*प्याज की आग-के सी शर्मा*
इस देश की जनता का एक बड़ा वर्ग अपने पसंदीदा हीरो की फिल्मों का 200 से 500 करोड़ का मुनाफा करवा सकती है।
लेकिन प्राकृतिक आपदा और कम उत्पादन के कारण प्याज़ को 80 से 100 रु में खरीद नहीं सकती।
जबकि मल्टीप्लेक्स में 200 रु में एक छोटे पैकेट में मिलने वाले पॉपकॉर्न बड़ी आसानी से खरीद लेंगे।
वहां स्टेट्स के सवाल जो रहता है, ओमेटे-झोमेटो से महंगे पिज़्ज़ा बर्गर खाने वाले TV न्यूज़ चैंनलों में ऐसे ही लोग विरोध कर रहे है गले में प्याज़ की माला पहनें हुए है लेकिन वो प्याज़ की माला किसी उस झोपड़ी वाले गरीब को नहीं दे सकते जो वास्तव में प्याज नहीं खरीद सकता।
अजब-गजब है अभी सभी मोबाइल नेटवर्किंग कम्पनियों ने 40 से 50 प्रतिशत भाव बढ़ाये लेकिन मज़ाल है किसी ने मोबाइल गले में डालकर विरोध दर्ज करवाया हो आखिर क्या है माज़रा सिर्फ प्याज़ के बड़े भाव का।
वैसे देशवासियों को इतना करना चाहिए कि अब इस प्याज का प्रयोग कुछ दिनों के लिए बंद करते ताकि जो जमाखोर प्याज का स्टॉक बनाकर बैठे हैं उनका नुकसान हो और आगे से वापस इस तरह की समस्या न तैयार हो।
हर बार प्याज को लेकर बवाल होता है और जनता को बेवकूफ बनाया जाता है...मीडिया वालों को अच्छी TRP मिल जाती है और इन्हीं बातों से प्याज की रेट भी बेचने वाले बढ़कर बेचते हैं क्योंकि उनको बहाना मिल जाता है।
जनता समझदार बने और इन सभी को मजा चखाए सारा मसला सदा के लिए खत्म हो जाएगा...प्याज खाना कोई अत्यंत आवश्यक नहीं...केवल २ काम कीजिए :-
१- ऐसी कमी के समय (जब जमाखोर प्याज दबाकर बैठ जाते हैं और रेट बढाते हैं ) तजा प्याज खरीदें ताकि किसानों का सामान बीके और जमाखोरों का प्याज सड़े (इससे थोड़ा असर तो पड़ेगा )।
२- यदि प्याज महँगा है तो थोड़े दिन प्याज खाना बंद कर दीजिए (ये टेक्निक हर सामान पर आजमाई जा सकती है ) जब मांग कम होगी तो अपने आप प्याज की रेट नीचे आएगी।
१०० की एक बात ये है कि प्याज कभी कम नहीं होता ये जमाखोर दबाकर बैठ जाते हैं ताकि महंगे दामों में बेच सकें और मोटा मुनाफा कमा सकें...इसलिए इन्हें सबक सिखाना जरूरी है।