भोपाल जीवन में अगर संस्कार नहीं हैं तो संस्कृति को पतन से कोई नहीं बचा सकता। आज हमारे जीवन में संस्कारों की निरंतर कमी हो रही है। फलस्वरूप अपराध और असामाजिक तत्वों का मानव समाज में जाल सा बिछता जा रहा है। यह बात जोधपुर राजस्थान से पधारे प्रख्यात संतश्री मुरलीधर महाराज ने भेल के जंबूरी मैदान में चल रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन शनिवार को हजारों श्रोताओं को संबोधितकरते हुए कही। उन्होंने रामचरित मानस की चौपाइयों का विस्तार से संगीतमय वर्णन करते हुए कहा कि रावण ने माता सीता का हरण कर उन्हें अशोक वाटिका में रखा, किंतु कभी उन्हें स्पर्श नहीं किया। रावण की इस बुराई के कारण आज भी जगह-जगह उसके पुतले जलाए जाते हैं। इधर आज पैसे की प्रधानता हो रही है और संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं, मानव समाज में घर-घर गली-गली रावण घूम रहे हैं। महाराजश्री ने कहा कि समाज में आज धन की नहीं, संस्कारों की प्रधानता होनी चाहिए। हमें अपनी संतानों को अच्छे संस्कार देने होंगे, ताकि सनातन संस्कृति की रक्षा करना संभव है। शनिवार को कथा में मुख्य रूप से मुंबई से डॉ. चंदा शर्मा, पंकज श्रीवास्तव, बीएस भदौरिया, हरीश वाथवी, रमेश रघुवंशी, हीरालाल गुर्जर सहित दो हजार से अधिक श्रद्धालु मौजूद थे।
शुभ संकल्प लेने होंगे :
रामकथा के दौरान महाराजश्री ने गंगा अवरण की कथा सुनाते हुए कहा कि रामजी से ऋ षि मुनि को पैर छुआने का पाप हुआ था, इसलिए विश्वामित्र ने उन्हें गंगा स्नान कराया। हम सबसे भी जीवन में जाने-अनजाने में पाप हो जाते हैं। इसलिए साल में एक बार गंगा स्नान जरूर करना चाहिए। महाराजश्री ने कहा कि हमें जीवन की उम्र बढ़ानी है तो शुभ संकल्प लेने होंगे। इन संकल्पों को पूरा करने के लिए हमारे जीवन की उम्र भी लंबी हो जाती है। मन भले ही संसार में हो, फिर भी हमें राम नाम का सुमिरन करते रहना चाहिए।
धनुष टूटते ही पंडाल में गूंजे जयकारे :
मानस पुराण पूजन से आरंभ हुई कथा में व्यासपीठ से भगवान राम द्वारा धुनष भंग के प्रसंग का संगीतमय वर्णन किया। महाराजश्री ने कहा कि धनुष अहंकार का प्रतीक है और सीता जी भक्ति का। कोई भी मनुष्य अहंकार को तोड़कर ही भक्ति पा सकता है। ‘भूप सहसदश एकहि बारा, लगे उठावन टरे न टारा।’ उन्होंने कहा कि धनुष को तोड़ने कई राजा एकसाथ मिलकर उठाने की कोशिश करते हैं, लेकिन धनुष हिलता भी नहीं है। अंत में मुनि विश्वामित्र की आज्ञा पाते ही भगवान राम ने सभी मुनिगणों को प्रणाम किया और क्षणमात्र में धनुष तोड़ दिया। यह प्रसंग सुन पंडाल में भगवान राम के जयकारे गूंजने लगे।
सियाजू की मिथिला नगरिया :
इस अवसर पर कथा में रामजी के जनकपुर जाने का प्रसंग सुनाया गया। 'सियाजू की मिथिला नगरिया" भजन की प्रस्तुति पर श्रोता झूम उठे। राजा जनक के मुनि विश्वामित्र के संवाद का बखान करते हुए संतश्री ने कहा कि कथा सुनने के साथ ही जीवन में कथा के चरित्र अपनाने से ही जीवन सफल होगा। इसी तरह ‘दशरथ राजकुमार नजर तोहे लग जेहे’ सुनाए गए भजन पर श्रद्धालुओं ने जमकर नृत्य किया। महाराज ने पुष्प वाटिका में राम-सीता के मिलन का भी बहुत सुंदर चित्रण किया। उन्होंने कहा कि सीताजी को नारद जी द्वारा कही गई बात याद आई, जिससे रामजी का दर्शन कर भावविभोर हो गईं।
जहां नीति होगी वहां प्रीति नहीं :
महाराजश्री ने कहा कि जहां नीति होगी, वहां प्रीति नहीं और जहां प्रेम होगा, वहां नियम नहीं होते हैं। शरीर का आकर्षण वासना है। हम जिसे प्रेम करते हैं, उसी के लिए जीते हैं, तो ही सच्चा प्रेम है। पुरुष ज्ञानी होता है। वह भगवान के दर्शन तो कर सकता है, लेकिन परिचय नहीं। जबकि नारी भक्ति है जो दर्शन और परिचय दोनों ही कर सकती है। बालक सहज भक्त होता है। सहज भक्त जैसा कहता है परमात्मा वैसा ही करते हैं।