क्या आप जानते है वर्ण व्यवस्था सनातन समाज की कैसे थी धुरी- के सी शर्मा
शूद्रों ने उदर पूर्ति और पूरे देश का पेट भरने के लिए मेहनत की खेतों में काम किया। क्या इसे बड़ा और कोई कष्ट हो सकता है ??
वैश्यों ने उदर पूर्ति के लिए अर्थव्यवस्था चलाने हेतु पूरी दुनिया की ख़ाक छानी है। क्या ये कम है ??
क्षत्रियों ने देश धर्म की रक्षा हेतु अपनी जान देकर दो वक्त की रोटी खायी है। इसे बड़ा त्याग और हो नहीं सकता।
ब्राह्मणों ने ज्ञान की रक्षा हेतु भीख मांगकर भोजन किया है। इसे बड़ा और कोई अपमान हो नहीं सकता।
वर्णव्यवस्था आधारित प्राचीन भारतीय संस्कृति की कुछ विशेषताएं हैं जो आपको बतानी हैं :-
पद और प्रतिष्ठा जन्म अनुसार नहीं, गुण और कर्म अनुसार मिलता था और आज भी यही चलन है किसी भी धार्मिक संगठन में आप देख लीजिए अब भी ऐसा ही होता है।
जिनकी जितनी अधिक साधना, त्याग और धर्माचरण को कृति में लाने के प्रयास होते थे, उन्हें समाज में उतना ही उच्च स्थान प्राप्त होता था अर्थात् सम्मान के अधिकार की पात्रता, साधना और त्याग के आधार पर हुआ करती थी।
हमें गर्व होना चाहिए ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों पर जिन्होंने एक घर की तरह देश को चलाया।
पर आज के नेता चाहे वे किसी भी वर्ण से क्यों ना हो अपने स्वार्थ के लिए हमे ऊँचा-नीचा दिखाकर आपस में लड़ाते हैं और हम लड़ते हैं।
और दूसरे नंबर पर ये मिडिया जिसने हमारे बारे में समाज को गलत जानकारियां देकर सबसे ज्यादा नुकसान किया है समाज का।
वे कभी ऐसी बात नहीं बताएंगे, क्योंकि वे अपने भले में सबका भला समझते हैं और हम समाज के भले में अपना भला समझते हैं यही अंतर है।
कम शब्दों में ज्यादा बात, जो समझे उनका धन्यवाद
नहीं समझें तो कोशिश करिये समझाने की
वंदे मातरम्।