साथियों,यह कहना सही है कि संतान ईश्वर की देन होती है और बिना उसकी इच्छा के संतान नहीं पैदा होती है।जिसके संतान नहीं होती है उसका मुंह देखना पाप समझा जाता है। इसके बावजूद यह भी सही है कि संतान उत्पत्ति में ईश्वर के साथ-साथ माता-पिता का भी महत्वपूर्ण योगदान एवं भूमिका होती है क्योंकि अगर माता-पिता न चाहे तो भगवान के चाहने पर भी संतान की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। यह भी सही है कि कुल खानदान अथवा ड्यौढ़ी को आगे भी कायम रखने के लिए वंश अथवा संतान की जरूरत होती है।यही नहीं वृद्धावस्था में सेवा करने और मरने के बाद अंतिम संस्कार करने के लिए भी संतान जरूरी होती है। लेकिन ड्यौढ़ी चलाने के लिए वंश वृद्धि की भी एक सीमा होती है। हर चीज की एक सीमा होती है और जब वह सीमा टूट जाती है तो उसके परिणाम भयंकर होने लगते हैं क्योंकि अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती है। संतान जब मतलब से ज्यादा हो जाती हैं तो कृष्ण भगवान के पुत्र जैसे बनकर अनियंत्रित हो जाते हैं और उन्हें समाप्त करना जरूरी हो जाता है। संतान अधिक होने पर वह कौरव बन जाते हैं जिन के विनाश के लिए भगवान को महाभारत की रचना ही नहीं बल्कि खुद मनुष्य रूप में लीला करनी पड़ती है।आज से चार दशक पहले आज की आधी भी आबादी देश की नही थी और तब कहा जाता था कि -" होते हैं घर में अच्छे दो या तीन बच्चे"।वैसे जितनी कम संतान होती हैं उतना कम बंटवारा पिता की सम्पत्ति अथवा मकान आदि में होता है।एक एक बीघा जमीन हैं और एक संतान है तो वह लम्बे समय तक खंडित नहीं होती है और यथावत बनी रहती है।संतान उत्पत्ति के समय पिता को आने वाली संतान के भविष्य का भी ध्यान रखना जरूरी होता है।पहले लोग घर के बाहर पिता के साथ सोते रहते थे और मौका निकाल कर आँख बचाकर अपनी पत्नी के पास जाते थे लेकिन इधर रहन सहन में जब
व्यापक बदवाल हो गया है।अब शादी के बाद से ही ससुराल से मिला बेड पहले से निश्चित कमरे में रिजर्व होने लगा है और सभी अपने अपने कमरे में रहने लगे हैं।अधिकांश लोग प्यार मोहब्बत करने के नाम पर नशे के अधीन होने लगे है जो संतान वृद्धि में सहायक बन रहा है।सरकार परिवार नियोजन के नाम दशकों पहले से कम संतान सुखी परिवार का नारा देते हुए नसबंदी एवं गर्भनिरोधक दवाओं का वितरण करा रही है और करोड़ों अरबों रूपये सालाना खर्च कर विभिन्न माध्यमों से लोगों को समझाया जा रहा है।इसके बावजूद हमारे देश के कुछ लोग आँख मूंदकर परिवार वृद्धि करने में रात दिन संलग्न हैं। कुछ लोगों ने जैसे अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य ही बच्चा पैदा करने का बना लिया है और वह रातदिन गिनती बढ़ते रहते हैं।देश में रोजाना जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे काफी ज्यादा पैदा हो जाते हैं।हमारे देश के तमाम लोगों के तथाकथित प्यार के चलते आज हमारी जनसंख्या डेढ़ करोड़ के करीब पहुंचने वाली है। दुनिया में हम चीन के बाद दूसरे नम्बर की आबादी वाले देश बन गये हैं और अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर संतान वृद्धि इसी रफ्तार से होती रही तो हमारा देश कुछ ही समय में जनसंख्या के मामले में दुनिया के सिरमौर हो जायेगा।बढती आबादी का परिणाम है कि आज देश में रोटी रोजी एवं मकान की समस्या बढ़ने लगी है और नदी तालाब सुरक्षित सरकारी भूमि पर लोगों को अपना आशियाना बनाना पड़ रहा है।जो आज से पांच दशक पहले सौ बीघे का जमींदार था आज उसके वंशज के पास दस पांच बीघा रह गयी है और जो परिवार नियोजित कर ले गये है उनके परिवार के लोग आज भी दो चार हेक्टेयर के जमीदार हैं।अत्यधिक संतान पैदा करने का मतलब अपने कुल के भविष्य एवं अपनी मान मर्यादा को अपने आप समाप्त करने जैसा होता है।स्थिति इतनी भयावह हो गयी कि हमारे देश के मुखिया प्रधानमंत्री मोदी जी को आजादी के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से इस ज्वलंत समस्या का जिक्र करके चिंता व्यक्त करते हुये इस पर विशेष ध्यान देने की बात कहनी पड़ी।सरकार को जो कार्य दशकों पहले करना चाहिए वह दशकों के बाद करने पर विचार किया जा रहा है जो देश के भविष्य के लिए जरूरी है।जनसंख्या विस्फोट होने से देश को बचाना सरकार का दायित्व होता है क्योंकि जनसंख्या वृद्धि से देश में रोजी रोटी मकान की समस्या पैदा होती है।जनसंख्या नियन्त्रण के लिये विशेष कानून बनाने की जरूरत है क्योंकि समझाने का समय समाप्त हो गया है।धन्यवाद।। सुप्रभात/वंदेमातरम/गुडमार्निंग/नमस्कार/अदाब/शुभकामनाएं।।ऊँ भुर्भुवः स्वः------/ऊँ नमः शिवाय।।।
भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी।