महाराष्ट्र की सत्ता येन केन प्रकारेण हथिया कर उद्धव ठाकरे, शरद पवार, और सोनिया गांधी ने खुद को कितना सुरक्षित कर लिया कहना थोड़ा कठिन है, पर एक बात साफ है कि कांग्रेस की धर्म निरपेक्षता, शिव सेना का हिंदुत्व,और शरद पवार की राजनैतिक महत्वाकांक्षा को देश की जनता नए नजरिए से देखेगी,कथित अल्पसंख्यक और धर्मनिरपेक्ष मतों पर यह दुरभि सन्धि असर अवश्य डालेगी इसमें कोई दो राय नहीं, साथ ही झारखंड, और पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव पर भी इसका असर अवश्य पड़ेगा,इसमें भी कोई दोराय नही।
तत्कालिक तौर पर भाजपा को सत्ता से बाहर होना अवश्य पड़ा, किंतु भाजपा गठबंधन से अलग होना शिवसेना को भारी अवश्य पड़ेगा,सीटों के बंटवारे में दोनों(भाजपा व शिवसेना)ने लगभग बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा,जहां भाजपा 70%से अधिक मार्जिन से चुनाव जीती वहीं शिव सेना महज 40%से कुछ ही अधिक मार्जिन से जीत हासिल की,कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भाजपा गठबंधन को जनादेश मिला जिसका कांग्रेस व एन सी पी ने शिवसेना को झांसे में लेकर अपहरण कर लिया,यह कर्नाटक की पुनरावृत्ति है, सम्भव हो कुछ ही दिनों या महीनों में यहीं हाल उद्धव ठाकरे का हो,मेरे हिसाब से एक मायने में भजपा को इसका लाभ मिला, अब शिव सेना से अलग होकर भाजपा सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी,और यदि लड़ती तो आज यह थुक्का फजीहत की स्थिति न बनती,जो गठबंधन की वजह से सीटों के बंटवारे में आधी सीटों पर लड़ने की वजह से बनी,एक तरह से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार ली,कल निश्चित है साथ सत्ता हासिल करने वाले दल अलग चुनाव लड़ें,जिसका खामियाजा शिवसेना भुगतना पड़ेगा, अब इस खेल में कांग्रेस व एन सी पी के पास खोने को कुछ भी नही,और पाने को क्या है यह सबके सामने है,, ।