सुनील मिश्रा नई दिल्ली : दिल्ली में आज प्रेस क्लब ओफ़ इन्डिया मे मणिपाल हॉस्पिटल द्वारा "वर्ल्ड किडनी डे" के अवसर पर मीडिया वर्कशॉप का आयोजन किया'' गया वर्ल्ड किडनी डे के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य अंगदान ट्रांसप्लांटेशन और किडनी संबंधित बीमारियों के बारे में लोगो को जागरूकता फ़ैलाना और किडनी हेल्थ फॉर एवरीवन एनीव्हेयर के बारे मे जानकारी देना था !
मणिपाल हॉस्पिटल के सर्विस डायरेक्टर मि. रमन भास्कर, डिपार्टमेंट और नेफ़्रोलौजी एंड रेनल ट्रांसप्लांट मेडिसिन के एचओडी डॉक्टर सौरभ पोखरियाल और यूरोलॉजी के हेड डॉ संजय गोगोई ने इस वर्कशॉप में भाग लिया मि. रमन भास्कर ने बताया कि हमारा हॉस्पिटल किडनी ट्रांसप्लांट में अद्भुत रहा है हम एडल्ट और पेडियाट्रिक दोनों प्रकार के किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा के साथ सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर और उपकरणों की मदद से कठिन से कठिन केसेस के सफ़ल करने की सुविधाएं प्रदान करते हैं डॉक्टर पोखरियाल ने बताया हमारे विशेषज्ञों की टीम द्वारा 29 वर्षीय मिस नीलम का केस किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ा नीलम को 1 साल से हीमोडायलिसिस पर रहते हुए किडनी डोनर की तलाश करना था फ़िर एनओटीटीओ द्वारा एक डोनर मिला और मणिपाल हॉस्पिटल द्वारा उनका सफल कैडावेरिक रेनल ट्रांसप्लांट किया गया और वे सामान्य रेनल फंक्शन के साथ घर गई. मरीज नीलम ने बताया कि मणिपाल हास्पिटल के डॉक्टरो ने मुझे नई उम्मीद दी है और मैं हॉस्पिटल और डॉक्टर की टीम को धन्यवाद करती हूं जिन्होंने मुझे नई जिंदगी दी. डॉक्टर गोगोई ने लोगों को किडनी फेलियर के शुरुआती लक्षण जैसे यूरिन में कमी, ज्यादा थकान और फ्लूईड रिटेंशन पर ध्यान रखने की सलाह दी है उन्होंने बताया हमेशा सावधानी बरती जानी चाहिए क्योंकि अक्सर किडनी संबंधी बीमारियों के लक्षण दिखाई नहीं देते ऐसा संभव है कि एडवांस स्टेज तक इसकी पहचान ना हो पाए. आगे बताया दुर्भाग्य से अंगदान के बारे में जागरूकता नहीं है मेडिकल क्षेत्र में टेक्नोलॉजी के विस्तार के कारण और ट्रांसप्लांट सभी उम्र के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन लेकर आ रहा है क्रॉनिक किडनी डिसीज गैर संक्रामक रोग है जो विश्व में प्रत्येक 10 में से एक व्यक्ति को होता है सीकेडी में उम्र भर मेडिकल केयर की जरूरत पड़ती है दुनिया में 8.5 करोड़ लोग किडनी संबंधी बीमारी से ग्रसित हैं सीकेडी के कारण साल में लगभग 2400000 मौतें होती हैं ऐसा इसलिए होता है की ऐसी बीमारी का अंतिम स्टेज तक पहुंच जाने पर भी मरीज को पता नहीं चलता है करीब 20 लाख से 70 लाख लोगों की मृत्यु इलाज या ट्रांसप्लांटेशन न मिलने के कारण होती है.