विश्व के सबसे बड़े सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था। आज उनके बताए मार्ग पर करोड़ों स्वयंसेवक चल रहे हैं और समाज-जीवन के प्राय: हर क्षेत्र में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे हैं
गहराई से विचार करने पर ऐसा लगता है मानो भगवान ने हमारे देश और हमारे हिन्दू समाज पर विशेष उपकार करते हुए केशव को भेजा था। यह भी मानना पड़ेगा कि कालान्तर में पूरे अस्तित्व का ही पोषण हो, ऐसी व्यवस्था बन रही है। ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई देता कि बिना किसी पारिवारिक पृष्ठभूमि या परिस्थिति-जन्य प्रतिक्रिया के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाला एक छोटा बालक एक विशेष तर्क से मिठाई-मुफ्त में प्राप्त मिठाई- को फेंक दे या तमाशा देखने की आयु में उसी तर्क से आतिशबाजी देखने से मना कर दे, साथियों या बड़े भाई के कहने पर भी। अभी किशोरावस्था में ही थे। रिश्तेदारी में यवतमाल गए। हमउम्र साथियों को लेकर मालरोड पर गिल्ली डंडा खेलने चले गए। मालरोड पर इसलिए कि वह सड़क अंग्रेजों ने अपने लिए आरक्षित कर रखी थी। किशोर केशव का कहना था कि हमारे देश की सड़क अंग्रेजों की कैसे हो गई। अभी खेल प्रारम्भ ही हुआ था कि अंग्रेज साहब बहादुर की सवारी आ गई तो पहले अहलकार ने गिल्ली डंडा खेलने वालों को वहां से हटाने की कोशिश की। अभी कुछ तर्क-वितर्क चल ही रहा था कि सवारी निकट आने पर इन बालकों को साहब बहादुर से सलाम करने को कहा गया तो केशव बोल पड़े, ‘‘मैं तो राजधानी नागपुर से आया हूं। वहां बिना जान-पहचान के नमस्ते करने का रिवाज नहीं है, यदि यहां का रिवाज ऐसा हो तो ये साहब बहादुर ही हम लोगों को सलाम करें।’’
हाईस्कूल में पढ़ते हुए ही अपने विद्यालय में वन्दे भारत आन्दोलन का आयोजन करना, स्कूल से निकाला जाना, अन्यत्र जाकर नए स्कूल में दाखिला, पर वहां भी स्कूल बंदी। जैसे-तैसे हाईस्कूल पास करना, कलकत्ता जाकर मेडिकल की पढ़ाई, क्रांतिकारी गतिविधि- ये सभी कोई मामूली घटनाएं नहीं हैं। हाईस्कूल के होते हुए ही विजयादशमी पर उग्र भाषण में अंग्रेजों को रावण का राक्षस कुल का बताना, इतनी कम उम्र में भी गुप्तचर विभाग की निगाह में आना, सभी बातें मानो ईश्वर द्वारा प्रायोजित थीं।
डॉ. हेडगेवार देखने में अति सामान्य, अन्य साधारण लोगों के समान ही लगते थे। बाबा साहेब आप्टे ने बताया कि उन्होंने भी अपने बड़प्पन या महानता को हमारे ऊपर प्रगट नहीं होने दिया, बल्कि वे हमेशा हमें हमारे बीच के ही लगते थे। न कभी पद या प्रतिष्ठा की चाह, न कभी पैसे के प्रति कोई आकर्षण, स्वयं स्वीकृत दरिद्रता का जीवन, पर शत शत नमन!
कल्पना करें 30-31 वर्ष का युवक नागपुर के कांग्रेस महाधिवेशन के स्वयंसेवक दल का प्रमुख, तिलक जी की असामयिक मृत्यु के कारण अधिवेशन की अध्यक्षता के लिए महर्षि अरविंद घोष को मनाने के लिए गए डॉ. मुंजे के साथी, अधिवेशन की विषय समिति के सामने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखने का उपक्रम, यह थी डॉ. हेडगेवार।की कांग्रेस, जो आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रही थी, 9 वर्ष बाद ही पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित कर सकी।
स्वतंत्रता आन्दोलन के हर प्रयास में वे पूरी तरह से सम्मिलित थे। कई बार सभी बातों से सहमत नहीं भी होते थे। उन्हें सबसे पहले एक वर्ष का सश्रम कारावास मिला था। उनके किसी भाषण को देशद्र्रोहपूर्ण ठहराकर उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया। कांग्रेस की नीति थी कि मुकदमे की पैरवी न की जाए, पर डॉ. केशव ने न्यायालय में अपना बयान देने का निश्चय किया। न्यायधीश का कहना था कि न्यायालय में दिया गया इनका बयान मूल भाषण से कई गुना उग्र और देशद्र्रोहितापूर्ण है। एक वर्ष बाद जेल से छूटकर आए तो उनके स्वागत में नागपुर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में कांग्रेस के शीर्ष नेता उपस्थित होकर डॉक्टर जी की महिमा का गुणगान कर रहे थे। नाम ही बताना हो तो हकीम अजमल खां, जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरु, सरदार वल्लभभाई पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल, डॉ. अंसारी और राजगोपालाचारी आदि। दूसरी बार भी वे कांग्रेस के ही आन्दोलन में 1931 में जेल गए। यह आन्दोलन था सविनय अवज्ञा आन्दोलन।
यद्यपि 1925 में संघ की स्थापना हो चुकी थी, ताकि देश के लिए आवश्यक एवं शक्तिशाली समाज की स्थाई व्यवस्था बन सके, तो भी डॉक्टर जी ने संघ के अपने दायित्व को किसी दूसरे कार्यकर्ता को सौंपकर सत्याग्रह कर जेल जाने का निश्चय किया। इस बार की जेल यात्रा का लाभ संघ के विस्तार को भी मिला, क्योंकि जेल में अनेक सक्रिय भावनाशील देशभक्तों से डॉक्टर जी की मित्रता बन गई। डॉक्टर जी की क्रान्तिकारी गतिविधियों की जानकारी मिलना तो अब लगभग असंभव है-क्योंकि वे इतने कुशल थे कि उनकी हर गतिविधि गोपनीय ही रही। पर क्रान्तिकारी, कांग्रेस या फिर संघ की गतिविधियों से उनकी महत्ता को सहज ही समझा जा सकता है। संघ यानी एक विचार ही नहीं, बल्कि एक अत्यन्त सफल कार्य पद्धति देकर डॉक्टर जी ने भगवान के धर्म स्थापना के कार्य की स्थाई व्यवस्था ही की है। बड़ी संख्या में उनकी तरह सोचने वाले लोगों का संच लगातार खड़ा होता रहे-ऐसी अद्भुत व्यवस्था। इतना ही नहीं इस विश्व कल्याण के विचार के लिए, धर्म की स्थापना के लिए संकल्प को लेकर अपने जीवन को होम करने वाले, उनके पद्चिन्हों पर लगातार चलने वाले कार्यकर्ताओं के निर्माण की स्थाई व्यवस्था उनके द्वारा हुई।
हिन्दू जीवन मूल्य विश्व के कल्याण की गारंटी है-यह तो स्वयं प्रमाणित है-बस इनकी स्थापना के लिए देव दुर्लभ कार्यकर्ताओं की एक टोली चाहिए थी-जिसकी व्यवस्था डॉक्टर जी द्वारा स्थापित पद्धति के द्वारा हो रही है। हिन्दू के जागरण से ही विश्व का जागरण संभव है और उसी से विश्व का, मानवता का, संपूर्ण अस्तित्व का कल्याण होगा। हिन्दू जगेगा, विश्व जगेगा।