जाने,पूजा का नियम तिथियों के अनुसार-के सी शर्मा



जाने,पूजा का नियम तिथियों के अनुसार-के सी शर्मा


तिथियों के स्वामी और देवो के अनुसार पूजा करने का विधान है।

सनातन धर्म में अज्ञानियों के कारण आज कल दिन के हिसाब से पूजा हो रही है जो धर्म के विपरीत है

शिव जी की पूजा करना है.. तो...
के मंदिर सोमवार को जाते है ,

विष्णु जी की पूजा करना है...
मंदिर में रविवार या गुरुवार को जाते है ,

हनुमान  जी की पूजा करना है...
तो  मंदिर में मंगलवार या शनिवार को जाते है ,

आज कल तो शनि भी देव रूप में पूजे जा रहे है अतः शनि के मंदिर में शनिवार को जाने लगे है।

माँ दुर्गा जी की पूजा करना है... तो...
मंदिर में बुधवार और वैभव  लक्ष्मी की पूजा के लिए मंदिर में शुक्रवार को जाने का नियम बन गया है ।

तिथियों के स्वामी और देवो के अनुसार से पूजा करने का शास्त्रीय विधान है ।


तिथियों के नाम


पूर्णिमा (पूरनमासी),
प्रतिपदा (पड़वा),
द्वितीया (दूज),
तृतीया (तीज),
चतुर्थी (चौथ),
पंचमी (पंचमी),
षष्ठी (छठ),
सप्तमी (सातम),
अष्टमी (आठम),
नवमी (नौमी),
दशमी (दसम),
एकादशी (ग्यारस),
द्वादशी (बारस),
त्रयोदशी (तेरस),
चतुर्दशी (चौदस) और
अमावस्या (अमावस)।

पूर्णिमा से अमावस्या तक 15
और फिर
अमावस्या से पूर्णिमा तक 30 तिथि होती है।

तिथियों के नाम 16 ही होते हैं।

अमावस्या (अमावस) के देवता हैं अर्यमा जो पितरों के प्रमुख हैं। अमावास्या में पितृगणों की पूजा करने से वे सदैव प्रसन्न होकर प्रजावृद्धि, धन-रक्षा, आयु तथा बल-शक्ति प्रदान करते हैं। यह बलप्रदायक तिथि हैं।

1. प्रतिपदा (पड़वा) के देवता हैं अग्नि। इस तिथि में अग्निदेव की पूजा करने से धन और धान्य की प्राप्ति होती है। यह वृद्धिप्रदायक तिथि है।

2. द्वितीया (दूज) के देवता हैं ब्रह्मा। इस तिथि में ब्रह्मा की पूजा करने से मनुष्य विद्याओं में पारंगत होता है। यह शुभदा तिथि है।

3. तृतीया (तीज) के देवता हैं यक्षराज कुबेर। इस तिथि में कुबेर का पूजन करने से व्यक्ति धनवान बन जाता है। यह बलप्रदायक तिथि हैं।

4. चतुर्थी (चौथ) के देवता हैं शिवपुत्र गणेश। इस तिथि में भगवान गणेश का पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। यह खला तिथि हैं।

5. पंचमी (पंचमी) के देवता हैं नागराज। इस तिथि में नागदेवता की पूजा करने से विष का भय नहीं रहता, स्त्री और पुत्र प्राप्ति होती है। यह लक्ष्मीप्रदा तिथि हैं।

6. षष्ठी (छठ) के देता हैं कार्तिकेय। इस तिथि में कार्तिकेय की पूजा करने से मनुष्य श्रेष्ठ मेधावी, रूपवान, दीर्घायु और कीर्ति को बढ़ाने वाला हो जाता है। यह यशप्रदा अर्थात सिद्धि देने वाली तिथि हैं।

7. सप्तमी (सातम) के देवता हैं चित्रभानु। सप्तमी तिथि को चित्रभानु नाम वाले भगवान सूर्यनारायण का पूजन करने से सभी प्रकार से रक्षा होती है। यह मित्रवत, मित्रा तिथि हैं।

8. अष्टमी (आठम) के देवता हैं रुद्र। इस तिथि को भगवान सदाशिव या रुद्रदेव की पूजा करने से प्रचुर ज्ञान तथा अत्यधिक कांति की प्राप्ति होती है। इससे बंधन से मुक्त भी मिलती है। यह द्वंदवमयी तिथि हैं।

9. नवमी (नौमी) की देवी हैं दुर्गा। इस तिधि में जगतजननी त्रिदेवजननी माता दुर्गा की पूजा करने से मनुष्य इच्छापूर्वक संसार-सागर को पार कर लेता है तथा हर क्षेत्र में सदा विजयी प्राप्त करता है। यह उग्र अर्थात आक्रामकता देने वाली तिथि हैं।

10. दशमी (दसम) के देवता हैं यमराज। इस तिथि में यम की पूजा करने से नरक और मृत्यु का भय नहीं रहता है। यह सौम्य अर्थात शांत तिथि हैं।

11.एकादशी (ग्यारस) के देवता हैं विश्वेदेवगणों और विष्णु। इस तिथि को विश्वेदेवों पूजा करने से संतान, धन-धान्य और भूमि आदि की प्राप्ति होती है। यह आनन्दप्रदा अर्थात सुख देने वाली तिथि हैं।

12. द्वादशी (बारस) के देवता हैं विष्णु। इस तिथि को भगवान विष्णु की पूजा करने से मनुष्य सदा विजयी होकर समस्त लोक में पूज्य हो जाता है। यह यशप्रदा तिथि हैं।

13. त्रयोदशी (तेरस) के देवता हैं त्रयोदशी और शिव। त्रयोदशी में कामदेव की पूजा करने से मनुष्य उत्तम भार्या प्राप्त करता है तथा उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यह जयप्रदा अर्थात विजय देने वाली तिथि हैं।

14. चतुर्दशी (चौदस) के देवता हैं शंकर। इस तिथि में भगवान शंकर की पूजा करने से मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कर बहुत से पुत्रों एवं प्रभूत धन से संपन्न हो जाता है। यह उग्र अर्थात आक्रामकता देने वाली तिथि हैं।

15. पूर्णिमा (पूनम) के देवता चंद्र हैं
इस तिथि के देवता चंद्र हैं। इनकी पूजा करने से मनुष्य का समस्त संसार पर आधिपत्य होता है।
विशेषकर जिनकी चंद्र की दशा चल रही हो उनके लिए पूर्णिमा का व्रत रखना एवं चंद्र को अर्घ्य देना सुख में वृद्धि करता है। जिनके बच्चे अक्सर सर्दी जुकाम, निमोनिया आदि रोगों से ग्रसित हों उनकी मां को एक वर्ष तक पूर्णिमा का व्रत रखना चाहिए तथा चंद्र को अर्घ्य देकर अपना व्रत करना चाहिए।