*19दिसम्बर*
*अशफाक उल्ला खां के बलिदान दिवस पर विशेष-के सी शर्मा*
अपने जीवन के मात्र 27वें वर्ष में 19 दिसंबर, 1927 को भारत का वह वीर पुत्र हँसते-हँसते फाँसी पर झूल गया था।
फाँसी से पूर्व अशफाक से जब उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने यह ऐतिहासिक पंक्तियां कही थी
है कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह है
रख दे कोई जरा-सी खाक-ए-वतन कफन मे
19 दिसंबर, 1927 को ही फाँसी से पूर्व अशफाक ने यह भी कहा–
'यह तो मेरी खुशकिस्मती है कि मुझे वतन का आलातरीन इनाम मिला है। मुझे फक्र है की मैं पहला मुसलमान होऊँगा, जो भारत की आजादी के लिए फाँसी पा रहा हूँ।'
आज उस अमर बलिदानी की पुण्यतिथि पर उन्हें कोटि कोटि वंदन