आज के दौर की कडुई सच्चाई वरिष्ठ पत्रकार केसी शर्मा की कलम से


*-के सी शर्मा*
बेटियों के रेप की घटना, गैंग रेप की घटना,मॉबलिंचिंग,बैंक लूट,रेप के बाद अब बेटियों को जला देने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।हैदराबाद में गैंगरेप, बिहार के बक्सर में रेप कर जला देना जिसमें पैर का सिर्फ एक बित्ता भाग बचा था,समस्तीपुर में भी बेटी को रेप कर जला दिया गया, मुजफ्फरपुर के अहियापुर में बेटी को उसके घर में घुसकर किरासन तेल डालकर जला दिया गया,शरीर का 90℅ भाग जल चुका है, सिर्फ गर्दन से ऊपर का भाग बचा है, जिसे पटना रेफर किया गया है।

अब समाजिक पतन की शुरुआत अपना रंग दिखाने लगा है।समाज से नैतिकता का,वैचारिकता,आपसी भाईचारा, बंधुत्व जब समाप्त हो जाता है तो इसे सामाजिक पतन की शुरूआत कह सकते हैं।इस तरह की घटनाएं किसी भी तरह के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करती!अगर प्रतिनिधित्व करती भी हैं तो वह है हैवानियत और राक्षसी प्रवृति!इसलिए अब हम यह कह सकते हैं कि भारतीय समाज बहुतायत में हैवानियत और राक्षसी प्रवृति वाला समाज बनता जा रहा है।

नई पीढ़ी को मार्गदर्शन देने के लिए न अब आदर्शवादी नेतृत्व है, न आदर्शवादी समाज है,न आदर्श शिक्षक हैं, न ही आदर्श घर-परिवार है,न आदर्शवादी माता पिता हैं।

सवाल उठता है कि फिर इसे संचालित कौन करता है?
जाहिर सी बात है कि जब किसी ऊंचाई से वेग के साथ जल की धाराएं निकलेंगी तो उसे रास्ता चाहिए, अगर रास्ता न मिला तो सैलाब आ जाएगा, तबाही-बर्बादी मचा देगा।
ठीक यही स्थिति नई पीढ़ी के लड़कों के साथ है।
उसके आस-पास, समाज, घर-परिवार का वातावरण वह नहीं रहा जो उसे अपने में समेट ले,या जिस तरह का परिवेश-वातावरण उसके आस-पास बन चुका है जिसमें वह ढल चुका है।
वह वातावरण और परिवेश है हैवानियत और राक्षसी प्रवृति वाला!
अब की नई पीढ़ी गाईड हो रही है पूंजी से, बाजार से!
बाजार ही उसका मार्गदर्शक है।बाजार उसे उपलब्ध कराता है 4G-5G डाटा!
मोबाइल डाटा के स्कूल में हर विषय के गुरुजी हैं।वह जिस सवाल का जवाब चाहता है वह उस विषय के गूगल जी(गुरु जी) से जवाब प्राप्त कर लेता है!
इस तरह की घटनाओं में गूगल गुरु जी का बहुत अहम योगदान है।दूसरी अहम बात ये गूगल गुरुजी और 300-400 टेलीविजन चैनल्स ने सामाजिक जरूरतों,सामाजिक पहलों को समाप्त कर दिया।
जब सामाजिक जरूरत और पहल समाप्त हुए तब सामाजिक रिश्ते भी उतनी तेजी से विलोपित होते चले गए।
रिश्ते टूट चुके हैं।
वह समाज जिसमें कोई दादा,चाचा,भाई,भतीजा, पोता हुआ करता था, ठीक इसी तरह बहन,बुआ,दादी,चाची का रिश्ता होता था।भले ही भतीजे की उम्र 50 और चाचा की उम्र 10 साल का हो।
रिश्ता इसी तरह निभता था।दूसरी बात काम करने का समय निर्धारित 10 से 4 बजे तक का समय।लोग ड्यूटी कर घर समय से लौट जाते थे फिर शाम के वक़्त एक दूसरे के यहाँ हाल-चाल लेने पहुंच गए।
इसी में टोला मोहल्ला का सब समाचार प्राप्त हो जाता था।लेकिन जैसे-जैसे सरकारीकरण समाप्त हो निजीकरण का दौर शुरू हुआ जिंदगी बेचैन सी हो गई।
प्राइवेट नौकरी, दस-दस घँटा काम।सुबह भागिए काम पर, रात को लौटिए घर पर।एक तो दिन भर की थकान,उपर से रात भी,अब कौन अपने पड़ोसी के घर जाए और हाल खबर ले।
सबसे प्रमुख बात शिक्षा का निजीकरण और महंगी शिक्षा भी!
पहले तो स्कूल एक ही जिसमें गांव टोले के सभी बच्चे उसी स्कूल में।सबका बच्चा एक साथ!इससे कौन बच्चा क्या कर रहा है, हर गतिविधि की खबर सामाजिक स्त्रोत से बच्चे के गार्जियन को।
अब बच्चा अपने बाप के औकात के मुताबिक स्कूलों में जा रहा है, जरूरी नहीं कि पड़ोसी का औकात भी वही हो,पड़ोसी का औकात उससे भी बड़ा और उससे भी छोटा होगा, वह उस औकात के मुताबिक उससे भी महंगे या सस्ते स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाएगा।
स्कूलों का बड़ा बाजार है।
सबके बच्चे अलग-अलग स्कूलों में पढ़ रहे।अब गार्जियन को किस माध्यम से पता चले कि बच्चा क्या कर रहा है।
स्कूल वाला रिपोर्ट कार्ड थमा देता है, जिसमें सबका बेटा अव्वल ही होता है।बाप समझता है आ हा हा हा बेटा तो अव्वल आया।
लेकिन उसको क्या मालूम कि स्कूल वाला उसका भी उस्ताद है।उसे मालूम है कि रिपोर्ट कार्ड मन मुताबिक न हुआ तो बच्चे का स्कूल से नाम कटवा दूसरे स्कूल में डाल दिया जाएगा इसलिए रिपोर्ट गार्जियन का  मन प्रसन्न करनेवाला बना थमा दो और एडमिशन फिस भी इतना रख दो की जल्दी से नाम कटवाकर दूसरे स्कूल में न जाए।
प्राइवेट कोचिंग का चलन भी तेजी से बढ़ा है, स्कूल भी,अलग-अलग कोचिंग भी!बाजारू व्यवस्था ने यह माहौल पैदा कर दिया कि बच्चों से उसका बचपना छीन उसे पढ़ने की मशीन बनाई जाय तभी ऐशोआराम की जिंदगी मिल सकती है।नतीजा हुआ कि बच्चे पढ़ने में नहीं सक रहे, घर से पीठ पर बैग लाद चले स्कूल कोचिंग करने और रास्ते में बैठ गए स्मैक,ड्रग,अफ़ीम लेने।सुलेशन सूंघने।

गरीबी भी इन घटनाओं के कारणों में है, शिक्षा मिली नहीं,जिंदगी अभावों वाली,इच्छा मोबाइल रखने की।उसमें भी साल में कई लेटेस्ट तरह के मोबाइल लांच करते हैं,
 उसे पाने की इच्छा में छिनतई की घटना तेजी से बढ़ी है, आए दिन लूट हत्या के समाचार प्राप्त होते रहते हैं।
लुभावनी बाजारू संस्कृति ने समाज में कई विकृतियां पैदा की हैं।
जिसमें नैतिक- अनैतिक कार्यों का कोई मूल्य न रहा।चाहे जैसे पैसा कमाकर घर में बेटा ला रहा हो बाप-पूरा परिवार उसमें अपनी मौन सहमति रखता है।
ऐसे कई कारण हैं जो सभी आपस में एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।इस पर गंभीरता के साथ अपराध- उन्मूलन अभियान चलाकर किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन इतना तो तय है कि इस सब की जड़ या धूरी बाजार ही है।
इन विकृतियों पर सामाजिक रूप से चर्चा करने की जरूरत है।
मैं इसका निदान फेक इनकाउंटर,मॉबलिंचिंग, जेल या फांसी को नहीं मानता,समाज को हैवानियत, राक्षसी प्रवृति से लौटकर पुनः मानवता की ओर आना होगा।नही तो पतन निश्चित है।