इंसानी आत्मा का परमात्मा से मिलन के सी शर्मा की रिपोर्ट


*परमात्मा में प्रवेश-के सी शर्मा*

 कभी भी कहीं से परमात्मा में प्रवेश सम्भव है, क्योंकि वह सर्वत्र है। बस उसने प्रकृति की चादर ओढ़ रखी है। यह चादर उघड़ जाय तो प्रति घड़ी-प्रतिक्षण उसका अनुभव होने लगता है।

 एक श्वास भी ऐसी नहीं आती-जाती, जब उससे मिलन की अनुभूति न की जा सके। जिधर भी आँख देखती है उसी की उपस्थिति महसूस होती है। जहाँ भी कान सुनते हैं, उसी का संगीत सुनाई देता है।

  उन सर्वव्यापी प्रभु को देखने की कला भर आना चाहिए। उसे निहारने वाली आँख चाहिए।
 इस आँख के खुलते ही वह सब दिशाओं में और सभी समयों में उपस्थित हो जाता है।
 रात में जब सारा आकाश तारों से भर जाय, तो उन तारों के बारे में सोचो मत, उन्हें देखों। महासागर के विशाल वक्ष पर जब लहरें नाचती हों, तो उन लहरों को सोचो मत, देखो। विचार थमे, शून्य एवं नीरव अवस्था में मात्र देखना सम्भव हो सके, तो एक बड़ा राज खुल जाता है।
  और तब प्रकृति के द्वार से उस परम रहस्य में प्रवेश होता है, जो कि परमात्मा है।
 प्रकृति परमात्मा पर पड़े आवरण से ज्यादा और कुछ भी नहीं है। और जो इस रहस्यमय, आश्चर्यजनक एवं बहुरंगे घूँघट को उठाना जानते हैं, वे बड़ी आसानी से जीवन के सत्य से परिचित हो जाते हैं।उनका परमात्मा में प्रवेश हो जाता है।

  सत्य का एक युवा खोजी किसी सद्गुरु के पास गया। सद्गुरु से उसने पूछा- मैं परमात्मा को जानना चाहता हूँ। मैं धर्म को, इसमें निहित सत्य को पाना चाहता हूँ।
आप मुझे बताएँ कि मैं कहाँ से प्रारम्भ करूँ ? सद्गुरु ने कहा, क्या पास के पर्वत से गिरते झरने की ध्वनि सुनायी पड़ रही है ? उस युवक ने हां में उत्तर दिया। इस पर सद्गुरु बोले, तब वहीं से प्रवेश करो। यही प्रारम्भ बिन्दु है।

  सचमुच ही परमात्मा में प्रवेश का द्वार इतना ही निकट है। पहाड़ से गिरते झरनों में, हवाओं में डोल रहे वृक्षों के पत्तों में, सागर पर क्रीड़ा करने वाली सूर्य की किरणों में। लेकिन हर प्रवेश द्वार पर प्रकृति का पर्दा पड़ा है। और बिना उठाए वह नहींउठता और थोड़ा गहरे उतरकर अनुभव करें तो पाएँगे कि यह परदा प्रवेश द्वारों पर नहीं, हमारी अपनी दृष्टि पर है। इस तरह अपनी दृष्टि पर पड़े इस एक परदे ने अनन्त द्वारों पर पर्दा कर दिया है।
यह एक पर्दा हम हटा सकें, तो हमारा परमात्मा में प्रवेश हो।