती की अपेक्षा मखमली सी अनुभूति हुई - तो उन्होने एक पल को अपना चरण टेके रखा - फिर नीचे की ओर देखा तो चौंक पड़े |
उन्हें दुःख हुआ कि इस छोटी सी गिलहरी को मेरे वजन से कितना दर्द महसूस हुआ होगा ।
उन्होंने उस नन्ही गिलहरी को उठा कर प्यार किया और बोले - अरे - मेरा पाँव तुझ पर पड़ा - तुझे कितना दर्द हुआ होगा ना?
गिलहरी ने कहा - प्रभु - आपके चरण कमलों के दर्शन कितने दुर्लभ हैं - संत महात्मा इन चरणों की पूजा करते नहीं थकते - मेरा सौभाग्य है कि मुझे इन चरणों की सेवा का एक पल मिला - इन्हें इस कठोर राह से एक पल का आराम मैं दे सकी।
प्रभु ने कहा - फिर भी - दर्द तो हुआ होगा ना ?
तू चिल्लाई क्यों नहीं ?
गिलहरी बोली - प्रभु , कोई और मुझ पर पाँव रखता, तो मैं चीखती "हे राम!! राम राम !!! " , किन्तु , जब आप का ही पैर मुझ पर पडा - तो मैं किसे पुकारती?
श्री राम ने गिलहरी की पीठ पर बड़े प्यार से उंगलिया फेरीं - जिससे उसे दर्द में आराम मिले | अब वह इतनी नन्ही है कि तीन ही उंगलियाँ फिर सकीं ।
तब से गिलहरियों के शरीर पर श्री राम की उँगलियों के निशान होते हैं ।
( अब यह मुझसे न पूछियेगा कि क्या इससे पहले गिलहरियों की पीठ पर धारियां न थीं :) , क्योंकि यह एक कहानी है, और राम जी ने यह रेखाएं सृष्टि के आरम्भ में खींची या अब, इससे कोई फर्क पड़ता भी नहीं ।
सी तरह वहां भी फर्क नहीं पड़ता कि केले के पत्ते के बीच की धारी सृष्टि के आरम्भ में बनाई गयी, या उस वक़्त :) वैसे सुना है कि भारत के अलावा दूसरे देशों की गिलहरियों में यह धारियां नहीं मिलतीं ? )
*श्री राम सेतु और डूबते पत्थर*
जब श्री राम की वानर सेना लंका जाने के लिए सेतु बना रही थी, तब का एक वाकया है।
श्री राम का नाम लिख कर वानर भारी भारी पत्थरों को समुद्र में डालते - और वे पत्थर डूबते नहीं - तैरने लगते ।
श्री राम ने सोचा कि मैं भी मदद करूँ - ये लोग मेरे लिए इतना परिश्रम कर रहे हैं । तो प्रभु ने भी एक पत्थर को पानी में
छोड़ा ।
लेकिन वह तैरा नहीं , डूब गया । फिर से उन्होंने एक और पत्थर छोड़ा - यह भी डूब गया । यही हाल अगले कई पत्थरों का भी हुआ | प्रभु ने हैरान हो कर हनुमान जी से पूछा - तो इस पर हनुमान जी ने जवाब दिया।
" हे प्रभु ! आप इस जगत रुपी भवसागर के तारणहार हैं ! आपके "नाम" के सहारे कोई कितना भी बड़ा और (पाप के बोझ से) भारी पत्थर हो, वह भी इस भवसागर पर तैर कर तर जाएगा !
किन्तु प्रभु - जिसे आप ही छोड़ दें - वह तो डूब ही जाएगा ना?"