*" शिक्षक तुम उठो तो -नागरिक बने "-निवेदिता सक्सेना*
"गुरु "हर कठिन कार्य को सम्भव कर देने मे सहायक है शास्त्रो मे गुरु को अतुल्य शब्दो मे महिमा मंडित कीया जाता रहा हैं,आज जब बड़े महानगरो की उच्च शिक्षा श्रेणी के छात्र भटकाव की स्थिति मे आ गये वही उनके शिक्षको का जगना अत्यंत जरुरी हैं अपने शिष्यो को समझाए नागरिक संशोधन अधिनियम व उसका मह्त्व।
हाल ही मे फिल्म देखी "सुपर 30" देखी तो जहन मे ख्याल आया देश की वर्तमान दयनीय स्थिति का कितना अशोभनीय होता हैं जब देश के उन महाविद्यालयो शिष्य सडको पर आ जाए और महाविद्यालय व वहा के प्रोफसर खामोशी गंदी राजनीती की सीढ़ी चढ़ते शिष्यो को देख रहे ।
विडम्बना हमारे देश की उस जनता के वर्तमान हालातो की जो देश की शान्ती व प्रगति के लीये बनाये गये ,संशोधित अधिनियमो को समझ नही पा रही वही कुछ देश विरोधी ताकते बाहरी लोगो की घुसपेठ न हो पाने के कारण अपनी शैतानि ताकतो को अंजाम न दे पाने के कारण तिलमिला रही हैं ।वही उनका पुर जोर साथ दे रहे जो खुद को भारतीय होने का दावा कर रहे और आतंक को शीर्ष पर पहुचा कर देश को अशांत वातावरण मे बदल रहे है ।वही जहा हम धीमी गती से भारत को शीर्ष पर पहुचाने की कोशिश कर रहे वही तीव्र गती से देश द्रोही ताकते भारत को पीछे धकेलने का पुरजोर प्रयास कर रही है ।
फिर जहन मे आए वही महाविद्यालयीन उच्च शिक्षित शिक्षक जो उच्च पद श्रेणी मे प्रोफेसर कहलाए जाते हैं ,ये वही प्रोफेसर हे जो कुछ समय पहले देश के संस्कार ,संस्कृति व देश मे अशांति के लीये कन्हैया जेसे विद्यार्थी तैयार करते आए है । अब गायब हैं, कहा ?स्वाभविक सी बात है की नागरिक संशोधन अधिनियम उनके गले उतरना भी मुश्किल है क्युकी उसका सीधा समबन्ध उन सभी से है जिन्हे अपनी सच्चाई देनी होगी हालाकि है कुछ नही बस इतना की पुन:अपनी देश मे रहने की वैधता करवाना हैं तो डर क्यू क्या हम बाहर से घुसपैठ कर भारत के महानगरो मे अध्ययन अध्यापन कर रहे या मुल निवासी की तरह जीवन व्यापन कर रहे। आज फिर देश उन्नति व शन्ति मे बाधक बन रहे । शायद भुल गये जिस ईश्वर को मानते है वह हमे क्या नही देख रहा ,क्या हम फिर इन्तजार कर रहे जब नकली ड्रामा छात्र बनाकर देश मे हंगामा करवा रहे क्या इन महाविद्यालयो के प्रोफसर व प्रबंधन सो रहा जो इन विद्यार्थियो को रेसटिगेट तक नही करवा पाया ।
आज चाणक्य का वह विचार याद आया जिसमे शिक्षक के लीये कहा की "एक शिक्षक अगर चाहे को राष्ट्र को शीर्ष पर बैठा सकता हैं क्युकी नव निर्माण की सीढ़ी उसी के पास से होकर गुजरती हैं "वही अगर शिक्षक राजनीती मे आ जाए तो पाजीटिविटी व नेगेटीवीटी दोनो ला सकता हैं । बात तो यू भी विचारणीय् तब लगी जब सुपर 30 के कुछ अंश देखे। याद आयी अभिव्यक्ति की आज़ादी का आन्दोलन भुल गये वही तो नागरिकता संशोधन अधिनियम अभिन्न अंग हैं अब जब आपको वह अधिनियम व बिल की धारणाओ से अवगत करवाया ।
ध्यान रहे की जब हम विदेशो मे जाते हैं तो वहा के कानून का पालन करते हुये वहा रहते है जबकी भारत मे कानून को एक तरफ रख घुसपैठिये आतंक फेला कर देश की जनता व सम्पत्ति का हनन कर रहे है व साथ ही यहा शरण लेकर यही से शिक्षा ग्रहण कर यही के स्थापित्य जनता को खत्म करने पर उतारू हैं । वही इन्हे शिक्षा देने वाले शिक्षक जो चाहे धर्मावल्म्बी हो या अन्य एक गलत फसल तैयार कर शुध्ध पौधो को भी खरपतवार मे बदल रहे हैं ।
हाल ही मे एक अखबार मे पढा की" ब्रिटेन मे आई टी सिस्टम मे गढबढि से सैकडों भारतीय कर्मियो का कैरियर बर्बाद" ,तब ध्यान आया के कर्मचारी जो वहा जॉब कर रहे कोई आँदोलन भी नही करने की हिम्मत कर पायेंगे व चुप चाप अपने घरो को लौट जायेंगे लेकिन वही स्थिति जब भारत मे आती हैं तो आँदोलन का आक्रमक रुख आ जाता हैं अगर भारतीय संविधान मे संशोधन भी हो तो भी गलत ताकतो को परेशानी होगी ही क्युकी उनकी जढ का अंत पता जो लग जाएगा ।
बहरहाल ,अधजल गगरि छलकत जाए ,यही स्थिति इन प्रोटीसट करने वालो की है जिन्हे खुद को बचाने का मोका भी मील रहा इन "सीएए "द्वारा लेकिन इन्हे अब तक पढ़ाने वाले शिक्षक नदारद हैं ।
प्राचीन समय मे बनी "नालंदा यूनिवर्सिटी " मे पाये गये सभी ग्रंथ आदि किन्ही बाहरी लोगो के आतंक से जलकर खाक हो गयी और वही बाहरी लोग देश मे स्थायीत्व कर देश की जढ को रोग ग्रस्त कर देश को खोखला कर रहे है ।वेसे ये नागरिकता संशोधन अधिनियम तभी लागू हो जाना चाहिये था ,लेकिन विडम्बना देश की इस प्रकार बाहारि लोगो की आवाजाही लगाती रही लेकिन ,अब तक किसी भी सरकार ने ये मुद्दा नही उठाया अब जब हर व्यक्ति को उनका सुरक्षित नागरिकता का आधार प्राप्त हो रहा तो उसे पढ्ना व समझना आवश्यक है ।
" जिम्मेदारी हमारी "
अभिव्यक्ति की आज़ादी की अलख जगाने वाले वाले सभी गुरु व जानकारो की जरुरत है की पहले संविधान पढे व सभी विद्यार्थियो को समझाए की नागरिकता संशोधन अधिनियम की सकारत्म्क्ता क्या है ।