नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग (25 मार्च 1914 - 12 सितम्बर 2009) नोबेल पुरस्कार विजेता एक अमेरिकी कृषिविज्ञानी थे, जिन्हें हरित क्रांति का पिता माना जाता है। बोरलॉग उन पांच लोगों में से एक हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार, स्वतंत्रता का राष्ट्रपति पदक और कांग्रेस के गोल्ड मेडल प्रदान किया गया था। इसके अलावा उन्हें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया गया था। बोरलॉग की खोजों से दुनिया के करोड़ों लोगों की जीवन बचा है।
प्रसिद्धि
हरित क्रांति में अपनी भूमिका को लेकर, रोगमुक्त उच्च उत्पादकता वाले गेहूं की किस्मों के विकास में भूमिका और विश्व खाद्य पुरस्कार के संस्थापक के रूप में।
उल्लेखनीय सम्मान
नोबल शांति पुरस्कार, स्वतंत्रता का राष्ट्रपति पुरस्कार, कांग्रेसनल गोल्ड मेडल, विज्ञान का राष्ट्रीय पुरस्कार, पद्म विभूषण और रोटरी इंटरनेशनल पुरस्कार
उनके नवीन प्रयोगों ने अनाज की समस्या से जूझ रहे भारत सहित अनेक विकासशील देशों में हरित क्रांति का प्रवर्तन करने में महत्वपूर्ण योगदान किया।अगर बोरलॉग न होते तो हम में से बहुत से लोग भूख से मर गए होते। आप पूछेंगे कि क्यों, तो मैं उत्तर दूँगा–हमारा गेहूँ खत्म हो गया था। हम और पाकिस्तान दोनों अमेरिकी दया पर ज़िन्दा थे। तब बोरलॉग साहब, जिन्होंने मेक्सिको में एक नए किस्म के छोटे गेहूँ का प्रयोग किया था, जिसमें घुन नहीं लगती थी, 1963 में भारत आए। उनके पास नए गेहूँ के नमूने थे। उन्होंने लुधियाना एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के हमारे वैज्ञानिकों को इस गेहूँ की शिक्षा दी और कहा कि वे अपनी प्रयोगशालाएँ छोड़कर गाँवों में जाएँ और किसानों से यह गेहूँ पैदा करने को कहें। पाकिस्तान में भी उन्होंने यही किया। दस साल के भीतर दोनों देश खाने के मामले में आत्मनिर्भर हो गए–उन्होंने चावल और मक्का के भी नए नमूने तैयार किए। इसे हम हरितक्रान्ति कहते हैं। यह जैसे जादू था। वे सचमुच जादुई आदमी थे, हमारे युग के विष्णु अवतार।
इन्होंने मेक्सिको में बीमारियों से लड़ सकने वाली गेहूं की एक नई किस्म विकसित की थी। इसके पीछे उनकी यह समझ थी कि अगर पौधे की लंबाई कम कर दी जाए, तो इससे बची हुइ ऊर्जा उसके बीजों यानी दानों में लगेगी, जिससे दाना ज्यादा बढ़ेगा, लिहाजा कुल फसल उत्पादन बढ़ेगा। बोरलॉग ने छोटा दानव (सेमी ड्वार्फ) कहलाने वाले इस किस्म के बीज (गेहूं) और उर्वरक विभिन्न देशों को भेजा, जिनसे यहां की खेती का पूरा नक्शा ही बदल गया। उनके कीटनाशक व रासायनिक खादों के अत्यधिक इस्तेमाल और जमीन से ज्यादा पानी सोखने वाली फसलों वाले प्रयोग की पर्यावरणवादियों ने कड़ी आलोचना की। वे दुनिया को भुखमरी से निजात दिलाने के लिए जीन संवर्धित फसल के पक्ष में भी रहे। उनका मत था कि भूख से मरने की बजाय जीएम अनाज खाकर मर जाना कहीं ज्यादा अच्छा है। पर्यावरणवादियों के ऐतराज का भी जवाब उन्होंने यह कहकर दिया कि अगर कम जमीन से ज्यादा उपज ली जाती है, तो इससे प्रकृति का संरक्षण ही होता है।