जाने क्या है उगते सूर्य को अर्घ्य देने का सिद्धांत और उसके फायदे

के सी शर्मा

सनातन धर्म मे सूर्य को जल देना प्रातः और संध्या काल दोनों में विदित है इसका मुख्य कारण है सूर्य की किरणों से उपचार।
एक श्लोक के अनुसार
अथ संध्यायाम यदप: प्रयुक्ते
ता विपरुषो वज्री भूत्वा असुरंपाध्यन्ति
अर्थात संध्या में जो जल का प्रयोग किया जाता है वो जल कण वज्र बन कर असुरों का विनाश करते हैं।
यहां असुर व्यक्ति के भीतर घर किये हुए घातक रोग हैं।टाइफाइड न्यूमोनिया जिनका विनाश सूर्य की दिव्य किरणों से हो जाता है।
टाइफाइड के जीवाणु जो महीनों की दवा से नही मरते सूर्य की अल्ट्रावायलट किरणों से डेढ़ घण्टे में मर जाते हैं।
वैदिक विज्ञान ही नही आज के वैज्ञानिक भी इस सत्य को स्वीकार करते है कि सूर्य की किरणों में बहुत से रोगों को समाप्त करने की शक्ति है।
सूर्य के उदय के समय व्यक्ति जब जल लेकर सूर्य की ओर मुख करके खड़ा होता है तो नवोदित सूर्य की सीधी किरणें मस्तक से लेकर पांव तक साधक के शरीर के समान सूत्र में गिरती हुई  उपात्त रंगों के प्रभाव को समस्त शरीर मे प्रवाहित कर देती हैं।इस लिये उगते हुए सूर्य के सामने पूर्व में ओर ढलते हुए सूर्य के सामने पश्चिम में खड़े होकर जल  देना चाहिए।
रोगों के उपचार के लिये आधुनिक सन बाथ अनेक समुद्र तटों पर किया जाता है।यही नही अलग अलग रंगीन कांच की बोतलों में जल भर कर सूर्य की रोशनी में कुछ घण्टे रख कर अनेक रोगों का इलाज जल चिकित्सा में भी किया जाता है।अतः जल और सूर्य की किरणों के इस सम्बंध की इस सरल वैज्ञानिक समीकरण को समझिए तथा दिन में दोनों समय इस क्रिया को करके स्वस्थ जीवन शैली को अपनाइए।
जय भारत