मां के हाथों की बरकत दाल खिचड़ी में भी है लज्जत -के सी शर्मा



के सी शर्मा*

 आज की पीढ़ी को घर का खाना पसंद नहीं आता , महंगे महंगे रेस्टोरेंट्स और , रही सही कसर आजकल ऑनलाइन खाने की बुकिंग ने पूरी कर दी है  ।

 बहुत सारी विदेशी कंपनियां जिनके  आका विदेशों में बैठे हैं , और भारत में  इसकी फ्रेंचाइजी  दी हुई है , ज़ोमेटो , उबर  ,स्विग्गी जैसी ऑनलाइन कंपनियां घर घर आकर भोजन परोस रही है ।
 अनजान लड़के आपके द्वार पर चाहे दिन हो या रात भोजन परोसने के लिए खड़े रहते हैं , इसमें  कुछ शरीफ होते हैं , और कुछ ----- आप समझ ही गए  होंगे ,ना पुलिस वेरीफिकेशन , बस आपके पास मोटरसाइकिल या स्कूटर हो , और आप बन जाओ खाना परोसने के एजेंट , हर एक सप्लाई पर कमीशन ।

कई बार देखने को आया है जिस घर में प्याज और लहसुन वर्जित है , उनके बच्चे चोरी  छुपे बोनलेस मटन और चिकन का आनंद उठा रहे हैं , और यह बच्चे घर के खाने   को देखकर नाक मुंह  बनाते हैं , मैं इन बच्चों से यह कहता हूं ज़रा अपने घर के बाहर निकले किसी भी  गरीब के घर पर जाकर देखें , या जो आपके घर काम करने वाली बाई आती है ,उसके घर जाकर  देखो , तुम्हारे घर का बचा हुआ दो दिन का पुराना खाना जिसको देखकर तुम नाक मुंह चढ़ाते हो और वही खाना  बाई के बच्चे कितने चाव से खाते हैं ।

 अगर हम बाहर से मंगाया हुए खाने का हिसाब महीने भर का  लगाएं शायद उतने पैसे से एक गरीब का घर चल जाए ।

 आजकल हम लोगों ने अपने इतने खर्चे बढ़ा लिया हैं ,घर का मुखिया जो महीने भर नौकरी करता है ,या कोई कारोबार कर रहा है , उससे पूछो के पैसे का महत्व क्या होता है , " एक तो मंदी की मार उसपर बच्चों के खर्चे हज़ार "।
इस दौर में मध्यमवर्गीय परिवारों की स्थिति बड़ी दयनीय है ,शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसके ऊपर कोई  ऋण ना हो ,मोबाइल पर कर्जा ,टीवी पर कर्जा ,स्कूटर - मोटरसाइकिल पर कर्जा ,एसी पर कर्जा ,मकान पर कर्जा , पढ़ाई पर कर्जा, मध्यम वर्गीय परिवार यह हाल हो गया है कर्जा और परेशानियां जैसे चोली दामन का साथ हो  ,
आजकल कई सरकारी एवं  निगम मंडलों के कर्मचारियों को  समय से पगार नहीं मिल रही है और , जिन कर्मचारियों ने बैंकों  या प्राइवेट संस्थाओं से ऋण लिया हुआ है उनकी किस्तें समय से नहीं पहुंच रही है , और इसके लिए इन  कर्मचारियों को भारी दंड भुगतने  पड़ रहे है ।

 अगर हम अपने-अपने परिवारों का इमानदारी से महीने भर का खर्चा जोड़ें , तो हम देखेंगे बहुत छोटा सा भाग हम अपने महीने भर की किराने पर खर्च करते हैं, बाकी पैसा बिजली का बिल केबल टीवी का बिल , मोबाइल के रिचार्ज ,कार एवं स्कूटर के पेट्रोल ,होटलों के बिल, ऑनलाइन शॉपिंग के बिल ,जो कर्जा लिया हुआ है उसकी किस्तों में हमारा पूरा पैसा ख़र्च हो जाता है , और महीने की आखिरी तारीख को में हमें लोगों के सामने हाथ फैलाने की जरूरत पड़ती है।

" जिंदगी में सुख और दुख दोनों हैं, यह हमें तय करना है कि हमें जिंदगी "
 कर्जे में गुजारनी है या अपना फालतू खर्चा काटकर !