Deepawali- रह न जाए इस समर में रोशनी के हाथ खाली फिर विजेता हो न जाए तम भरी ये रात काली-पंकज अंगार




रह न जाएं इस समर में रौशनी के हाथ खाली।
फिर विजेता हो न जाये तम भरी ये रात काली।
हों जहाँ भी नफ़रतें,मनुहार के दीपक रखें।
हम दिलों की ड्योढ़ीयों पर प्यार के दीपक रखें।।


रोग कैसा हो गया ये हो गयी है क्षीण दुनियाँ।
इससे पहले थी कभी क्या इस कदर संकीर्ण दुनियाँ।
घर महल होने लगे पर दिल घरौंदा हो गया है।
आज कल उल्लास मन का नींद गहरी सो गया है।।

रुग्ण इस संसार मे उपचार के दीपक रखें.
हम दिलों की ड्योढ़ीयों पर प्यार के दीपक रखें।।

घूमता है छल बदन पर नेह की चादर लपेटे।
गीत चुप बैठा हुआ है पीर को दिल में समेटे।।
मौन रहते हैं पटाखे,घुल गया बारूद मन में।
गन्ध वह सद्भाव वाली अब कहाँ मिलती सुमन में।

मन मे फिर भी कुछ नये आसार के दीपक रखें ।।
हम दिलों की ड्योढ़ीयों पर प्यार के दीपक रखें।।

प्रेम जैसे हर छलावे की कलई खुलने लगीं हैं।
भोर के मन मे भी पंकज कालिखें घुलने लगी हैं ।
प्रेम का जिसमे भवन था वो गली मिलती नही है।
है दियों की भीड़ पर दीपावली मिलती नही है।

चल भुवन में नेह से विस्तार के दीपक रखें ।।
हम दिलों की ड्योढ़ीयों पर प्यार के दीपक रखें।।

प्रकाश पर्व पर यही प्रार्थना कि आपके द्वारा प्रकाशित हर दीपक आपके घर,आंगन,देहरी,द्वार,बाह्य संसार के साथ साथ अन्तर्जगत एवम भाग्य सौभाग्य को भी प्रकाशित करे।।। पुनः जगमगाती शुभकामनाएं।

पंकज अंगार