खींचो न कमानों को ,
न तलवार निकालो।
जब तोप मुक़ाबिल हो ,
तो अख़बार निकालो ।।
18वीं सदी के शायर और पेशे से जज अकबर इलाहाबादी सैयद अकबर हुसैन रिज़्वी ने यह शेर लिखते वक्त कल्पना भी नहीं की होगी कि पत्रकारिता पर लिखे गए उनके संजीदा और इंकलागी शेर की लाज 20 वीं सदी के अंत तक इस तरह लुट जाएगी।
मध्यप्रदेश की पत्रकारिता इतिहास में 9 दिसबंर 2019 का दिन भारी मन से इसलिए याद रखा जाएगा कि इस दिन पत्रकारिता और पत्रकारों के लिए अब से 58 साल पहले राजधानी भोपाल के मालवीय नगर स्थित जमीन पर बनाया गया पत्रकार भवन सरकारी बुलडोजर के नीचें आकर जमींदोज हो जायेगा।
कुछ दशक में पत्रकारों ने अपनी हालत इतनी दायनीय कर ली कि सरकारी बुलडोजर ने घंटे भर में मप्र की पत्रकारिता और पत्रकारों की इज्जत बता दी।
मप्र सरकार ने साल 1961 में बनाए गए पत्रकार भवन को 9 दिसबंर 2019 को जमींदोज कर दिया। सरकार का कहना है कि 58 साल पुराने भवन पर अब सर्वसुविधायुक्त सरकारी मीडिया सेंटर बनाया जाएगा। यहां तक बात कुछ ठीक लगती हैं ।
लेकिन सरकारी मीडिया सेंटर में बैठकर क्या कोई भी पत्रकार सरकार की योजनाओं,नीतियों,लापरवाही या घोटालों पर निष्पक्ष कलम चला पायेगा ? सरकार तो छोडें..उसके कमाऊ पूत अधिकारियों के कारनामों को उजागार करने का दम दिखा पायेगा ?
अगर किसी भी पत्रकार ने ऐसा किया तो उसे सरकारी मीडिया सेंटर से बाहर का रास्ता दिया दिया जाएगा ! और उसके साथ भी वहीं होगा जो अभी पत्रकार भवन के साथ हुआ है। यह भी गौर करने वाली बात है कि सरकारी मीडिया सेंटर की बागडोर सरकार के जनसम्पर्क विभाग के हाथों में होगी! जनसम्पर्क विभाग अपको निष्पक्ष पत्रकारिता करने देगा ?
दरअसल पत्रकार भवन को जमींदोज किए जाने के पीछे कहानी यह थी की इस समूचे भवन पर पत्रकारिता के नाम पर माफियागीरी करने वाले व्यक्ति विशेष का ही कब्जा था , जिसे मुक्त कराए जाने की भी सख्त आवश्यकता थी इस समूचे भवन पर अवैधानिक रूप से काबिज व्यक्ति ने इस भवन को अपनी निजी जागीर मान लिया था जिसका प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन था। न्यायालय ने इस भवन को मुक्त कराते हुए उक्त व्यक्ति की बेदखली के आदेश भी दिए थे ।
पत्रकार भवन कैसे बना...
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म प्र की राजधानी भोपाल में 1961 के समय वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन भोपाल और नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट संगठन पत्रकारों के हित के लिए काम करते थे। उस समय नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट संगठन में अधिक पत्रकार होने की वजह से उसकी सक्रियता अधिक दिखाई देती थी। यही वजह थी कि मप्र सराकर के उस समय के मुख्यमंत्री पं श्यामाचरण शुक्ल ने कलेक्टर सीहोर के हस्ताक्षर से मालवीय नगर स्थित प्लाट नम्बर एक की 27007 वर्ग फिट जमीन आवंटित की थी। इस जमीन पर पत्रकार भवन का निर्माण कर उसमें पत्रकारों के सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक उत्थान की गतिविधियां संचालित की जानी थी। जमीन आवंटन की शर्तो में यह शर्ते भी शामिल थी। तब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पं श्यामाचरण शुक्ल थे। सर्व श्री धन्नालाल शाह, नितिन मेहता, त्रिभुवन यादव, प्रेम बाबू श्रीवास्तव, इश्तियाक आरिफ,डीवी लेले, सूर्य नारायण शर्मा, वीटी जोशी के अथक परिश्रम से पत्रकार भवन का भव्य निर्माण हो गया। यह सब अब इस दुनिया में नहीं रहें।
भोपाल के इस पत्रकार भवन की चर्चा दिल्ली तक थी। उस समय भारत सरकार का पत्र सूचना विभाग बरसों तक पत्रकार भवन समिति का किरायेदार भी रहा। इस भवन में कई नामी पत्रकार लंबे समय तक रहे। समय बीता और फिर 90 के दशक के लगभग सब कुछ बदल गया। पत्रकारों के कई संगठन बन गए। आपसी झगडा,अपने हित को साधने में पत्रकार भवन,पत्रकारिता और पत्रकारों की साख गिरती चली गई। पत्रकारों व भोपाल के गौरव इस पत्रकार भवन पर पत्रकारिता के नाम पर पत्रकारों समेत सरकार का शोषण करने वाले माफिया सरगना सरीखे व्यक्ति विशेष का एकाधिकार व कब्जा हो गया तब से इस भवन पर एकाधिकार कब्जे को लेकर प्रकरण न्यायालय में चलायमान रहा , जिसका अंजाम सामने है।