के सी शर्मा*
कृष्णभावनामय व्यक्ति सदैव प्रकृति के गुणों से अतीत होता है। उसे अपने को सौंपे गये कर्म के परिणाम की कोई आकांक्षा नहीं रहती,......कार्य के पूर्ण होने तक वह सदैव उत्साह से पूर्ण रहता है।
उसे होने वाले कष्टों की कोई चिन्ता नहीं होती, वह सदैव उत्साहपूर्ण रहता है।
वह सफलता या विफलता की परवाह नहीं करता, वह सुख-दुख में समभाव रहता है। ऐसा कर्ता सात्त्विक है।
मनुष्य सदैव किसी कार्य के प्रति या फल के प्रति इसलिए अत्यधिक आसक्त रहता है, क्योंकि वह भौतिक पदार्थों, घर-बार, पत्नी तथा पुत्र के प्रति अत्यधिक अनुरक्त होता है।
वह इस संसार को यथा सम्भव आरामदेह बनाने में ही व्यस्त रहता है।
सामान्यतः वह अत्यन्त लोभी होता है और सोचता है कि उसके द्वारा प्राप्त की गई प्रत्येक वस्तु स्थायी है और कभी नष्ट नहीं होगी।
यदि उसका कार्य सफल हो जाता है तो वह अत्यधिक प्रसन्न और असफल होने पर अत्यधिक दुखी होता है। रजोगुणी कर्ता ऐसा ही होता है।
जो कर्ता सदा शास्त्रों के आदेशों के विरुद्ध कार्य करता रहता है,जो भौतिकवादी, हठी, कपटी तथा अन्यों का अपमान करने में पटु है और तथा जो आलसी, सदैव खिन्न तथा काम करने में दीर्घसूत्री है, वह तमोगुणी कहलाता है।