मध्यप्रदेश में सत्तापलट के बाद अब कोरोना से निपटने के लिये लागू जनता कर्फ्यू के बीच प्रदेश में कौन बनेगा मुख्यमंत्री का सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा हैं। वैसे बीजेपी में कांग्रेस की तरह से ओपन फ्लोर पर कुछ दिखाई नहीं देता, लेकिन अंदरखाने वह सब कुछ होता है, जो राजनीति में हासिल करने के लिए किया जाता हैं। चर्चा में सबसे पहला नाम पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम इस दौड़ में है। इसके अतिरिक्त जो दूसरा नाम है, वह केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का है।
मध्यप्रदेश में अगर शिवराज सिंह एवं डॉ. नरोत्तम मिश्रा सबसे ज्यादा सक्रिय रहे तो दिल्ली में तोमर का निवास इस जोड़-तोड़ की राजनीति का केन्द्र रहा। वैसे इस सत्तापलट के किरदारों में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह सहित बैंगलूरू में युवा बीजेपी नेता अरविंद भदौरिया भी शामिल रहे। लेकिन मुख्यत: जो नाम केन्द्र में हाईकमान के सामने जोन ऑफ कंसीडरेशन में है, उसमें शिवराज सिंह, नरेन्द्र तोमर, डॉ. नरोत्तम मिश्रा के नाम प्रमुख हैं। एक नाम कैलाश विजयवर्गीय का भी है, जो इन दिनों केन्द्र में ही अपना अधिकांश समय देते है। इसीलिए ज्यादा विवाद होने पर उन्हें भी प्रदेश में भेजा जा सकता है। सत्तापलट में उन्होंने भी सायलेंट रोल अदा किया है। जातिगत समीकरण में थावरचंद गहलोत का नाम भी सामने आता है।
राजनीतिक प्रेक्षकों की माने तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को चौथी बार इस पद के सबसे प्रबल दोवदारों में देखा जा रहा है। पिछड़ा वर्ग से आने वाले इस नेता को होने वाले उप चुनावों (24 या 25 सीटों पर ) के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त नेता माना जा रहा है। उधर, चम्बल क्षेत्र की राजनीति में अब नरेन्द्र सिंह ताेमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा तीन बड़े नाम हो गये है। सिंधिया को केन्द्र की राजनीति में रखने पर इस क्षेत्र से दो नाम हो जाएंगे। बीजेपी के पास प्रदेश में वैसे ही बड़े नेताओं की भरमार है, इसलिए हो सकता है कि तोमर को फिर प्रदेश में भेजा जाए। तोमर के नाम की चर्चा करने वाले वो नेता है, जो मध्यप्रदेश में चेहरा बदलने की राय रखते है। तोमर के माइनस पाइंट में यह भी है कि अगर उन्हें मौका दिया गया तो चम्बल क्षेत्र में नेताओं का वजन भौगोलिक हिसाब से ज्यादा हाे जाएगा। उधर, 22 कांग्रेसी विधायकों में से 16 ग्वालियर या उसके आस-पास के क्षेत्र से चुनकर आते हैं। इस क्षेत्र में सिंधिया का खासा प्रभाव है। उपचुनाव में सिंधिया के साथ ही यहां केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर फैक्टर भी काम करेंगा।
ऑपरेशन लोटस के नाम पर प्रदेश की राजनीति में परिवर्तन करने की शुरूआत हुई थी। इसके प्रमुख कर्ताधर्ताओ में सबसे पहला नाम डॉ. नरोत्तम मिश्रा का है। इसमें अरविंद भदौरिया और उमाशंकर गुप्ता सहित अन्य का भी जिम्मेदारी दी गयी। ये नेता आखिर तक बैंगलूरू में जमे रहे। लेकिन सबसे ज्यादा सक्रिय भदौरिया रहे। जो बागी पूर्व हो ये विधायकों को दिल्ली और फिर भोपाल वापिस लाने तक साथ रहे। आखिर मौके पर पर्दे के पीछे से काम कर रहे नरोत्तम मिश्रा भी उन्हें दिल्ली लेने गये। उन्हें बीजेपी ज्वाइन करवाई और फिर अभी भी दिल्ली में ही जमे हुए हैं। मिश्रा का दावा भी बनता है। इसीलिए वो दिल्ली दरबार में अपना पक्ष रखने में लगे हुए है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की ओर से वैसे तो सीधे तौर पर कोई दावा नहीं है, लेकिन अगर अंदरखाने में ज्यादा खींचतान मची तो फिर विजयवर्गीय का नाम हाईकमान की ओर से रखा जा सकता है। विजयवर्गीय केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीब माने जाते है। जातीय समीकरणों को देखते हुए थावरचंद गहलोत भी एक नाम है। हांलाकि उनका नाम हमेशा ही दौड़ में रहता है, मगर अभी तक ऐसा गणित नहीं बना कि उन्हें इसका लाभ मिले। वैसे भूपेन्द्र सिंह भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में है।
कोराना वायरस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जनता कर्फ्यू के आव्हान् के कारण जो नेता दिल्ली मे है, वो वहीं है, और जो प्रदेश में है, वो यहीं से अन्य माध्यमों से अपनी जमावट में लगे हुए है। पिछले एक पखवाड़े से अपने क्षेत्रों में नही गये बीजेपी के विधायकों ने भोपाल वापसी तो कर ली, मगर अभी उनमें से अधिकांश वाे विधायक जो मंत्री पद की दौड़ में हैं, यहीं जमे हुए हैं।
माना जा रहा है कि सोमवार को भाजपा विधायक दल की बैठक में नेता का फैसला होगा। इसमें नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के इस्तीफे के बाद नए नेता का चुनाव किया जाएगा। विधायक दल की बैठक के लिए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे पर्यवेक्षक बनाए जाने की कवायद चल रही है। अभी औपचारिक आदेश जारी नहीं किए हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक दिल्ली में सुबह दिग्गज नेताओं की बैठक होने वाली है, इसका फैसला लेकर केंद्रीय पर्यवेक्षक हाईकमान द्वारा तय नेता की विधायक दल में मुहर लगवाएंगे। इसके बाद विधायक दल के नेता मध्य प्रदेश के राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। पार्टी की रणनीति के मुताबिक सब कुछ ठीक रहा तो 25 मार्च को नई सरकार का शपथ ग्रहण भी हो सकता है। क्योंकि इसी दिन नवरात्र पूजा की शुरुआत भी हो रही है।
अभी तक पलड़ा शिवराज सिंह का ही भारी है,....