रेलवे में निजी करण की हकीकत और भविष्य की आशंकाएं






एडिटर-के सी शर्मा की रिपोर्ट
 आस पास कुछ महाज्ञानियों का जमघट इकट्ठा हो गया है जो गाहे बगाहे निजीकरण के समर्थन में खड़ा हो जाता है।
 उसका कहना है कि निजीकरण बहुत फायदेमंद होता है। अब इस संदर्भ में आप संलग्न खबर को देखिए जो इसी साल 16 जनवरी की है ब्रिटेन के प्रमुख पेपर डेली मिरर में छपी है जो कहती है कि अब ब्रिटिशर्स रेलवे का फिर से राष्ट्रीयकरण कर देने की मांग उठा रहे है। अक्सर रेलवे के निजीकरण के संदर्भ में ब्रिटेन का ही उदाहरण दिया जाता है।
 1993 में थैचर के उत्तराधिकारी जॉन मेजर ने ब्रिटिश रेलवे का निजीकरण कर दिया था
लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि निजी कम्पनियों ने 1993 में ब्रिटिश रेल के निजीकरण करते वक्त रेल यात्रियों से जो वादे किए थे वह आज तक पूरे नहीं किए  हैं।

आज की कंडीशन में ब्रिटेन की हालत यह है कि अब यात्रियों  के दबाव के कारण सरकार को कई रेलमार्गों का पुनः राष्ट्रीयकरण करने पर मजबूर होना पड़ा है।
16 मई 2018 को, ब्रिटेन के परिवहन मंत्री ने घोषणा की कि पूर्वी तट रेल लाइन को राज्य नियंत्रण के तहत निजी कंपनियों से वापस ले लिया जाए यह एक प्रमुख रेल मार्ग है जो लगभग 600 किमी लंबा है और लंदन को एडिनबर्ग से जोड़ता है।

ब्रिटेन छोड़िए अर्जेंटीना में भी यही हालत है वहाँ भी निजी कंपनियां रेलवे में मोटा माल कमाने के बाद बाद भाग खड़ी हुई है।

अब आ जाते हैं भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस पर

दिल्ली-लखनऊ रूट पर मौजूदा वक्त में 53 ट्रेन चलाई जा रही हैं.उसमे से एक ट्रेन है तेजस, इस रुट की सबसे प्रीमियम ट्रेन स्वर्ण शताब्दी है, जिससे दिल्ली से लखनऊ जाने में सफर में करीब 6.30 घंटे का वक्त लगता है. ओर तेजस को 6.20 घण्टे का वक्त लग रहा है यानी कोई चमत्कार नही कर दिया है तेजस ने, जैसा कि सरकार द्वारा बताया जा रहा है .......

वैसे चमत्कार किया है उन्होंने फेयर के क्षेत्र में !

तेजस एक्सप्रेस में एसी चेयरकार का किराया 1,125 रुपये वसूला जा रहा है जबकि स्वर्ण शताब्दी का किराया 800 से ज्यादा नही है और उसमे भी सीनियर सिटीजन ओर बच्चों को रेलवे द्वारा दी जा रही सामान्य छूट प्राप्त है लेकिन तेजस में यात्रियों को ऐसी कोई छूट प्राप्त नही है

तेजस में किराया तय करने के लिए डायनेमिक फेयर  सिस्टम लागू है. डायनेमिक फेयर सिस्टम फ्लाइट्स की बुकिंग के लिए भी लागू होता है.
दिवाली के लिए तेजस का किराया फ्लाइट के किराए से भी ज्यादा हो गया है।
  डायनेमिक फेयर सिस्टम के कारण 26 अक्टूबर के दिन तेजस का नई दिल्ली से लखनऊ का किराया 4300 से 4600 रुपये (एक्जीक्यूटिव चेयरकार) के बीच पुहंच गया है.

दरअसल प्राइवेट ऑपरेटर को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब होता है, उसे यात्रियों के जेब से पैसा निकालना आता है वह जानता है कि जब सबसे ज्यादा अर्जेन्सी होगी तब वह सबसे ज्यादा किराया आसानी से वसूल कर लेगा , पूरे विश्व भर रेलवे के निजीकरण के पक्ष में दी गई कोई भी दलील सच पूरी तरह से सच साबित नही हुई है।

प्राइवेट ऑपरेटर को जनता की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने से कोई मतलब नही है और न ही उसके लिए सामाजिक लक्ष्य हासिल करना कोई जिम्मेदारी होती  हैं बल्कि वह सिर्फ और सिर्फ प्रॉफिट कमाना जानता है
 और भारत में तो अभी यह शुरुआत ही है।
 ब्रिटेन का अनुभव तो यह कहता है कि जैसे रेलवे प्राइवेट ऑपरेटर के हाथ मे आया व्यस्त रूट पर किराए तीन गुना ज्यादा बढ़ा दिए गए।

2016 में यूनिवर्सिटी ऑफ हार्टफोर्डशर में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हूल्या डेगडिविरेन अपने लेख में कहती है.......... 'कामगार संगठनों की एक परिषद टीयूसी ने ब्रिटिश रेलवे में मुसाफिरों के किराए से जुड़ा एक अध्ययन करवाया था. इससे पता चलता है कि चेम्सफोर्ड से एसेक्स होते हुए लंदन तक की 35 मिनट की रेल यात्रा का मासिक टिकट 358 पौंड का होता है. जबकि इटली में इतनी ही यात्रा के लिए 37, स्पेन में 56, जर्मनी में 95 और फ्रांस में आपको 234 पौंड चुकाने होते हैं. इन सभी देशों में रेलवे का बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा संचालित है'

कुछ ही सालो बाद ठीक ऐसी ही हालत होगी भारत मे भी, जब यह महाज्ञानी लोगो का समूह जो निजीकरण की रट लगाए हुए हैं वह रेलवे को पूरी तरह से प्राइवेट हाथों में सौप देगा। ..........!