-के सी शर्मा*
भारतीय सन्तों की लीलाएँ अजब-गजब रहती हैं। कोई निर्वस्त्र रहता है, तो कोई केवल टाट पहन कर। कोई सालों मौन रहता है, तो कोई एक टाँग पर खड़े रहकर ही 10-20 साल बिता देता है। इस लीला को समझना आसान नहीं है। हिन्दू विरोधी या उथले मस्तिष्क के लोग इसे भले ही ढोंग कहें; पर आम हिन्दू इन्हें श्रद्धा से ही देखता है।
ऐसे ही एक सन्त थे देवरहा बाबा, जो नदी के किनारे या बीच में मचान पर रहते थे तथा वहीं से भक्तों को दर्शन देते थे। नदी का तटवर्ती क्षेत्र देवरहा कहलाता है, इसलिए इनका नाम ही देवरहा बाबा पड़ गया। बाबा का जन्म कब और कहाँ हुआ, उनके माता-पिता और उनका असली नाम क्या था, उनकी शिक्षा कहाँ हुई, उनके गुरु कौन थे, यह किसी को नहीं मालूम। वे प्रायः वृन्दावन, प्रयाग, काशी और देवरिया में रहते थे और बीच-बीच में देहरादून और हरिद्वार की यात्रा किया करते थे। प्रयाग में वे माघ मेले के समय गंगा जी के प्रवाह के बीच मचान बनाकर रहते थे।
बाबा के दर्शन के लिए दूर-दूर से प्रतिदिन हजारों लोग आते थे। वे अपनी मस्ती में रहकर सबको अपने हाथ या पैर से स्पर्श कर आशीर्वाद देते थे। बाबा प्रचार एवं प्रसिद्धि से दूर रहते थे। एक बार एक प्रख्यात लेखक ने उनकी जीवनी लिखने के लिए उनसे सम्पर्क किया, तो उन्होंने स्पष्ट मनाकर दिया।
बाबा की गणना स्वामी अखण्डानन्द और भक्ति वेदान्त प्रभुपाद जी की श्रेणी में होती है। कुछ आध्यात्मिक विद्वान् उन्हें प्रयाग के लाहिड़ी महाशय और अवतारी बाबा की श्रेणी का योगी मानते हैं। बाबा के बारे में पूज्य माँ आनन्दमयी ने एक बार कहा था उस समय उनके दो समकालीन योगी हिमालय में समाधि लगाये हैं। माँ ने बाबा की कृपा से उनके दर्शन का सौभाग्य पाया था।
बाबा के शिष्यों तथा प्रशंसकों में जयपुर के महाराजा मानसिंह, नेपाल के 17 पीढ़ी पूर्व के महाराजा राजा महेन्द्र प्रताप सिंह, राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद और डा. जाकिर हुसेन, इंग्लैण्ड के जॉर्ज पंचम, प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री, पण्डित मोतीलाल नेहरू, डॉ. सम्पूर्णानन्द, महमूद बट्ट जैसे राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षाविद, सन्त और समाजसेवी शामिल थे।
वे सदा भूखों को भोजन, वस्त्रहीन को कपड़ा, अशिक्षित को शिक्षा और मनुष्य ही नहीं समस्त जीवों को चिकित्सा देने की बात कहते थे। बाबा ने अपनी शरण आने वाले हर व्यक्ति के कष्टों का निवारण किया। उन्होंने गरीब कन्याओं के विवाह और विधवाओं के लिए सेवा प्रकल्प चलाने, यमुना को स्वच्छ करने, वृक्षारोपण कर पर्यावरण रक्षा के निर्देश अपने शिष्यों को दिए थे।
बाबा दूरद्रष्टा थे। एक बार विश्व हिन्दू परिषद् के श्री अशोक सिंहल उनके दर्शन को गये। उन दिनों राम मन्दिर आन्दोलन चल रहा था। अशोक जी ने उनसे इस बारे में पूछा, तो बाबा बोले - बच्चा, चिन्ता मत कर। लाखों लोग आयेंगे और इसकी एक-एक ईंट उठाकर ले जायेंगे। राममन्दिर के निर्माण को दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकेगी।
किसी को उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ; पर छह दिसम्बर 1992 को सचमुच ऐसा ही हुआ, जब देश भर से आये लाखों कारसेवक बाबरी ढाँचे की ईंटे तक उठाकर ले गये।
दुनिया भर के लाखों लोगों के प्रेरणास्रोत पूज्य देवरहा बाबा ने 19 नवम्बर, 1990 को वृन्दावन में अपनी देहलीला समेट ली।