जानिए,क्या है राजस्थान का "ढूंढोत्सव"-के सी शर्मा



जानिए,क्या है राजस्थान  का "ढूंढोत्सव"-के सी शर्मा


होली के दूसरे दिवस यानि
धुलण्डी के दिन राजस्थान में यह परम्परा निभाई जाती है। परम्परा के अनुसार ढूंढ़ कई स्थानों पर अलग अलग समय पर होती हैं,
हालांकि होलिका दहन के बाद ही नवजात बच्चों को ढूंढने की रस्म अदा होती है।
धुलंडी के दिन वर्ष भर में जन्मे बच्चों की ढूंढ की परम्परा के निर्वहन के साथ ही स्वस्थ जीवन की कामना की जाती है।
इससे पूर्व कई कार्यक्रम होते हैं। रात को सांजी (मंगल गीत) की गूंज सुनाई देने लगी है। नवविवाहित होलिका दहन स्थल के फेरे लगाएंगे।
जिनके घर में ढूंढोत्सव है वहां पर बड़े भोज का भी आयोजन होगा।
बच्चे के ननिहाल वाले पहली बार कपड़े व आभूषण लेकर आएंगे। पर्व को लेकर महिलाओं ने घरों की सफाई भी शुरू कर दी है।

ढूंढ के समय एक बडे लट्ठ
को दोनों सिरो से पकडकर डंडों से लट्डों को पीटा जाता है और उस लट्ठ के नीचे शिशु को बिठाया जाता है।
और
एक विशेष आशीर्वाद और दुआओ वाला गीत (चित्र के साथ ) गाकर शिशु के आरोग्य कामना की जाती है।

जानकारी के के अनुसार
प्राचीन काल में पिंगलासुर नाम का राक्षस था, जो नवजात शिशुओं को खा जाता था।
रक्षा के लिए गांव के लोग लट्ट लेकर खड़े होने लगे। बाद में यह परम्परा ढूंढोत्सव के रूप में मनाई जाने लगी, जिसमें लट्ट का प्रतीकात्मक डंडा लेकर शिशु के आरोग्य व आयु वृद्धि की कामना की जाती है।