आसान नहीं है आम दिलों से जुड़ा प्रतिनिधित्व



॥ सोना वही खरा उतरता है जो असल मे सोना होता है ॥

के के मिश्रा / हरीश सिंह
सन्त कबीर नगर - वैसे राजनीति की दुनिया से कोई अनजाना नही है और न ही ये भूला बिसरा पटल है यहां आने वालो की भी कोई कमी नही है हर रोज यहां लोकल ट्रेन के यात्रियो की तरह लोगो की इंट्री होती है लेकिन कोई नेता की परिभाषा से परिभूषित हो ऐसा कोई - कोई किंवदंती स्वरूप किसी इकलौते की इंट्री होती है । ऐसा ही जनपद मे शिक्षा जगत मे बेहतर शिक्षा गुणवत्ता परक शिक्षा के शिखर पर पहुंचे प्रभा ग्रुप के वैभवशाली वैभव चतुर्वेदी है जिनका जीवन की अभिन्न अंग शिक्षा से ही सरोकार नही है बल्कि आर्थिक रुप से कमजोर व पिछड़े लोगो की वह सेवा भाव भी जागृत है जिसके पीछे कोई निज फलदायी मकसद नही होता है समाजिक कार्यों मे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना भी कोई  इत्तफाक नही है बल्कि विरासति गुण है जो जिला स्तरीय अधिकारी पिता से इन्हे विरासत मे जन कल्याणकारी गुण मिला और माता श्री से आत्मीय गुण । अपने समाजसेवी कृत्य एवं जन कल्याणकारी भावना से आम घरो के चराग बन चुके प्रभा ग्रुप के नवोदित इस सिरमौर युवा नेता के कदम की आहट उन लोगो तक पहुंच गयी है ।  जिनका राजनीतिक दुनिया से इत्तेफाकन सम्बन्ध रहा है आम दिलो मे बढ़ती इनकी लोकप्रियता से विपक्ष ही नही अपितु उन राजनैतिक गणमान्यो की वह नींद उड़ गयी है जो लोगो के उम्मीद पर इत्मिनान की नींद सो रहे है । आम दिलो से लेकर राजनीतिक पार्टी मे बढ़ती विश्वसनीय लोकप्रियता को कैसे धूमिल किया जाय , कैसे पार्टी मे बढ़ते विश्वास को तोड़ा जाय इसके लिए तरह - तरह के ताने - बाने बुने जा रहे है । इनके इस चाहत को वे लोग भी हवा दे रहे है जो पत्रकारिता जगत का तमगा जरूर लगा लिए है पर असल मे पत्रकारिता जगत से कोई सम्बन्ध दूर तक नही रहा है । लेकिन चाटुकारिता के बूते निष्पक्ष पत्रकारिता का तमगा लगाकर निष्पक्ष पत्रकारिता का राग अलापते है ये वही पीत पत्रकारिता के कर्णधार है जिनका मकसद स्वच्छ एवं सुसंस्कृतिवान समाज एवं अपराध भ्रष्टाचार मुक्त विकासशील देश प्रदेश से नही बल्कि निज लाभ की साधना से है लेकिन पीत पत्रकारिता के हिमायतदार ये भूल गये है कि चाटुकारी पत्रकारिता की तूती चन्द लम्हो तक की ही होती है । जिस तरह से द्वेष पूर्ण राजनैतिक इशारो पर समाजिक स्तर पर इनके मान - सम्मान के साथ खिलवाड़ करने का काम किया गया है इनके विश्वसनीयता को धूमिल करने की दृष्टि से बदनाम करने का प्रयास किया गया है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि जन प्रतिनिधि हो तो वैभव चतुर्वेदी जैसा हो । क्यो कि इतिहास गवाह है आग मे असल सोना ही तपाया जाता है और कसौटी पर अक्सर सच को  । बताते चले की इनकी बढ़ती राजनीतिक पार्टी मे लोकप्रियता एवं विश्वसनीयता तथा समाज मे बढ़ता जनाधार और नेतृत्व की दृष्टि से समाजिक स्तर पर कल्याणकारी कार्य आगामी विधानसभा चुनाव मे वरदान सिद्ध न हो जाय इसके लिए तरह - तरह के षड्यंत्रो का सहारा विपक्ष कम सत्ताधारी राजनैतिक के द्वारा ज्यादा किया जा रहा है । इनके इस राजनीतिक हथकंडे मे वह तथाकथित पत्रकार भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहा है जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ मोहरा बनाकर निज स्वार्थ को साधना रहा है । बताया जाता है कि तथाकथित पत्रकार अपनी नमक हलाली को अंजाम देने मे कोई कोर कसर नही छोड़ रहा है । पूर्व के दिनो मे पुलिस द्वारा बरामद की गयी जिस शराब के खेप से इनका कोई सम्बन्ध ही नही था उससे जोड़कर इनकी जन कल्याणकारी लोकप्रियता को धूमिल करने का प्रयास जमकर किया गया । जबकि इसकी पत्रकारिता को देखा जाय तो वो हर तार इससे जुड़ा है जिसे पत्रकारिता जगत दूर से ही तिलांजलि देता है । अलबत्ता पत्रकारिता जगत से इसकी आत्मा कभी जुड़ी ही नही है । चाटुकारिता के बूते जी तोड़ शराब माफिया सिद्ध करने मे तथाकथित पत्रकार की जब एक नही चली तो इनके शिक्षण संस्थान को बदनाम करने की कोशिश करने लगा । जब इससे भी कुछ नही हुआ तो जान माल का खतरा एवं झूठे संगीन धाराओ मे फंसाने का राग अलापने लगा । और तो और उस पुलिस के ऊपर भी मिलीभगत का सवाल उठाने लगा जो पुलिस अपने दायित्व निर्वहन मे कोई कमी ही नही कर रही थी पूरी मुस्तैदी के साथ पुलिस अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए जहां छै लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी वही इस अवैध कारोबार मे लगे हरियाणा के शराब माफिया तक पहुंचने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहते हुए गिरफ्तार कर जेल भेज दिया । ऐसे मे यह सवाल उठता है कि नेक दिल इन्सान को ही क्यो कसौटी पर कसा जाता है ? ऐसे लोगो को षड्यंत्र का शिकार बनाने का प्रयास क्यो कर होता है ? उठ रहे इस सवाल का जबाब आम जनमानस को देना होगा । क्यो कि यही आम जनमानस मौका हाथ से निकल जाने पर पछतावे के गलियारे मे खड़ी अपने आप को कोसती नजर आती है । यहां सवाल देश के उस चौथे स्तम्भ निष्पक्ष पत्रकारिता पर भी उठता है जो निष्पक्ष पत्रकारिता को पत्रकार की आत्मा कहती है । क्या पत्रकारिता किसी सत्ताधारी रसूखदार के चौखट की दासी है जो आदेश के इन्तजार मे बेवा बनी बैठी रहती है ? इसका जबाब उस पत्रकारिता जगत को देना होगा जो देश  के कानून की समाज के संस्कृति की सरकारो के शासन पर निगाहबान है ।