सी शर्मा*
सुभाष चंद्र बोस को विदेश में हर प्रकार का सहयोग देने वाली एमिली शैंकल का जन्म आस्ट्रिया की राजधानी विएना में 26 दिसम्बर, 1910 को हुआ था। उसके पिता डा. ऑस्कर शैंकल एक पशु चिकित्सक थे। एमिली जर्मन भाषा के साथ ही टाइपिंग व स्टेनोग्राफी की अच्छी जानकार थी।
1933 में नेता जी को अंग्रेजों ने इलाज के बहाने निर्वासित कर यूरोप भेज दिया। कांग्रेस का तत्कालीन नेतृत्व भी यही चाहता था। सुभाष बाबू ने दो माह तक स्वास्थ्य लाभ किया तथा फिर एक वर्ष तक यूरोपीय देशों का भ्रमण कर वहां हुई क्रांतियों का अध्ययन किया। लौटकर वे ‘दि इंडियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखने लगे। इंग्लैंड के एक प्रकाशक ने उन्हें इस शर्त पर कुछ धन अग्रिम दिया कि वे एक साल में पुस्तक लिख देंगे। सुभाष बाबू ने अनुबन्ध समय से पूरा करने के लिए एमिली को सहयोगी नियुक्त कर लिया।
एमिली पढ़ने-लिखने के साथ ही नेता जी के लिए भोजन आदि भी बना देती थी। सुभाष बाबू उसके स्वभाव और कार्यकुशलता से तथा एमिली उनके देशप्रेम से बहुत प्रभावित हुई। इस प्रकार दोनों के बीच आकर्षण बढ़ने लगा; पर सुभाष बाबू का लक्ष्य तो देश को मुक्त कराना था। अतः यह संबंध मित्रता तक ही सीमित रहा। दोनों के परिश्रम से वह पुस्तक समय से पूरी होकर बहुचर्चित हुई। यद्यपि अंग्रेजों ने भारत में उसे प्रतिबंधित कर दिया।
1936 में जब सुभाष बाबू भारत आये, तो शासन ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया। जब देश में इसका विरोध हुआ, तो उन्हें कुर्सियंाग स्थित उनके बड़े भाई के घर में नजरबंद कर दिया गया। इस दौरान सुभाष बाबू और एमिली में हुआ पत्र-व्यवहार उनके निश्छल प्रेम का परिचायक है।
नजरबंदी से मुक्त होकर सुभाष बाबू स्वास्थ्य लाभ के लिए पहले डलहौजी और फिर आस्ट्रिया चले गये। एमिली के सहयोग से वहां सुभाष बाबू ने अपनी जीवनी ‘ऐन इंडियन पिल्ग्रिम’ लिखी। वहीं दोनों का गंधर्व विवाह हुआ और जनवरी 1938 में सुभाष बाबू भारत आ गये। एमिली भी वापस विएना चली गयी।
1941 में जब सुभाष बाबू अचानक गायब होकर बर्लिन पहुंचे, तो दो वर्ष तक एमिली अपनी डाकघर की नौकरी छोड़कर उनके साथ रही। उस दौरान वह अपना परिचय कुमारी एमिली के रूप में देती थीं, चूंकि वैवाहिक संबंध प्रकट करना दोनों के लिए खतरनाक था। बीच में कुछ समय के लिए वह फिर विएना गयी। वहां 29 नवम्बर, 1942 को उसने एक पुत्री अनीता को जन्म दिया और उसे अपनी मां के पास छोड़कर वापस बर्लिन आ गयी।
जापान के लिए प्रस्थान करते समय नेताजी ने अपने बड़े भाई शरद बाबू को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखकर एमिली को दिया। इसमें उन्होंने इस विवाह संबंध की पूरी बात लिखी थी, जिससे एमिली और अनीता को उनके परिवार तथा समाज में उचित स्थान प्राप्त हो सके। इसके बाद हुए घटनाक्रम के कारण एमिली और सुभाष बाबू की कभी भेंट नहीं हो सकी। 1948 में एमिली ने वह पत्र शरद बाबू को भेजा। उसे पाकर वे विएना गये और मां-पुत्री को भारत आने को कहा; पर एमिली अपनी वृद्ध मां को छोड़कर नहीं आयीं।
अपनी डाकघर की नौकरी से जीवनयापन करते हुए मार्च 1996 में नेता जी की सहयोगी एवं सहधर्मिणी एमिली शैंकल बोस का निधन हुआ।