प्राय: सभी मनुष्य परमात्मा को ‘हे पिता’, ‘हे दुखहर्ता और सुखकर्ता प्रभु’, (O Heavenly God Father) इत्यादि सम्बन्ध-सूचको शब्दों से याद करते है |
परन्तु यह कितने आश्चर्य की बात है कि जिसे वे ‘पिता’ कहकर पुकारते है उसका सत्य और स्पष्ट परिचय उन्हें नहीं है और उसके साथ उनका अच्छी रीती स्नेह और सम्बन्ध भी नहीं है |
परिचय और स्नेह न होने के कारण परमात्मा को याद करते समय भी उनका मन एक ठिकाने पर नहीं टिकता | इसलिए, उन्हें परमपिता परमात्मा से शान्ति तथा सुख का जो जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त होना चाहिए वह प्राप्त नहीं होता |
वे न तो परमपिता परमात्मा के मधुर मिलन का सच्चा सुख अनुभव कर सकते है, न उससे लाईट (Light प्रकाश) और माईट (Might शक्ति) ही प्राप्त कर सकते है और न ही उनके संस्कारों तथा जीवन में कोई विशेष परिवर्तन ही आ पाता है | इसलिए हम यहाँ उस परम प्यारे परमपिता परमात्मा का संक्षिप्त परिचय दे रहे है जो कि स्वयं उन्होंने ही लोक-कल्याणार्थ हमे समझाया है और अनुभव कराया है और अब भी करा रहे है |
*परमपिता परमात्मा का दिव्य नाम और उनकी महिमा*
परमपिता परमात्मा का नाम ‘शिव’ है | ‘शिव’ का अर्थ ‘कल्याणकारी’ है | परमपिता परमात्मा शिव ही ज्ञान के सागर, शान्ति के सागर, आनन्द ए सागर और प्रेम के सागर है | वह ही पतितों को पावन करने वाले, मनुष्यमात्र को शांतिधाम तथा सुखधाम की राह दिखाने वाले (Guide), विकारों तथा काल के बन्धन से छुड़ाने वाले (Liberator) और सब प्राणियों पर रहम करने वाले (Merciful) है | मनुष्य मात्र को मुक्ति और जीवनमुक्ति का अथवा गति और सद्गति का वरदान देने वाले भी एक-मात्र वही है | वह दिव्य-बुद्धि के डाटा और दिव्य-दृष्टी के वरदाता भी है | मनुष्यात्माओ को ज्ञान रूपी सोम अथवा अमृत पिलाने तथा अमरपद का वरदान देने के कारण ‘सोमनाथ’ तथा ‘अमरनाथ’ इत्यादि नाम भी उन्ही के है | वह जन्म-मरण से सदा मुक्त, सदा एकरस, सदा जगती ज्योति, ‘सदा शिव’ है |
*परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप*
परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप एक ‘ज्योति बिन्दु’ के समान, दीये की लौ जैसा है | वह रूप अतिनिर्मल, स्वर्णमय लाल (Golden Red) और मन-मोहक है | उस दिव्य ज्योतिर्मय रूप को दिव्य-चक्षु द्वारा ही देखा जा सकता है और दिव्य-बुद्धि द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है | परमपिता परमात्मा के उस ‘ज्योति-बिन्दु’ रूप की प्रतिमाएं भारत में ‘शिव-लिंग’ नाम से पूजी जाती है और उनके अवतरण की याद में ‘महा शिवरात्रि’ भी मनाई जाती है |
*'निराकार’ का अर्थ*
लगभग सभी धर्मों के अनुयायी परमात्मा को ‘निराकार’ (Incorpeal) मानते है | परन्तु इस शब्द से वे यह अर्थ लेते है कि परमात्मा का कोई भी आकार (रूप) नहीं है | अब परमपिता परमात्मा शिव कहते है कि ऐसा मानना भूल है | वास्तव में ‘निराकार’ का अर्थ है कि परमपिता ‘साकार’ नहीं है, अर्थात न तो उनका मनुष्यों जैसा स्थूल-शारीरिक आकार है और न देवताओं-जैसा सूक्ष्म शारीरिक आकार है बल्कि उनका रूप अशरीरी है और ज्योति-बिन्दु के समान है | ‘बिन्दु’ को तो ‘निराकार’ ही कहेंगे | अत: यह एक आश्चर्य जनक बात है कि परमपिता परमात्मा है तो सूक्ष्मतिसूक्ष्म, एक ज्योति-कण है परन्तु आज लोग प्राय: कहते है कि वह कण-कण में है |