मौसमी संधिकाल वाली नवरात्रि और आसुरी शक्तियों की विनाशक जगत जननी परम शक्ति के नव स्वरूपों पर विशेष







✒सुप्रभात- सम्पादकीय✒

साथियों,
   सभी जानते हैं कि नवरात्रि का पावन पर्व वर्ष में दो बार ऋतु परिवर्तन की वेला पर आता है।ऋतु परिवर्तन के अवसर पर अन्न का त्याग स्वास्थ्य के लिए हितकर माना गया है इसीलिये नौ दिनों तक अन्न का त्याग कर चित्त मन एवं पेट की अग्नि को शांत किया जाता है।सभी जानते है कि अपने यहाँ मुख्य रूप से तीन मौसम जाड़ा गर्मी एवं बरसात के होते हैं जिसमें मौसम का बदलाव होता है।गर्मी एवं बरसात के बाद जाड़े के मौसम की शुरुआत शारदीय नवरात्रि से होती है और जाड़े के बाद गर्मी के मौसम का शुभारंभ चैत्रीय नवरात्रि के साथ होता है।इसीलिए दोनों नवरात्रों को संधिकाल भी कहा जाता है और यह नवरात्रि मौसमों में संधि कराकर स्वास्थ्य की रक्षा करती है।वैसे नवरात्रि महाशक्ति परमशक्ति जगत जननी के विशेष दिन माने जाते हैं और नवरात्रि के नौ दिनों में उनके नौ स्वरूपों की अलग अलग विशेष पूजा की जाती है।इतना ही नहीं इस पवित्र मौके पर तरह तरह के विशेष अनुष्ठान करके उन्हें प्रसन्न कर खुश करके मनोवांछित कामना की पूर्ति की जाती है।नवरात्रि के दौरान जगत जननी के शौर्य का गाथा देवी कथा या देवी भागवत के रूप में की जाती है।आज नवरात्रि का अंतिम दिन है और आज ईश्वर स्वरूपा आदि शक्ति परमशक्ति को विदाई कन्याभोज एवं हवन के साथ कर रहे हैं।नवरात्रि के अंतिम दिन सबसे पहले हम अपने पाठकों को नवरात्रि एवं विजयदशमी की शुभकामनाएं देते हुए सभी की कुशलता की कामना माँ के नवें स्वरूप सिद्धिदात्री माता से कर रहे हैं।हमारे यहाँ नारी को मनुष्य की अर्द्धगिनी कहा जाता है और भगवान सदाशिव भोलेनाथ को अर्द्धनारीश्वर कहा जाता है।नारी को शक्तिस्वरूपा माना जाता है और बिना शक्ति के मनुष्य शक्ति विहीन होता है।भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम को रावण का वध करने के लिये इसी शक्ति का सहारा लेना पड़ा और इसी शारदीय नवरात्रि की भोर उसे मारने में सफल हो सके जबकि चैतीय नवरात्रि के अंतिम दिन वह असुरों के विनाश के लिए अयोध्या में अवतरित हुए थे। हमारी मान्यता है कि परमपिता परमात्मा ने अपना साकार रूप नारीस्वरूपा महादेवी के रूप में धारण किया था। हमारी मान्यता है कि जब जब इस धरती पर आसुरी शक्तियां उत्पात कर धर्म का विनाश करने लगती हैं तब तब जगत जननी इस धराधाम पर आकर उनका सर्वनाश करती हैं। यही कारण है कि विभिन्न युगों में जगत जननी विभिन्न स्वरूपों को धारण करके आसुरी शक्तियों का विनाश करने के लिए अवतरित हो चुकी हैं।कलियुग में आसुरी शक्तियां अपने चरम पर पहुंच गई और गली गली चंड मुंड  रक्तबीज महिषासुर आदि घूम रहे हैं और नारी शक्ति को अपमानित ही नही कर रहे हैं बल्कि उनकी जान एवं इज्ज़त के दुश्मन बने हुए हैं।कुछ आसुरी प्रवृत्ति के लोग आतंकी स्वरूप धारण किये हुये हैं और नारी की इज्ज़त मान मर्यादा ही नहीं बल्कि बेगुनाहों का कत्लेआम कर रहे हैं।बच्चियों की हत्या गर्भ में होने लगी है और साधु संत का रूप बनाकर नारियों का शोषण हो रहा है।नारी अत्याचार से धरती कांपने लगी है एवं धर्म का ह्रास होने लगा है।हम नवरात्रि के समापन अवसर पर जगत जननी से विनती करते हैं कि वह कलियुगी चंड मुण्डों का विनाश करने के लिए एक बार पुनः अवतरित होकर विश्व की नारियों एवं धर्म परायण अपने भक्तों की रक्षा करें।धन्यवाद।।सुप्रभात/वंदेमातरम/गुडमार्निंग/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।।ऊँ भूर्भुवः स्वः-----/ऊँ नमः शिवाय।।।

भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी।