बदायूं, रिसौली-- मेरे राम सेवा समिति रिसौली के तत्वाधान में चल रही श्रीराम कथा के चौथे दिवस में कथावाचक श्री रवि जी महाराज के मुखारविंद से नारद मुनि की कथा का श्रवण कराया गया नारद मुनि योगी और तपस्वी थे सदैव श्रीहरि की भक्ति में लीन रहते थे एक बार नारद जी ने एक सुंदर पर्वतीय क्षेत्र समीप में गंगा थी वही तपस्या में लीन हो गए और इस तरह से लीन हुए श्री हरि की भक्ति में की देवलोक के देवराज इंद्र भयभीत होकर सोचने लगे कि यदि नारद जी ने तपस्या के बल पर कहीं हमारा इंद्रलोक ना छीन ले देवराज इंद्र ने तत्काल कामदेव को बुलाया और श्री नारद मुनि जी की तपस्या भंग करने का आदेश दिया कामदेव ने नारद जी की तपस्या भंग करने के अनेकों अनेक उपाय किए अप्सराएं नृत्य अनेकों प्रकार की सुगंधित पुष्प आदि उपाय करने के पश्चात कामदेव भयभीत हो गए क्योंकि नारद जी को डिगा नहीं सके तभी कामदेव देव ऋषि नारद जी के चरणों में गिर पड़े यह देख कर नारद जी तपस्या से जागृत हुए तभी कामदेव नारद से क्षमा याचना करने लगा नारद ने मुस्कुराकर क्षमा कर दिया और वहां से चल दिए ब्रह्मा शिवजी के पास जाकर अपना वृत्तांत सुनाया सभी के मना करने के पश्चात छीर सागर पहुंच गए और श्री हरि भगवान विष्णु को कामदेव के द्वारा तपस्या भंग करने का वृत्तांत सुना डाला श्रीहरि समझ गए कि नारद मुनि अहंकार के वशीभूत हो गए हैं जब नारद जी श्री हरि के दरबार से चले और अभिमान बढ़ गया जगत के पालनहार श्रीहरि ने निश्चय किया कि नारद को सही रास्ते पर लाएं नारद जी जिस रास्ते से जा रहे थे उसी रास्ते पर एक बहुत सुंदर सा नगर दिखाई पड़ा नारद जी चक्कर में पड़ गए सोचने लगे पहले कभी हमने आते जाते इस नगर को नहीं देखा है फिर देव ऋषि ने नगर में प्रवेश किया और द्वारपाल से यह नगर बहुत सुंदर है यहां के राजा का क्या नाम है द्वारपाल ने कहा मुनि जी इस नगर के राजा सील निधि है और नगर तो वैसे भी सदैव सुंदर ही रहता है परंतु इस समय राजा की एक कन्या है जो बहुत ही ज्यादा सुंदर रूपवती उसका नाम विश्व मोहिनी है जिसका आज स्वयंबर है नारद जी राजा के पास पहुंचे राजा ने नारद जी को सम्मान सहित आसन दिया और नारद जी से कहने लगे कि हमारी कन्या का हाथ देखकर उसका भविष्य बताने की कृपा करें विश्व मोहिनी का सौंदर्य देखकर नारद जी योग तपस्या भूलकर सांसारिक जीवन के विषय में सोचने लगे उस सौंदर्य को देखकर नारद जी के मन में भयंकर तूफान उत्पन्न होने लगे हाथ देखने के बजाय अपने बारे में सोचने लगे किस कन्या से मेरा विवाह हो जाए राजा के पूछने पर नारद जी ने उसके जीवन से संबंधित कुछ बातें बताएं पर उसकी हस्तरेखा में जो लिखा था जो उससे विवाह करेगा वह अमर होगा तभी नारद जी सोचने लगे कि मेरा रूप सौंदर्य से बहुत ही दूर है क्यों ना मैं श्री हरि का रूप ले लूं श्रीहरि का गुणगान करने लगे भगवान विष्णु ने आ कर नारद जी को देखा नारद जी अहंकार और कामवासना के वशीभूत हो गए श्री हरि बोले कहिए देव ऋषि नारद क्या चाहिए नारद जी ने कहा है प्रभु हमारी इच्छा है कि मैं विवाह करूं पर मैं आपका सेवक हूं श्री हरि ने कहा आपकी जो इच्छा हो सो मांग लीजिए नारद जी ने कहा हे प्रभु मुझे श्री हरि का रूप दे दीजिए और जिसमें मेरा कल्याण हो ऐसा वरदान दीजिए विष्णु जी ने वरदान दे दिया श्रीहरि का दूसरा रूप वानर का रूप नारद को दिया गया नारद स्वयंवर में पहुंच गए परंतु विश्व मोहिनी ने नारद की तरफ देखा भी नहीं और स्वयं श्री हरि एक राजा का रूप धारण कर विश्व मोहिनी को स्वयंवर में विवाह कर ले गये तभी वहां उपस्थित शिव के गणों ने उनका उपहास किया नारद जी को क्रोध आया और नारद जी ने उन्हें श्राप दे डाला कि जाओ तुम राक्षस प्रवृत्ति के हो जाओ नाराजी वहां से चल दिए क्रोध और अहंकार मन में फिर भी रहा रास्ते में भगवान विष्णु माता लक्ष्मी और विश्व मोहिनी को देखकर नारद जी क्रोधित हुए नारद जी ने कहा कि आप धोखेबाज हैं आपने सदैव सभी के साथ धोखा किया है मैं विश्व मोहिनी से स्वयंबर करना चाहता था लेकिन आपने मुझे धोखे से हराकर स्वयं विश्व मोहिनी को पा लिया समुंद्र मंथन के समय भी शिव को जहर असुरों को मदिरा पिला दिया और स्वयं लक्ष्मी को पा लिया तुमने मनुष्य रूप धारण करके विश्व मोहिनी को प्राप्त किया है इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा और जिस तरह तुमने हमें स्त्री वियोग दिया है तुम्हें भी स्त्री वियोग सहन करना पड़ेगा दुखी होना पड़ेगा और तुमने हमें बंदर का जो रूप दिया है तुम्हें बंदरों से ही सहायता लेनी पड़ेगी श्री राम कथा का बड़ा ही सुंदर वर्णन श्री रवि जी महाराज ने किया श्री राम कथा में मदनपाल माहेश्वरी आदेश सोलंकी संजीव सिसोदिया विवेक माहेश्वरी दुष्यंत सोलंकी योगेश कुमार आकाशदीप सुधाकर राहुल सिंह विनय कुमार सहित काफी संख्या में महिला और पुरुषों ने कथा में भाग लिया
अहंकार ही है हमारे जीवन का सबसे बड़ा शत्रु
बदायूं, रिसौली-- मेरे राम सेवा समिति रिसौली के तत्वाधान में चल रही श्रीराम कथा के चौथे दिवस में कथावाचक श्री रवि जी महाराज के मुखारविंद से नारद मुनि की कथा का श्रवण कराया गया नारद मुनि योगी और तपस्वी थे सदैव श्रीहरि की भक्ति में लीन रहते थे एक बार नारद जी ने एक सुंदर पर्वतीय क्षेत्र समीप में गंगा थी वही तपस्या में लीन हो गए और इस तरह से लीन हुए श्री हरि की भक्ति में की देवलोक के देवराज इंद्र भयभीत होकर सोचने लगे कि यदि नारद जी ने तपस्या के बल पर कहीं हमारा इंद्रलोक ना छीन ले देवराज इंद्र ने तत्काल कामदेव को बुलाया और श्री नारद मुनि जी की तपस्या भंग करने का आदेश दिया कामदेव ने नारद जी की तपस्या भंग करने के अनेकों अनेक उपाय किए अप्सराएं नृत्य अनेकों प्रकार की सुगंधित पुष्प आदि उपाय करने के पश्चात कामदेव भयभीत हो गए क्योंकि नारद जी को डिगा नहीं सके तभी कामदेव देव ऋषि नारद जी के चरणों में गिर पड़े यह देख कर नारद जी तपस्या से जागृत हुए तभी कामदेव नारद से क्षमा याचना करने लगा नारद ने मुस्कुराकर क्षमा कर दिया और वहां से चल दिए ब्रह्मा शिवजी के पास जाकर अपना वृत्तांत सुनाया सभी के मना करने के पश्चात छीर सागर पहुंच गए और श्री हरि भगवान विष्णु को कामदेव के द्वारा तपस्या भंग करने का वृत्तांत सुना डाला श्रीहरि समझ गए कि नारद मुनि अहंकार के वशीभूत हो गए हैं जब नारद जी श्री हरि के दरबार से चले और अभिमान बढ़ गया जगत के पालनहार श्रीहरि ने निश्चय किया कि नारद को सही रास्ते पर लाएं नारद जी जिस रास्ते से जा रहे थे उसी रास्ते पर एक बहुत सुंदर सा नगर दिखाई पड़ा नारद जी चक्कर में पड़ गए सोचने लगे पहले कभी हमने आते जाते इस नगर को नहीं देखा है फिर देव ऋषि ने नगर में प्रवेश किया और द्वारपाल से यह नगर बहुत सुंदर है यहां के राजा का क्या नाम है द्वारपाल ने कहा मुनि जी इस नगर के राजा सील निधि है और नगर तो वैसे भी सदैव सुंदर ही रहता है परंतु इस समय राजा की एक कन्या है जो बहुत ही ज्यादा सुंदर रूपवती उसका नाम विश्व मोहिनी है जिसका आज स्वयंबर है नारद जी राजा के पास पहुंचे राजा ने नारद जी को सम्मान सहित आसन दिया और नारद जी से कहने लगे कि हमारी कन्या का हाथ देखकर उसका भविष्य बताने की कृपा करें विश्व मोहिनी का सौंदर्य देखकर नारद जी योग तपस्या भूलकर सांसारिक जीवन के विषय में सोचने लगे उस सौंदर्य को देखकर नारद जी के मन में भयंकर तूफान उत्पन्न होने लगे हाथ देखने के बजाय अपने बारे में सोचने लगे किस कन्या से मेरा विवाह हो जाए राजा के पूछने पर नारद जी ने उसके जीवन से संबंधित कुछ बातें बताएं पर उसकी हस्तरेखा में जो लिखा था जो उससे विवाह करेगा वह अमर होगा तभी नारद जी सोचने लगे कि मेरा रूप सौंदर्य से बहुत ही दूर है क्यों ना मैं श्री हरि का रूप ले लूं श्रीहरि का गुणगान करने लगे भगवान विष्णु ने आ कर नारद जी को देखा नारद जी अहंकार और कामवासना के वशीभूत हो गए श्री हरि बोले कहिए देव ऋषि नारद क्या चाहिए नारद जी ने कहा है प्रभु हमारी इच्छा है कि मैं विवाह करूं पर मैं आपका सेवक हूं श्री हरि ने कहा आपकी जो इच्छा हो सो मांग लीजिए नारद जी ने कहा हे प्रभु मुझे श्री हरि का रूप दे दीजिए और जिसमें मेरा कल्याण हो ऐसा वरदान दीजिए विष्णु जी ने वरदान दे दिया श्रीहरि का दूसरा रूप वानर का रूप नारद को दिया गया नारद स्वयंवर में पहुंच गए परंतु विश्व मोहिनी ने नारद की तरफ देखा भी नहीं और स्वयं श्री हरि एक राजा का रूप धारण कर विश्व मोहिनी को स्वयंवर में विवाह कर ले गये तभी वहां उपस्थित शिव के गणों ने उनका उपहास किया नारद जी को क्रोध आया और नारद जी ने उन्हें श्राप दे डाला कि जाओ तुम राक्षस प्रवृत्ति के हो जाओ नाराजी वहां से चल दिए क्रोध और अहंकार मन में फिर भी रहा रास्ते में भगवान विष्णु माता लक्ष्मी और विश्व मोहिनी को देखकर नारद जी क्रोधित हुए नारद जी ने कहा कि आप धोखेबाज हैं आपने सदैव सभी के साथ धोखा किया है मैं विश्व मोहिनी से स्वयंबर करना चाहता था लेकिन आपने मुझे धोखे से हराकर स्वयं विश्व मोहिनी को पा लिया समुंद्र मंथन के समय भी शिव को जहर असुरों को मदिरा पिला दिया और स्वयं लक्ष्मी को पा लिया तुमने मनुष्य रूप धारण करके विश्व मोहिनी को प्राप्त किया है इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा और जिस तरह तुमने हमें स्त्री वियोग दिया है तुम्हें भी स्त्री वियोग सहन करना पड़ेगा दुखी होना पड़ेगा और तुमने हमें बंदर का जो रूप दिया है तुम्हें बंदरों से ही सहायता लेनी पड़ेगी श्री राम कथा का बड़ा ही सुंदर वर्णन श्री रवि जी महाराज ने किया श्री राम कथा में मदनपाल माहेश्वरी आदेश सोलंकी संजीव सिसोदिया विवेक माहेश्वरी दुष्यंत सोलंकी योगेश कुमार आकाशदीप सुधाकर राहुल सिंह विनय कुमार सहित काफी संख्या में महिला और पुरुषों ने कथा में भाग लिया