पाॅम-पाॅम शो के समापन के साथ "बारादरी' का हुआ शुभारंभ
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल के बच्चों ने लिया धरा, जल, पर्यावरण संरक्षण का संकल्प
संवाददाता
गाजियाबाद। सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल की नेहरू नगर शाखा में तीन दिवसीय पाॅम- पाॉम शो के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि उर्वशी अग्रवाल 'उर्वी' ने कहा कि नन्हे मुन्ने बच्चों की तमाम प्रस्तुतियां इस बात का सुबूत हैं कि स्कूल बच्चों को संस्कारित करने में सफल है। अधिकांश स्कूली कार्यक्रमों में जहां भारतीय सभ्यता का लोप हो रहा है, मंच पर पाश्चात्य संस्कृति अपनाई जा रही है, वहां इस स्कूल के बच्चों की प्रस्तुतियां भारतीय संस्कृति पोषित करने का काम कर रही हैं। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. बृजपाल सिंह त्यागी ने बच्चों द्वारा धरा, प्रर्यावरण, जल संरक्षण व स्वच्छता के प्रति जागरूकता की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। स्कूल की डायरेक्टर प्रिंसिपल डॉ. माला कपूर ने कहा कि विकास ने नाम पर हमने जो क्षति की है उसकी पूर्ति आने वाली नस्लें ही करेंगी।
दो सत्रों में आयोजित पाॅम-पाॅम शो के मध्य मीडिया 360 लिट्रेरी फाउंडेशन द्वारा "कवि संवाद" का आयोजन भी किया गया। डॉ. कुंवर बेचैन की अध्यक्षता में हुए "कवि संवाद" की शुरूआत संतोष ओबराय द्वारा चंद शेरों से की गई। उन्होंने कहा "संभल कर बैठना कातिल तू मेरे सीने पर, लहू की छींट से दामन जरा बचाए हुए, कफन हटाओ ना लिल्लाह मेरे चेहरे से, गुनहगार हूं रहने दो मुंह छिपाए हुए।" मासूम गाजियाबादी ने कहा "आओ इंसानी रूहों के सौदागरों, लोग बैठे हैं बिकने को बाजार में। बेबसी से किसी की तुम्हें क्या गरज, आज तो खोटे सिक्के भी चल जाएंगे। "कवि संवाद" के केंद्र में रहीं उर्वशी अग्रवाल 'उर्वी' ने कहा कि "बारादरी" के तौर पर आयोजित यह गोष्ठी हमारे जिंदा रहने का सुबूत है। उन्होंने कहा कि मंचों और महफिलों से अलग हटकर इस तरह का समागम भी आवश्यक है। जिसमें गिनती के सुनने वाले और सुनाने वाले हों। जहां रचनाओं पर मुकम्मल तौर पर चर्चा भी हो सके। उन्होंने अपने गीत, ग़ज़ल, दोहे और महाकाव्य के अंशों से भरपूर वाह वाही बटोरी। उन्होंने फरमाया "मैं शबरी हूं राम की चखती रहती बेर, तकती रहती रास्ता, हुई कहां पर देर।" "मैं दर्शन की प्यासी हूं, घर में ही प्रवासी हूं।" काश वचन स्वीकार ना करती, मैं भी रेखा पार करती।"
डॉ. माला कपूर ने महफिल का नामकरण "बारादरी" करते हुए इन पंक्तियों "नवाज़े संग ओ ख़िश्त कुछ इस अन्दाज़ से, शर्म से वो मरमरी गुलाब हो गए। रफ़्तार ही वजह थी हवा तो बस हवा थी, रोशन हुई दहलीज़ कहीं आशियाँ जला। तुम ही मसरूफ नहीं दुनिया में बशर, गिरफ़्त में इसकी सारी कायनात है।
ख़्वाहिशों का दिया यूं डर डर के ना जला, हवाएँ हर दम आंधियों का पैग़ाम नहीं होतीं" पर भरपूर दाद बटोरी। आलोक यात्री ने "नानी की चिट्ठी" कविता पढ़ी। अंजू जैन ने फरमाया "घिसी इतनी कि चंदन हो गई हूं, झुकी इतनी कि वंदन हो गई हूं, छुआ मैंने तो पारस से लगे तुम, छुआ तुमने तो कुंदन हो गई हूं।" कार्यक्रम का संचालन दीपाली जैन "ज़िया" ने किया। उन्होंने भी अपने शेरों पर भरपूर वाहवाही बटोरी। उन्होंने कहा "तुमने बांधा है खुद को हदों में, हूं समर्पित मैं पूरी की पूरी, दो कदम मैं चलूं दो कदम तुम तब मिटेगी दूरी।" डॉ. रमा सिंह ने अपने मुक्तक और ग़ज़ल पर वाहवाही बटोरी। उन्होंने फरमाया "मौन का आसमान होता है, आंसुओं में बयान होता है, है उसे जानना बहुत मुश्किल, दर्द तो बेजुबान होता है।" डॉ. कुंवर बेचैन ने कहा "पत्थर की तरह वह तो मुझे देखता रहा, मैंने ही चलकर ताजमहल को विदा किया। कहां है वह गहराइयां हंसने हंसाने में, मिलेंगी जो किसी के साथ दो आंसू बहाने में।" मीडिया 360 लिट्रेरी फाउंडेशन के अध्यक्ष शिवराज सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. मंगला वैद, कविता शरना, रेनू चोपड़ा, उमा नवानी, अतुल जैन, राजीव शर्मा, अर्चना शर्मा, वैभव शर्मा सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।