कालसर्प योग का सटीक विश्लेषण केसी शर्मा की कलम से





लोगों को भयभीत कर गुमराह करने वाले इस कालसर्प की खोज कब हुई और किसने की???


खगोल_शास्त्रीय दृष्टिकोण से कभी भी कालसर्पयोग नहीं बनता है।


क्या सच में #कालसर्पयोग जैसा कोई ज्योतिषीय योग होता है ???


क्या है इसका प्रभाव तथा प्रामाणिकता ???


कालसर्पयोग का सटीक विश्लेषण, अवश्य पढ़ें


साथियों लेख थोड़ा लंबा है लेकिन आज में यह शोधपूर्ण आलेख प्रस्तुत कर रहा हूं जो सौरमंडल के परिप्रेक्ष्य में #कालसर्पयोग का सटीक विश्लेषण है।

सौरमंडल में ग्रहों का क्रम इस प्रकार है।
सूर्य, बुध, शुक्र, पृथ्वी, चन्द्रमा, मंगल, गुरु, शनि।
बुध और शुक्र की कक्षाएं सूर्य और पृथ्वी के मध्य में पड़ती हैं,
अतः बुध और शुक्र पृथ्वी के अन्तरवर्ती ग्रह होने के कारण राहु केतु की वक्र गति में आ सकते हैं।
लेकिन...
मंगल, गुरु और शनि तो बाह्यर्वर्ती ग्रह हैं।
इनकी कक्षाएं पृथ्वी के बाद, बाहर की ओर स्थित हैं। इसीलिए सौरमण्डल मे मंगल, गुरु और शनि तो कभी भी, कैसे भी राहु-केतु के घेरे में नहीं आते हैं,
नही आ सकते हैं।
आशय यह है कि आकाश में कभी भी कालसर्प योग निर्मित नहीं होता है।
इसका शास्त्रीय प्रमाण यह है कि 1800 प्रकार के नाभस योग की खोज करने वाले दक्षिण भारत के यवनाचार्यों ने भी आकाश में कालसर्प की आकृति नहीं देखी।

अतः #खगोल_शास्त्रीय दृष्टिकोण से #कालसर्पयोग नहीं बनता है।

राहु की मंगल से शत्रुता होने पर भी राहु मंगल को ग्रसित नहीं कर पाता है,
क्योंकि मंगल आदि ग्रह राहु की रेंज से बाहर है,
हाँ.. यदि सौरमण्डल में शनि की कक्षा के बाद राहु या सूर्य से पहले केतु के दृश्यमान खगोलीय पिण्ड होते.., तो.. वर्तमान में प्रचलित कालसर्प योग वास्तविक होता।

जन्मकुण्डली में जो कालसर्प योग हमें दिखाई देता हैं, वह कालसर्प_का_भ्रम है।

जैसे बहुत दूर देखेने पर आकाश और पृथ्वी आपस में मिले हुए दिखाई देते हैं, किन्तु वास्तव में वे कहीं नहीं मिलते हैं।
ठीक इसी प्रकार.. कालसर्प भी मिथ्या है।

कालसर्प का भ्रम इसलिए उत्पन्न होता है, क्योंकि जन्म कुण्डली में ग्रहों को उनकी खगोलीय कक्षाओं के अनुसार स्थापित नहीं किया जाता है,
नवग्रहों को राशि पथ के आधार पर स्थापित किया जाता है।
जबकि वे एक ही राशि में होने पर भी एक दूसरे की कक्षाओं से बहुत दूर होते हैं।
राहु-केतु हमेशा एक-दूसरे के सामने 6 राशियों या 180 अंश की दूरी पर स्थित रहते हैं।
छः राशियों का अन्तर होने के कारण ही अधिकांश कुण्डलियों में सभी सातों ग्रह राहु या केतु के एक ओर होते हैं।

राहु-केतु मध्य राशियों में सभी ग्रह होने से भयानक कालसर्प योग की कल्पना कर ली जाती है,
जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं है।

कालसर्प का विस्तार और प्रकार-कालसर्प योग की एक किताब में लिखा है-
"वर्तमान में 90 प्रतिशत लोग कालसर्प दोष से पीड़ित हैं, इसलिए दुःखी, परेशान, बेरोजगार तथा चिन्ताओं से ग्रस्त हैं।
इस पुस्तक का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के दुःख, दुर्भाग्य और असफलता का कारण केवल कालसर्प ही है।
यदि इस पुस्तक की बात को सच मान लिया जाए तो ऋषि प्रणीत ज्योतिष शास्त्र के सारे ग्रंथ इस कालसर्प के आगे बौने साबित हो जाते हैं।
क्या सभी विद्वानों को यह स्वीकार है???
कालसर्प नामक झूठ का इतना विस्तार हो चुका है कि इससे बचना मुश्किल है।

कालसर्प योग विशेषज्ञों (सपेरों) की नजर में कम से कम यह 12 प्रकार का होता है,
और
अधिकतम 288 प्रकार का।
मुझे कभी-कभी सुनने में आता है कि आंशिक कालसर्प में कोई एकाध ग्रह इधर-उधर खिसक जाता था।

उन्हें भी घसीटकर 12 भावों के आधार पर 288 को 12 से गुणा कर दिया गया है।

इस नवीन खोज के आधार पर 3456 प्रकार के कालसर्प योग होते हैं।

भगवान धन्वन्तरी ने पृथ्वी पर पाये जाने वाले सर्पों के 80 भेद (प्रकार) बताये हैं।

आशय यह है कि जितने सर्पों के प्रकार नहीं होते उससे कई गुणा अधिक कालसर्प के प्रकार होते हैं।

क्या आपको यह आश्यर्च नहीं लगता???

कालसर्प योग अपने आप में बड़ा ही विचित्र है,

यह एकमात्र ऐसा योग है, जिसकी इतनी अधिक वैराइटियां हैं।

संसार में इतनी सारी वैराइटियों का न तो कोई रोग है, और न कोई योग है।

यदि सम्पूर्ण ज्योतिष शास्त्र के सभी योगों को मिला दिया जाए तो भी आंकड़े को (3456) छू पाना असंभव है।
ज्योतिष के प्रवर्तक ऋषियों और मूर्धन्य ज्योतिषाचार्यों ने प्रत्येक योग का एक ही प्रकार बताया है।
फिर चाहे वह राजयोग हो या अरिष्ट योग हो।
छठवीं सदी में 'सारावली' के रचयिता आचार्य 'कल्याण वर्मा' ने इसमें इतना सा संशोधन अवश्य किया है कि...
"लग्न और चन्द्र में से जो अधिक बलवान हो, उसके अनुसार जन्मस्थ और गोचरीय ग्रहों का विचार करना चाहिए,
यदि हम जन्म लग्न और चन्द्र राशि दोनों के आधार पर किसी योग का विचार करें तो वह दो प्रकार से निर्मित हो सकता है किन्तु 288 या 3456 प्रकार से कदापि नहीं।"

पूर्ण अथवा आंशिक कालसर्प योग,
उदित या अनुदित कालसर्प योग,
दृश्य या अदृश्य कालसर्प योग,
मुक्त या ग्रस्त कालसर्प योग।
ये परस्पर विरोधी शब्दों के कालसर्प सुनने मात्र से ही संशय होता है।

मेरे विचार से कोई योग या तो शुभ होता है, अथवा अशुभ होता है,

किन्तु कालसर्प के खिलाड़ी कालसर्प को अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का बताते हैं,
वे कालसर्प को योग भी कहते हैं, और दोष भी कहते हैं
कुछ भी हो, कालसर्प वालों की दलीलें (कुतर्क) इतनी अधिक हैं.., कि आप जीत नहीं सकते हैं।
कालसर्प की खोज कब और किसने की थी???

लोगों को भयभीत कर गुमराह करने वाले इस कालसर्प की खोज कब हुई और किसने की?

कालसर्प मिथ्यात्व हैं कभी भी डरे नही