शारदीय नवरात्र के शुभ-अनुष्ठान के उद्यापन-विसर्जन तथा पारण भी यथासंभव उचित तरीके से हो तो बेहतर है । इसलिए इन तीनों शब्दों की महत्ता भी समझने की जरूरत है इस संबन्ध में नवरात्र अवधि में कलश स्थापना करने तथा पूरे नवरात्र अवधि तक व्रत रहने वाले नवमी में उद्यापन करते हैं । 'उद्यापन' का अर्थ ही है कि कोई कार्य यदि शुरू किया गया तो उसका समापन भी बड़े विधि विधान से हो ।
चूँकि नवरात्र व्रत माता दुर्गा का आशीष पाने के लिए किया जाता है । दुर्गा का आशय ही असुरों से देवताओं की रक्षा का रहा है, इसलिए आसुरी शक्तियों यथा नकारात्मक शक्तियों से खुद को विरत कर लोकहित में कार्य करने से है ।
इसलिए उद्यापन के वक्त पूरे परिवार एवं शुभचिंतकों के साथ बैठकर दुर्गा की आराधना की जानी चाहिए तथा इसके साथ नवरात्र-अनुष्ठान का समापन किया जाना चाहिए ।
लोक कल्याण के लिए की गई पूजा-प्रार्थना से देवी प्रसन्न जल्दी होती हैं । इसी के साथ विसर्जन के भी विशेष अर्थ होते हैं ।
विसर्जन का आशय अनुष्ठान की समाप्ति तथा मन में आने वाले कुविचारों से विरत रहने का संकल्प क्योंकि माता की पूजा का उद्देश्य भी यही है ।
विसर्जन के बारे में विचार कहा गया है कि घर में तथा प्राण-प्रतिष्ठित मन्दिरों एवं शक्तिपीठों में विसर्जन नहीं किया जाता । बल्कि पूजा समाप्ति का संकल्प होता है । देवी-देवताओं से पुनः आगमन की प्रार्थना के साथ स्व-स्थान जाने की प्रार्थना करना चाहिए । विसर्जन तो पूजा-पंडालों में अस्थायी रूप से स्थापित मूर्तियों का होता है ।
इसके अतिरिक्त पारण का भी आशय व्रत के बाद अन्न ग्रहण करना है । शारदीय नवरात्र में व्रत के पारण के लिए नवमी तिथि के अंतिम चरण का विधान निर्णय सिंधु में दिया गया है और उल्लिखित है नवमी तिथि में पारण करने से कुल की वृद्धि होती है ।
जहां तक दशमी तिथि में व्रत के पारण की बात है वह जो त्रिरात्र व्रत करते हैं यानि नवरात्र के अंतिम तीन दिनों सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी को व्रत रखते हैं, उन्हें नवमी उपरांत दशमी में व्रत का पारण करना चाहिए ।
पारण में कांसे के बर्तन का निषेध बताया गया है । पारण के दिन मदिरा, मांस, कामोत्तेजक कार्य, झूठ फरेब से व्रत निष्फल होना कहा गया है ।
इस दृष्टि से शारदीय नवरात्र की नवमी तिथि 7 अक्टूबर को अपराह्न 3.04बजे तक है । इसलिए 7 अक्टूबर को प्रातः काल से लेकर हवन तथा कन्या पूजन कर लेना चाहिए ।
इसके बाद नवमी के अंतिम चरण अपराह्न 3.04बजे तक पारण कर लेना चाहिए ।
जो त्रिरात्रि व्रत यानि सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी व्रत हों, वे 8 अक्टूबर को पारण करें जबकि सिर्फ पहले और अष्टमी को व्रत रखने वाले 7 अक्टूबर को प्रातः अन्न ग्रहण कर सकते हैं ।
शारदीय नवरात्र में नवमी तिथि के भीतर तथा चैत्र नवरात्र में रामनवमी पड़ने के कारण दशमी में पारण होता है ।