नवरात्रा की काव्ययात्रा प्रारम्भ।प्रथम आहुति (टांड़सी)घोड़ाडोंगरी में भाई मनीष मधुकर के संयोजन/संचालन में।साथ होंगे
भाई रावअजातशत्रु।
चेतन चर्चित
अभिराज पंकज
एकता आर्य
और आपका पंकज अंगार
इक़ मुद्दत के बाद चमन में
इक़ नरगिस का फूल खिला है।
पढा गौर से दो आंखों में
एक इबारत लिखी हुई थी।
युगों युगों के बाद सहन में
धवल चांदनी बिछी हुई थी।
साँसों का आवेग बढ़ा यूँ
मन का हरसिंगार हिला है।।
उम्मीदों के खाली घट थे।
प्यार का सावन लाने वाले।
मुझ पर पंकज अक्सर बरसे।
बादल प्यास बढाने वाले।
मगर तृप्ति के लेख लिखेगा।
अब जो अमृत कलश मिला है।।
मरुथल तन पर पुष्प खिलाकर
यदि इक़ मधुवन सौंप दिया है।
तो मन मे भी घुलकर उसने
जीवन दर्शन खूब जिया है।।
बाहर से वो है खजुराहो
पर अंदर से तक्षशिला है।
पंकज अंगार