जाने क्या है प्रार्थना और विश्वास में अंतर



पूनम चतुर्वेदी- प्रार्थना और विश्वास दोनों अदृश्य हैं,परंतु दोनों में इतनी ताकत है कि नामुमकिन को मुमकिन बना देते है,जन्म से ना तो कोई दोस्त पैदा होता है और ना ही कोई दुश्मन, वह तो हमारे घमंड, ताकत या व्यवहार से बनते है,ज़िंदगी को अगर खुलकर जीना है तो थोडा सा झुक कर जिये,तब देखें फिर,ये ईश्वर आपको कितना ऊँचा उठा देगा दिल से लिखी बातें दिल को छू जाती हैं,कुछ लोग मिलकर बदल जाते हैं,और कुछ लोगों से मिलकर जिन्दगी बदल जाती है।

प्रेम और आसक्ति में बहुत बड़ाअंतर है,पर अक्सर हम दोनों को एक ही मान बैठते हैं,प्रेम मुक्त करता है,जबकि आसक्ति लगाव बांधता है,प्रेम में हम उसका सुख देखते हैं,जिसे हम प्रेम करते हैं,आसक्ति में हम अपना सुख देखते हैं,और वह न मिलने पर दुःखी,दमितऔरआक्रोशित हो जाते हैं,प्रेम में अधिकार पाने की भावना नहीं होती,जबकि आसक्ति में यह भावना प्रबल रूप में होती है,इसीलिए प्रेम में अपेक्षा भी नहीं होती जबकि आसक्ति में अपेक्षा होना एक अनिवार्य तत्व होता है,और इसीलिए प्रेम सदैव आनन्ददायक होता है,जबकि आसक्ति का अन्त प्रायः दुःख के साथ होता है,हमारी यह भावना चाहे व्यक्ति के साथ हो या वस्तु के साथ।

कबिरा यह घर प्रेम का,*
खाला का घर नाहिं,*
सीस उतारे भुइँ धरे,*
तब पैठे घर मांहि।*

ईश्वर हमारे ह्रदय को प्रेम से परिपूर्ण करे।