अविस्मरणीय सिंगरौली!
लेखक- वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र नीरव
------------------------
बहुत याद आती है, प्यारी सिंगरौली
विंध्य की लाडली,रेणुका की गोद में बढ़ी-पली
लुप्त हो गयी , हमेशा के लिये हतभागी
पीकर अंधेरे का विष: दे कर देश को बिजली ।
सवा सौ गांव, सवा लाख वनवासी-किसान
हम उन्हें बसा नहीं सके जिन्हें उजाड़ दिया
रिहंद बांध बनाने के निमित्त
कहा था स्वप्नदर्शी प्रधानमंत्री ने-
यह इलाका भारत का स्विट्जरलैंड बनेगा।
जिन गांवों को रौंद दिया गया
वहां के सभी वृक्ष खुद ही सूख गये
फलदार बगीचों ने निर्जन इलाके में जिंदा रहने से
इनकार कर दिया ।
मैने देखा है रिहंद के किनारे दूसरी बार बसे,
बचे-खुचे गांवों को औड़ी से कोटा तक,
बीजपुर से खैरी-मिटिहनी तक
बीना, ककरी, बांसी, रेहटा, परसवार, राजा परसवार ,
झींगुरदह, निगाहीं, जयंत ,गुरबी ...।
इन्हें दूसरी और तीसरी बार बुलडोज किया गया ।
प्रकृति और संस्कृति का सहनशील समन्वय
मिट्टी और हाथ के रिश्ते से जन्मा स्वनिर्भर समाज
जो अब कहीं भी और कभी भी नहीं दिखेगा।
विकास के दावेदार अपनी शाहंशाही निशान छोड़
किताबों गुम हो गये।
जमीन के बंटमार जन प्रतिनिधि
और घटनाओं के पीछे भागते बुद्धिमान
कहीं वाह ,कहीं आह कहीं तरन्नुम हो गये ।
नये हुक्मरान ने अपने उपनिवेश में
ऊंची चारदीवारियों के बीच सुरक्षित
कालोनियां बना लीं लेकिन वे
एक भी टोला नहीं बना सके
सिंगरौली के गांव की तरह । जिसे-
कश्मीर की बेटी कहते थे।
' वनवासी -पंचशील ' ,'नेहरू.एटीच्यूड' के प्रवर्तक ने
विंध्य की प्रकृति-संस्कृति को
बिजलीघरों, खदानों के जहरीले कचरे से पाट दिया ।
हरी-भरी स्मृतियों को जड़ों से बांट दिया ।
पुरानी कथा में सुनते हैं
मां रेणुका का सिर पिता जमदग्नि के आदेश से
परशुराम ने काट दिया था। पिता की कृपा से मां पुनर्जीवित हो गयी लेकिन जब विकास की मशीन से रेणुका की हत्या की गयी तब वह फिर नहीं जिंदा हुई।
हमेशा के लिये निर्जीव ।
जहरीले उत्सर्जन , तेजाब, कार्बन, सल्फर, क्लोरो-फ्लोरो
राख, धुआं , मरघटी पर्यावरण में मांगना प्राणदान!
क्या यह संभव है? क्या सिंगरौली वापस लौट सकती है?
क्या रेणुका फिर जिंदा हो सकती है?
जो भी फल -फूल और सब्जियां शहर के बाजारों में
बिकती हैं वह सब पैदा होता था मेरी सिंगरौली में।
सघन विकसित वन
आम के जंगल -आम्रवनी
सफेद सिंहों की रमणस्थली-सिंगरौली
कहती हैं फेसबुक पर सिंगरौली की बेटी प्रिया मिश्र-
'सिंगरौली धरती गहर गंभीर।
पग-पग रोटी, पग-पग नीर ।'
12वीं शताब्दी में सिंगरौली की राजधानी गहरवार गांव से
उदित गहरवारों ने प्रचंड सूर्य की शक्ति से
पूरे भारत पर अपना तेजस्वी साम्राज्य स्थापित किया
धर्म-राज्य के निमित्त निरंतर जूझते हुए
सत्य-सनातन प्रतीकों को प्रतिष्ठित किया ।
विजयगढ़ से बनारस से दिल्ली तक ।
कहां गये वनवासी खरवार
जो सिंगरौली, पलामू, अगोरी ,विजयगढ़, अगोरी के
मौलिक मलिकार थे ? हार गये राज-पाट युद्ध में
या धोखे से वन में भगाये गये ।
डूब गयी सिंगरौली कश्मीर की बेटी
काठ और मिट्टी से निर्मित इकपहले / दोपहले / तिनतल्ले / चौमंजिले घर ।
खपरैल छाजन / चारदीवारियां /गोशाले
चरन, कोठिला, भुसौल , ...।
कहां गया खैरवा थाना
शीशे का किला
बांध के विरुद्ध सत्याग्रह करती अडिग नायिका
रानी चुन कुंवर जिनके साहस को
सलाम किया था लोहिया ने...।
लगभग सवा सौ गांव,
हजार से अधिक टोले
सवालाख आबादी
देश के नक्शे से गायब !
अब वहां पं. गोविंद वल्लभ पंत सागर है
अपने पेटे में छिपाये सिंगरौली का इतिहास!
सिंगरौली एक सुनहरी याद है
ऐसा एक भी इलाका नहीं कोई दूसरा
हम सिर्फ सपना देख सकते हैं
बिना सरकारी मदद के स्वर्ग बसाया जा सकता है
लेकिन हम एक पुरवा भी नहीं आबाद कर सके ।
गाती थीं आदिवासी स्त्रियां-
'चल देखा चली रे
लागल मेला सुहौली ।
पहिला मेला पचौली में लागल,
दूसर मेला बनौली ।
तीसर मेला ज्वालामुखी में लागल
निकल पड़े सिंगरौली '।
अर्थात्-चलो सुहावने मेले देखने ।पहला मेला पचौली में
लगाहै, दूसरा बनौली में और तीसरा ज्वालामुखी में ।वहीं
से सिंगरौली चलेंगे ,जहां हर दिन मेला लगता है।
सन्1962में रिहंद बांध की डूब के बाद हंसना भूल गये
उन्हें कहने लगे लोग-सिंगरौली के टुअर
हां ,वही सिंगरौली जहां टुअर के भी घर में
अनाज से कोठार भरे रहते थे।
फल और सब्जियां लोग खरीदते नहीं थे लोग।
व्यापारी घोड़े पर आते थे
सिर्फ साबुन, नमक ,हींग, कपड़े.सलाई, सजौटी श्रृंगार के
सामान बेचते थे बाहर के व्यापारी ,और सिंगरौली से
ले जाते थे -चिरौंजी, कत्था, लाह, त्रिफला, गोंद, खीराबीज, घी, वनौषधियां...। अहिरौरा तक सैकड़ों
बरदहा डेढ़ सौ कि.मी. कौवाउड़ान पैदल रेंग कर।
उधर से सामान लेकर वापस सिंगरौली लौटते थे ।
बैलों पर व्यापार का यह सिलसिला लगातार
चलता था । सिंगरौली के धन से हजारों का
पेट-परदा चलता था।
सिंगरौली सदैव रही है उर्जा की कामधेनु
जिसे बांध दिया गया रिहंद बना कर
इतनी बेरहमी से दूहा गया कामधेनु को
वह अब मृतप्राय हो चुकी है ।
सिंगरौली क्या फिर से जिंदा हो सकती है?
नहीं
वह न्यायालयों /ट्रिब्यूनलों की चिट्ठी-पत्री में फंसी
निस्पंद कार्रवाई है
सड़ी हुई लाश की तरह दुर्गंधित
पोस्टमार्टम होने तक ।
क्या सिंगरौली को कभी न्याय मिलेगा?
क्या सिंगरौली के लिये घर वापसी का कोई रास्ता नहीं?
----------------------------
शब्द/चित्र: नरेंद्र नीरव