के सी शर्मा
नवरात्र की पूजा में कुमारी कन्या के पूजन का विधान शास्त्रों में बताया गया है।श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार इस अवधि में कुमारी कन्या के पूजन से मातारानी प्रसन्न होती है ।कुमारी कन्या के पूजन में 2 वर्ष से लेकर 9 वर्ष तक की कन्या के पूजन का विधान है ।प्रतिदिन एक ही कन्या की पूजा की जा सकती है या सामर्थ्य के अनुसार तिथिवार संख्या के अनुसार कन्या की पूजा भी की जा सकती है ।
यदि ऐसा संभव न हो तो अंतिम दिन नवमी तिथि के जब तक दो चरण समाप्त होजाए तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुमारी कन्या का पूजन करना चाहिए ।
इस बार 7 अक्टूबर की सुबह 3 बजे से 9 बजे तक तीसरा चरण रहेगा ।
यानि इस अवधि में हवन-पूजन शुरू कर दे, भले वह आगे तक क्यों न चलता रहे । शास्त्रों में कहा गया है कि जितने अधिक लोगों के हितार्थ पूजा की जाती है, उसी के अनुसार दैवी कृपा भी मिलती है । पूजा में संकुचित दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए कुमारी पूजा के क्रम में श्रीमद्देवीभागवत के प्रथम खण्ड के तृतीय स्कंध में उल्लिखित है 2 वर्ष की कन्या 'कुमारी' कही गयी है जिसके पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश, शत्रुओं का क्षय और धन, आयु, एवं बल की वृद्धि होती है ।
इसी प्रकार 3 वर्ष की कन्या 'त्रिमूर्ति' कही गयी है जिसकी पूजा से धर्म,अर्थ, काम की पूर्ति, धन-धान्य का आगमन और पुत्र-पौत्र की वृद्धि होती है । जबकि 4 वर्ष की कन्या 'कल्याणी' होती है जिसकी पूजा से विद्या, विजय, राज्य तथा सुख की प्राप्ति होती है। राज्य पद पर आसीन उपासक 'कल्याणी' की पूजा करे । इसी तरह 5 वर्ष की कन्या 'कालिका' होती है ।
जिसकी पूजा से शत्रुओं का नाश तथा 6 वर्ष की कन्या 'चंडिका' होती है जिसकी पूजा से धन तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।
7 वर्ष की कन्या 'शाम्भवी' है जिसकी पूजा से दुःख-दारिद्र्य का नाश, संग्राम एवं विविध विवादों में विजय मिलता है जबकि 8 वर्ष की कन्या 'दुर्गा' के पूजन से इहलोक के ऐश्वर्य के साथ परलोक में उत्तम गति मिलती है और कठोर साधना करने में सफलता मिलती है । इसी क्रम में सभी मनोरथों के लिए 9 वर्ष की कन्या को 'सुभद्रा' और जटिल रोग के नाश के लिए 10 वर्ष की कन्या को 'रोहिणी' स्वरुप मानकर पूजा करनी चाहिए धर्मग्रन्थों में देवी को अलग अलग तिथियों में अलग अलग भोज्य पदार्थ का भोग लगाना चाहिए ।
नवमी को धान का लावा चढ़ाने से लोक-परलोक सुखकर होता है ।
कुमारी कन्या का पूजन षोडशोपचार हो तो अच्छा है वरना मन में शुभ संकल्प लेकर कन्या का चरण धोए, माथे पर बिंदी लगाएं, श्रृंगार सामाग्री दें, माला फूल पहनाने के बाद भोग लगाए जिसमें घर की रसोई में बनी पूड़ी, हलवा, मिष्ठान्न जरूर रहे । आरती कर लें ।
फल, उपहार एवं दक्षिणा देकर कन्या का चरण स्पर्श पूरा परिवार करें ।
कन्या की प्रदक्षिणा भी एक बार कर लें ।
यह संक्षिप्त विधि आवश्यक है ।